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मेने जो कुछ अपने नौकर से सुना था सब तो नहीं कहा केवल इतना कहा कि आपक पिता को दारोगा ही ने मारा है और लक्ष्मीदेवी की इस शादी में भी उसने कुछ गड़बड किया है गुप्त रीति पर इसकी जाच करनी चाहिए । मगर अपने नौकर का नाम नहीं बताया क्योंकि मै उसे बहुत चाहता था और वैसा ही उसकी हिफाजत का भी ख्याल रखता था। इसमें कोई शक नहीं कि मेरा वह नौकर बहुत ही होशियार और बुद्धिमान था बल्कि इस योग्य था कि राज्य का कोई भारी काम उसके सुपुर्द कया जाता, परन्तु वह जाति का कहार था इसलिए किसी बड़े मत पर न पहुच सका। गोपालसिहजी ने मेरी बातें ध्यान देकर सुनी मगर इन्हे उन बाता का विश्वास न हुआ क्योकि मायारानी को पतिव्रताओं की नाक और दारागा को सच्चाई तथा ईमानदारी का पुतला समझते थे। मैने इन्हें अपनी तरफ से बहुत कुछ समझाया और कहा कि यह यात चाहे झूठ हो मगर आप दारोगा से हर दम होशियार रहा कीजिए और उसके कामों की जाच की निगाह से देखा कीजिए मगर अफसोस, इन्होंने मेरी बातों पर कुछ ध्यान न दिया और इसी से मेरे साथ ही अपने को भी बर्बाद कर लिया। उसके बाद भी कई दिनों तक मैं इन्हें समझाता रहा और ये भी हॉ में ही मिला देते रहे जिससे विश्वास होता था कि कुछ उद्योग करने से ये समझ जायेंगे मगर ऐसा कुछ न हुआ। एक दिन मेरे उसी नौकर ने जिसका नाम हरदीन था मुझसे फिर एकात्त में कहा कि अब आप राजा साहब को समझाना बुझाना छोड़ दीजिए मुझ निश्चय हो गया कि उनकी बदकिसमती के दिन आ गये है और वे आपकी बातों पर कुछ ध्यान न देंगे। उन्होंने यहुत बुरा किया कि आपकी याते मायारानी और दारोगा पर प्रकट कर दी। अब उनको समझाने के बदल आप अपनी जान बचाने की फिक्र कीजिए और अपने को हर वक्त आफत से घिरा हुआ समझिए। शुक्र है कि आपने सब बात नहीं कर दीं नहीं तो और भी गजब हो जाता औरों को चाह कैसा ही कुछ खयाल हो मगर में अपने खिदमतगार हरदीन की बातों पर विश्वास करता था और उसे अपना खैरख्वाह समझता था। उसकी बातें सुनकर मुझ गोपालसिह पर बेहिसाब क्राप चढ आया और उसी दिन से मैंने इन्हें समझाना बुझाना छाड दिया मगर इनकी मुहव्यत ने मेरा साथ न छोड़ा। मैने हरदीन से पूछा कि 'ये सब बातें तुझे क्योंकर मालूम हुई और होती है ? मगर उसने ठीक ठीक न बताया वहुत जिद्द करने पर कहा कि कुछ दिन और सब कीजिए मै इसका भेद भी आपको बता दूगा। दूसरे दिन जब कि सूरज अस्त होने में दो घण्टे की देर थी मै अकेला अपने नजरबाग में टहल रहा था और इस सोच में पड़ा हुआ था कि राजा गोपालसिह का भ्रम मिटाने क लिए अब क्या यन्दोवस्त करना चाहिये। उसी समय रघुवरसिह मेरे पास आया और साहब सलामत करने के बाद इधर उधर की बातें करन लगा। बात ही बात में उसने कहा कि आज मैने एक घोडा नेहायत उम्दा खरीद किया है मगर अभी तक उसका दाम नहीं दिया है आप उस पर सवारी करके देखिये अगर आप भी पसन्द करें तो मैं उसका दाम चुका दू। इस समय मै उसे अपने साथ लेता आया हूँ, आप उस पर सवार हो लें और में अपने पुराने घोडे पर सवार होकर आपके साथ चलता हूँ, चलिए दो चार कोस का चक्कर लगा आवें । मुझे घोडे का बहुत ही शौक था। रघुवरसिह की बातें सुनकर मैं खुश हो गया और यह सोचकर कि अगर जानवर उम्दा होगा तो मै खुद उसका दाम देकर अपने यहाँ रख लूगा मैंने जवाब दिया कि चलो देखें केसा घोड़ा है, एक घोड़े की जरूरत मुझे भी थी। इसके जवाब में रघुवर ने कहा कि अच्छी बात है अगर आपको पसन्द आवे तो आप ही रख लीजियेगा। उन दिनों मै रघुवरसिह को भला आदमी अशराफ और अपना दोस्त स्मझता था. मुझे इस बात की कुछ भी खबर नथी कि ये परले सिरे का बेईमान और शैतान का भाई है, उसी तरह दारोगा को भी मै इतना बुरा नहीं समझता था और राजा गोपालसिह की तरह मुझे भी विश्वास था कि जमानिया की उस गुप्त कुभेटी से इन दोनों का कुछ भी सम्बन्ध नहीं है मगर हरदीन ने मेरी आँखें खोल दी और साबित कर दिया कि जो कुछ हम लोग सोचे हुए थे वह हमारी भूल थी। खैर मैं रघुबरसिह के साथ ही वाग के बाहर निकला और दर्वाजे पर आया। कसे कसाये दो घोडे दिखे जिनमें एक तो खास रघुबरसिह का घोडा था और दूसरा एक नया और बहुत ही शानदार वही घोडा था जिसकी रघुबरसिह ने तारीफ की थी। मैं उस घोडे पर सवार होने वाला ही था कि हरदीन दौड़ा दौड़ा बदहवास मेरे पास आया और बोला, घर में यहूजी (मेरी स्त्री) को न मालूम क्या हो गया है कि गिर कर बेहोश हो गई है और मुह से खून निकल रहा है, जरा चल कर देख लीजिए।' देवकीनन्दन खत्री समग्र