पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९७

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इनाम बहुत बॉटत थे और इनाम में नकद रूपये न देकर अच्छे अच्छे गहने, जेवर, कपड़े, बर्तन, इत्यादि बॉटा करते थे, और इसी सवव से उनके मुसाहब नौकर कारगुजार और अन्य लोग भी उन्हें खुश करने की चेष्टा करते थे और प्रजा का किसी बात की कमी नहीं रहती थी और न किसी तरह का कष्ट होता था। राजा नारायणदत्त का हाल जो हम ऊपर लिख आर्य है दीवान का वीरसेन कुसुमकुमारी और उसकी रिआया को अच्छी तरह मालूम था क्योंकि राजा साहब दूर रहने पर भी कुसुमकुमारी के हालचाल की खबर रखत थे ओर आवश्यकता पड़ने पर कुसुमकुमारी भी उनसे मदद और राय लिया करती थी। जब दीवान साहब और बीरसिह राजा साहब के सामने पहुचे तो दोनों ने प्रणाम किया। राजा साहब ने उन्हें अपने सामने चटाई पर बैटने की आज्ञा दी और प्रसन्नता के साथ बातचीत करने लगे- राजा-कहो तुम लोग अच्छे तो हो? दोनों (हाथ जोड के) महाराज के आशीर्वाद से सब कुशल है ! राजा-कुसुमकुमारी और उसकी प्रजा प्रसन्न है ? दोनों-रानी कसुमकुमारी महाराज का आगमन सुन कर बहुत प्रसन्न है और उनकी प्रजा भी दिन रात महाराज का मगल मनाया करती है। बीरसेन महाराज ने अपने आने की कोई सूचना नहीं दी थीइसीलिप हम लोग इससे पहिले सेवा में उपस्थित न हो सके। राजा यह तो हमारा घर है, घर में आने की सूचना कैसी? जब आवश्यकता हुई आ गए और जब समय आया चले गए । दीवान-हम लोगों को इस बात की बडी लज्जा है कि आपका अमूल्य रत्न रनबीरसिह हमारे यहाँ से खो गया और हमलोग महाराज के आगे दिखाने योग्य नहीं रहे, यद्यपि अभी तक खोज हो रही है परन्तु पता नहीं लगा। राजा-उसके लिये खेद करने की आवश्यकता नहीं मुझे खवर मिल चुकी है कि वह प्रारब्ध और उद्योग का आनन्द लेने गया है और अब शीघ्र ही हम लोगों से मिलने वाला है। बीरसेन-(उत्कठा से) कब तक उनके दर्शन होंगे? राजा-जहा तक मैं समझता हू आज कल के बीच ही में हमलोग यकायक उसी कमरे के अन्दर देखेंगे जिसमें उसके तथा कुसुमकुमारी के सम्बन्ध की तस्वीरें लिखी हुई है और इसलिये में यहा आया भी हू। (कुछ सोच कर) ईश्वर की माया बड़ी प्रयल है. इसी दो दिन में कई छिपे हुए भेद भी खुलने वाले है और बिहार तथा तेजगढ दोनों राजधानियों की कायापलट होने वाली है, प्रारब्ध और उद्योग दोनों एक से एक बढ के हैं इसमें कोई सन्देह नहीं। वीरसेन और दीवान साहब ने आश्चर्य के साथ राजा साहब की बातें सुनीं । उद्योग तथा प्रारब्ध के खटके ने उनके दिल में भी जगह पकडली वे दोनों सिर नीचा कर के सोचने लगे कि इस विषय में राजा साहब से और कुछ पूछना उचित होगा या नहीं? राजा-(दीवान से) क्यों सुमेरसिह तुम्हें कुछ पिछली बातें याद है ? दीवान-(हाथ जोड के) बहुत अच्छी तरह से, वे बातें इस योग्य नहीं कि भूल जाऊँ। राजा-अच्छा जो कुछ भूला भटका हो उसे भी याद कर लो क्योंकि कल तुम लोग एक अनूठा और आश्चर्यजनक तमाशा देखने वाले हो। दीवान-सो क्या महाराज? राजा-सो सब कल ही मालूम होगा जव में उस चित्रवाले कमरे में बैठा हाऊँगा जिसमें कुसुम और रनवीर के सम्बन्ध की तस्वीरें लिखी हुई है। दीवान-तो अव महाराज को यहाँ से प्रस्थान करने में क्या विलम्ब है? राजा-कुछ नहीं मैं वहाँ चलने के लिये तैयार बैठा हू और इसीलिये कुसुम के पास कहला भेजा था (पाहर की तरफ मुँह करक) कोई है? इतना सुनते ही एक चोवदार रावटी के अन्दर घुस आया और हाथ जोड़ कर सामने खड़ा हो गया। राजा-(चौवदार से) मैं इसी समय तेजगढ जाने वाला हू लश्कर से सिवाय तुम्हारे और काई आदमो मेरे सायन जायगा। चोबदार-जो आज्ञा। इतना कह कर चोबदार चला गया और थोड़ी देर में फिर हाजिर होकर बोला, 'सवारी तैयार है। कुसुम कुमारी ११०५