थोड़ी ही देर में एक भिक्षु कुछ वस्तु उठाने के बहाने उनके कान के पास झुक गया। आचार्य ने उसके कान में कहा—"देख एक आदमी उत्तर तोरण के चतुर्थ द्वार पर खड़ा है। उसे गुप्त राह से पीछे वाली गुफा में ले जा।"
भिक्षु नमन करके चला गया। संघस्थविर ने आचार्य बुद्धगुप्त को संकेत से पास बुलाकर कहा—"तुम यहाँ पूजा विधि सम्पन्न करो। मैं अभी जाकर जाप में बैठता हूँ। देखना मेरे जाप में विघ्न न हो।"
बुद्धगुप्त ने सहमति संकेत किया। संघस्थविर उठकर एक ओर चल दिए। बुद्धगुप्त आसन पर बैठकर पूजन विधि सम्पन्न करने लगे।
लोगों ने ससम्भ्रम आचार्यपाद को मार्ग दिया। वे भूमि में झुक गए। आचार्य ने मुस्कराकर, सबको दोनों हाथ उठाकर, कल्याण-कल्याण का आशीर्वाद दिया।
जिस भिक्षु को आचार्य ने महानन्द को ले आने का आदेश दिया था––उसका सुखदास ने पीछा किया। जब वह महानन्द को गुप्त राह से ले चला तो सुखानन्द अत्यन्त सावधानी से उनके पीछे ही पीछे चला। अन्त में वे एक छोटे-से द्वार को पार कर एक अन्धेरे अलिन्द में जा पहुंचे। वहाँ घृत के दीपक जल रहे थे। द्वार को पीछे से बन्द करने की सावधानी नहीं की गई, इससे सुखदास को अनुगमन करने में बाधा नहीं हुई।
वज्रसिद्धि ने आते ही कहा—"क्या समाचार है, महानन्द! तुमने तो बड़ी प्रतीक्षा कराई।"
"आचार्य, मैंने एक क्षण भी व्यर्थ नहीं खोया।"
"तो समाचार कहो।"
"काशिराज के दरबार में हमारी चाल चल गई।" उसने आँख से संकेत करके कहा।
"तो तुम सीधे वाराणसी से ही आ रहे हो।"
"महाराज काशिराज जो यज्ञ कर रहे हैं, उसमें आपको निमन्त्रित करने दूत आ रहा है।"
"वह तो है, परन्तु महाराज ने भी कुछ कहा?"
"जी हाँ, महाराज ने कहा है कि वे आचार्य की कृपा पर निर्भर है।"
वज्रसिद्धि हँस पड़े। हँसकर बोले—"समझा, समझा, अरे दया तो हमारा धर्म ही है, परन्तु धूत पापेश्वर का वह पाखण्डी पुजारी—?"
"सिद्धेश्वर?—वह आचार्यपाद से विमुख नहीं है।"
"तब आसानी से काशिराज का नाश किया जा सकता है। और इन ब्राह्मण के मन्दिर को भी लूटा जा सकता है। जानते हो कितनी सम्पदा है उस मन्दिर में? अरे, शत- शत वर्ष की संचित सम्पदा है।"
"तो प्रभु, सिद्धेश्वर महाप्रभु आपसे बाहर नहीं हैं।"
"तो वाराणसी पर सद्धर्मियों का अधिकार करने का जो मैं स्वप्न देख रहा हूँ वह अब पूर्ण होगा? इधर श्रेष्ठि धनंजय के पुत्र दिवोदास के भिक्षु हो जाने से सेठ की अटूट सम्पदा हमारे हाथ में आई समझो। इतने से तो हमें पचास हजार सैन्य दल और शस्त्र जुटाना सहज हो जाएगा?"
"अरे, तो क्या सेठ के पुत्र ने दीक्षा ले ली?" रहा है।"