पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९९९

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ari मेरे पिता और इन्द्रदेव के पिता दोनों दिली दोस्त और ऐयारी में एक ही गुरु के शिष्य थे अतएव मुझमें और इन्द्रदेव म भी उसी प्रकार की दोस्ती और मुहब्बत थी इसीलिए मैं प्राय इन्द्रदेव से मिलने के लिए उनके घर जाया करता और कभी कभी वे भी मेरे घर आया करते थे। जरूरत पड़ने पर इन्ददेव की इच्छानुसार मैं उनका कुछ काम भी कर दिया करता और उन्हों के यहा कभी कभी इस कम्बख्त दारोगा से भी मुलाकात हो जाया करती थी बल्कि यों कहना चाहिए कि इन्ददव ही के सबब से दारोगा जैपाल राजा गोपालसिह और भरतसिह तथा जमानिया के और भी कई नामी आदमियों से मेरी मुलाकात और साहब सलामत हो गई थी। जय भूतनाथ क हाथ से बचारा दयाराम मारा गया तवस मुझमें और भूतनाथ में एक प्रकार की खिचाखिची हो गई थी और वह खिचाखिची दिनों दिन बढती ही गई यहा तक कि कुछ दिनों बाद हम दोनों की साहब सलामत भी छूट गई। एक दिन मै इन्ददेव के यहा बैठा हुआ भूतनाथ के विषय में बातचीत कर रहा था क्योंकि उन दिनों यह खबर बडी तेजी के साथ मशहूर हो रही थी कि गदाधरसिह (भूतनाथ) मर गया । परन्तु उस समय इन्द्रदेव इस बात पर जोर दे रहे थे कि भूतनाथ मरा नहीं कहीं छिप कर बैठ गया है कभी न कभी यकायक प्रकट हो जायगा! इसी समय दारोगा क आने की इत्तिला मिली जो बडे शान शौकत के साथ इन्द्रदव से मिलने के लिए आया था। इन्द्रदेव बाहर निकल कर बडी खातिर के साथ इस घर के अन्दर ल गय और अप्न आदमियों को हुक्म दे गये कि दारोगा के साथ जो आदमी आये हैं उनके खाने पीने और रहने का उचित प्रबन्ध किया जाय । दारोगा को साथ लिए हुए इन्द्रदव उसी कमर में आए जिसमें म पहिले ही से बैठा हुआ था क्योंकि इन्द्रदेव की तरह मैं दारोगा को लने के लिए मकान के बाहर नहीं गया था और न दारोगा के आ पहुचने पर मैने उठ कर इसकी इज्जत ही बढाई हा साहब सलामत जझर हुई। यह बात दारोगा को बहुत ही बुरी मालूम हुई मगर इ ददेव को नहीं क्योंकि इन्द्रदेव गुरुमाई का सिर्फ नाता निवाहते थे दिल से दारोगा की खातिर नहीं करते थे। इन्ददव और दारोगा में देर तक तरह तरह की बातें होती रही जिसमें मौके मौक पर दारोगा अपनी हाशियारी और बुद्धिमानी की तस्वीर खेचता रहा। जब ऐयारों की कहनी छिडी तो वह एकाएक मेरी तरफ पलट पडा और योला. आप इतन बड़े ऐयार के लडके हाकर घर में वेकार क्यों बैठे हैं? और नहीं तो मेरी ही रियासत में काम कीजिए यहा आपको बहुत आराम मिलगा। देखिए बिहारीसिह और हरनामसिह कैसी इज्जत और खुशी के साथ रहते हैं आप तो उनसे बहुत ज्याद इज्जत के लायक है। मैं-मैं वेकार तो बैठा रहता हूमगर अभी तक अपने को महाराज धौलपुर का नौकर समझता हूं क्योंकि रियासत का काम छोड देने पर भी वहा से मुझे खाने को बराबर मिल रहा है। दारोगा-(मुह बना कर) अजी मिलता भी होगा तो क्या एक छोटी सी रकम से आपका क्या काम चल सकता है? आखिर अपने पल्ले की जमा तो खर्च करते होंगे। मैं-यह भी तो महाराज ही का दिया हुआ दारोगा-नहीं वह आपके बाप का दिया हुआ है। खैर मेरा मतलब यह है कि वहा से अगर कुछ मिलता है तो उसे भी आप रखिए और मेरी रियासत से भी फायदा उठाइए! मैं ऐसा करना येईमानी और नमकहरामी कहा जायगा और यह मुझसे न हो सकेगा। दारोगा-(हॅस कर ) वाह वाह । ऐयार लोग दिन रात ईमानदारी की हॅडिया ही तो चढाए रहते हैं! में (तेजी के साथ ) वेशक ! अगर ऐसा न हो तो वह ऐयार नहीं रियासत का कोई ओहदेदार कहा जायगा दारोगा-(तन कर ) ठीक है, गदाधरसिह आप ही का नातेदार तो है जरा उसकी तस्वीर तो बँचिए । मै-गदाधरसिह किसी रियासत का ऐयार नहीं है और न में उसे ऐयार समझता हू, इतना होने पर भी आप यह साबित नहीं कर सकते कि उसने अपने मालिक के साथ किसी तरह की बेईमानी की। दारोगा-(और भी तनक के )वस बस बस रहने दीजिए, हमारे यहा भी विहारीसिह और हरनामसिह ऐयार ही तो है।

मै-इसी से तो मैं आपकी रियासत में जाना बेइज्जती समझता हू। दारोगा-(मौ सिकोड कर ) तो इसका यह मतलव है कि हमलोग बेईमान और नमकहराम हैं ।। मैं-(मुस्कुरा कर ) इस बात को तो आप ही सोचिये। दारोगा-देखिए जुबान सम्हाल कर बात कीजिए नहीं तो समझ रखिए कि मैं मामूली आदमी नहीं हू मैं-(क्राध रो) यह तो मैं खुद कहता हूं कि आप मामूली आदमी नहीं है क्योंकि आदमी में शर्म हाती है और वह चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २३