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Gri खबर न थी, अगर खबर होती तो मेरे और कुन्दन में जुदाई न रहती। मगर मुझे इस बात का ताज्जुब जरूर है कि घर पहुचने पर भी धनपति ने वहाँ की बहुत सी बातें मुझसे छिपा रक्खीं। किशोरी-अच्छा यह तो बताओ कि रोहतासगढ में जो तस्वीर तुमने कुन्दन को दिखाने के लिए मुझे दी थी वह तुम्हें कहाँ से मिली थी और तुम्हें तथा कुन्दन को उसका असली हाल क्योंकर मालूम हुआ था? लाडिली-उन दिनों में यह जानने के लिए बेताब हा रही थी कि कुन्दन असल में कौन है। मुझे इस बात का भी शक हुआ था कि वह राजा साहब (बीरेन्द्रसिह) की कोई ऐयारा होगी और यही शक मिटाने के लिए मैन वह तस्वीर खुद बना कर उसे दिखाने के लिए तुम्हें दी थी। असल में उस तस्वीर का भेद हम लोगों को मनोरमा की जुबानी मालूम हुआ था. और मनोरमा ने इन्दिरा से उस समय सुना था जब मनोरमा को मा समझे के वह उसके फेर में पड़ गई थी। किशोरी-ठीक है मगर इसमें भी कोई शक नहीं कि इन सब बखेडों की जड वहीं कम्बख्त दारोगा है। यदि जमानिया के राज्य में दारोगा न होता तो इन सब बातों में से एक भी न सुनाई देती और न हम लोगों को दुखमय कहानी का कोई अश लोगों के कहने सुनने के लिए पैदा होता (कमलिनी से) मगर बहिन, यह तो बताओ कि इस हरामी के पिल्ले ( दारोगा ) का कोई वारिस या रिश्तेदार भी दुनिया में है या नहीं ? कम-सिवाय एक के और कोई नहीं ! दुनिया का कायदा है कि जब आदमी भलाई या बुराई कुछ सीखता है तो पहिल अपने घर ही से आरम्भ करता है। माँ बाप के अनुचित लाड़ प्यार और उनकी असावधानी से बुरी राह पर चलने वाले लडके घर ही में श्रीगणेशाय करते है और तब कुछ दिन के बाद दुनिया में मशहूर होने योग्य होते हैं। यही बात इस हरामखोर की भी थी, इसने पहिले अपने नाते रिश्तेदारों ही पर सफाई का हाथ फेरा और उन्हें जहन्नुम में मिलकर समय के पहले घर का मालिक बन बैठा। साधु का भेष धरना इसने लडकपन ही से सीखा है और विशेष करके इसके इसी भेष की बदौलत लोग धोखे में भी पडे। हमारे राजा गोपालसिह ने भी (मुस्कुराती हुई) इसे वशिष्ट ऋषि ही समझ कर अपने यहॉ रक्खा था। हाँ इसका एक चचेरा भाई जरूर बच गया जो इसके हत्थे नहीं चढा था क्योंकि वह खुद' भी परले सिरे का बदमाश था और इसी करतूतों को खूब समझता था जिससे लाचार होकर इसे उसकी खुशामद करनी ही पड़ी और उसे अपना साथी बनाना ही पडा। किशोरी क्या वह मर गया? उसका क्या नाम था? कमलिनी-नहीं वह मरा नहीं मगर मरने के ही बराबर है, क्योंकि यह हमारे यहा कैद है। उसने अपना नाम शिखण्डी रख लिया था। तुम जानती ही हो कि जब मैं जमानिया के खास बाग के तहखाने और सुरग की राह से दोनों कुमारों तथा बाकी कैदियों को लेकर बाहर निकल रही थी तो हाथी वाले दरवाजे पर उसने इनके (इन्दजीतसिह ) के ऊपर वार किया था किशोरी-हॉ हॉ ता क्या वह वही कम्बख्त था? कमलिनी-हॉ वही था। उसे मैं अपना पक्षपानी समझती थी मगर बईमान ने मुझे धोखा दिया। ईश्वर की कृपा थी कि पहिले ही वार में वह उसी जगह गिरफ्तार हो गया नहीं तो शायद मुझे धोखे में पड कर बहुत तकलीफ उठानी पडती और कमलिनी ने इतना कहा ही था कि उसका ध्यान सामने के जगल की तरफ जा पडा। उसने देखा कि कुअर आनन्दसिह एक सब्ज घोडे पर सवार सामने की तरफ से आ रहे हैं, साथ में केवल तारासिह एक छोटे टटटू पर सवार बातें करत आ रहे हैं और दूसरा आदमी साथ नहीं है। साथ ही इसके कमलिनी को एक और अदभुत दृश्य दिखाई दिया जिससे वह एकाएक चौक पड़ी और इसलिए उसका तथा और सभों का ध्यान भी उसी तरफ जा पड़ा। उसने देखा कि आनन्दसिह और तारासिह जगल में स निकल कर कुछ दूर मैदान में आये थे कि यकायक एक बार पुन पीछे की तरफ घूम और गौर के साथ कुछ देखने लगे। कुछ ही देर बाद और भी दस बारह नकाबपोश आदमी हाथ में तीर कमान लिए दिखाई पडे जा जगल से बाहर निकलते ही इन दोनों पर फुर्ती के साथ तीर चलाने लगे। ये दोनों भी म्यान से तलवार निकालकर उन लोगों की तरफ झपट और देखते ही दखते सब के सब लडते भिडते पुन जगल में घुस 'देखिय चन्द्रकान्ता सन्तति तीसरा भाग दसवाँ बयान, और उन्नीसवाँ भाग छठवा ययान ।

    • देखिये आठवा भाग दूसरा बयान।

देवकीनन्दन खत्री समग्र ९८०