पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९७१

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ori से पतित-पावनी भगवती जहनवी की तरल तरगों की सुन्दर छटा दिखाई देती थी जो उदास से उदास और युझे दिल को गी एक दफ प्रसन्न करने की सामर्थ्य रखती थी परन्तु इस समय अधकार के कारण कामिनी उस छटा का नहीं देख सकती थी और इस सबब से आसमान की तरफ देख कर भी वह इस बात का पता न लगा सकी कि अब रात कितनी वाकी है. मगर सवेरा होने में अभी देर है इतना जान कर उसके दिल को कुछ भरोसा हुआ। उसी समय सरकारी पहरे वाले ने घड़ी बजाई जिसे सुन कामिनी ने निश्चय कर लिया कि रात अभी दो घटे से कम याकी नहीं है उसने उसी तरफ की एक और खिडकी खोल दी और तब उस जगह चली गई जहाँ चौकी के ऊपर गगा-जमुनी लोटे में जल रक्खा हुआ था। उसी चौकी पर से एक रूमाल उठा लिया और उसे गीला करके अपना मुँह अच्छी तरह पोछने अथवा धोने के बाद रूमाल खिड़की के बाहर फेंक दिया और तब उस जगह चली आई जहाँ आनन्दसिह गहरी नीद में सो रहे थे। कामिनीन आचल के कपडे से एक मामूली बत्ती बनाई और नाक में डाल कर उसके जरिये से दो तीन छीके मारी जिसकी आवाज से आनन्दसिह को आँख खुल गई और उन्होंने अपन पास कामिनी को बैठे हुए देख कर ताज्जुबसे कहा, 'है. तुम बैठी क्यों हो? खैरियत तो है ! कामिनी-जी हाँ मेरी तबीयत तो अच्छी है मगर तरददुद और सोच के भारे नींद नहीं आ रही है। बहुत देर से जाग रही है। आनन्द-( उठ कर ) इस समय भला कौन से तरकुंद और सोच ने तुम्हें आ घेरा? कामिनी-क्या कहू, कहते हुए भी शर्म मालूम पड़ती है ? आनन्द-आखिर कुछ कहा तो सही, शर्म कहाँ तक करोगी? कामिनी-खैर मैं कहती हू मगर आप बुरा तो नहीं मानेंगे । आनन्द में कुछ भी बुरा न मानूगा. तुम्हें जो कुछ कहना है कहो । कामिनी--बात केवल इतनी ही है कि मै छोटे कुमार से एक दिल्ली कर बैठी हूँ मगर आज उस दिल्लगी का भेद जरूर खुल गया होगा इसलिए सोच रही है। अब क्या करूँ? इस समय कामिनी बहिन से भी मुलाकात नहीं हो सकती जो उनको कुछ समझा बुझा देती। आनन्द-(ताज्जुब में आकर तुमने कोई भयानक सपना तो नहीं देखा जिसका असर अभी तक तुम्हारे दिमाग में घुसा हुआ है ? मामला क्या है ? तुम कैसी बातें कर रही हो ! कामिनी-नहीं नहीं कोई विशेष बात नहीं है और मैने कोई भयानक सपना भी नहीं दखा, बात कवल इतनी ही है कि मैं हसी हसी में छोटे कुमार से कह चुकी है कि मेरी शादी अभी तक नहीं हुई है और में प्रतिज्ञा कर चुकी है कि व्याह कदापि न करेगी। अब आज ताज्जुब नहीं कि कामिनी बहिन ने मेरा सच्चा भेद खोल दिया हो और कह दिया हो कि 'लाडिली की शादी तो कमलिनी की शादी के साथ ही साथ अर्थात दानों की एक ही दिन हो चुकी है और आज उसकी भी सोहगरात है। अगर ऐसा हुआ तो मुझे बडी शम आनन्द-(ताज्जुब और घबराहट से ) तुम तो पागलों की सी बातें कर रही हो । आखिर तुमने अपने को और मुझका समझा ही क्या है ? जरा धूघट हटा कर बातें करो। तुम्हारा मुँह तो दिखाई ही नहीं देता ।। कामिनी-नहीं मुझे इसी तरह बैठे रहने दीजिए। मगर आपने क्या कहा मै कुछ भी नहीं समझी इसमें पागलपने की भला कौन सी बात है? आनन्द-तुमने जरूर काई सपना देखा है जिसका असर अभी तक तुम्हारे दिमाग में बसा हुआ है और तुम अपने को लाडली समझ रही हो। ताज्जुब नहीं कि लाडिली ने तुमसे वे बातें कही हों जो उसने मुझसे दिल्लगी के ढग पर की थी। कामिनी-मुझे आपकी बातों पर ताज्जुब मालूम पडता है। मैं समझती हू कि आप ही ने कोई अनूठा स्वप्न देखा है और यह भी देखा है कि कामिनी आपके बगल में पड़ी हुई है जिसका ख्याल अभी तक बना हुआ है और मुझे आप कामिनी समझ रहे हैं। भला सोचिए ता सही कि छोटे कुमार (आनन्दसिह) को छोड कर कामिनी आपके पास आने ही क्यों लगी? कहीं आप मुझसे दिल्लगी तो नहीं कर रहे है ? कामिनी की आखिरी बात का सुन कर आनन्दसिह बहुत बेचैन हो गय और उन्होंने घक्डा कर कामिनी के मुँह से घूघट हटा दिया, मगर शमादान की रोशनी में उसका खूबसूरत चेहरा देखते ही वे चौक पड और बोले-- है ! यह मामला क्या है ? लाडिली को मेरे पास आने की क्या जरूरत थी? वशक तुम लाडिली मालूम पडती हो? कहीं तुमने अपना धहरा रगा तो नहीं है? कामिनी-(घबराहट के ढग पर) आपकी बात तो मरे दिल में हौल पैदा करती है !न मालूम आप क्या कह रहे है चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २३ ९६५