पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९६५

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इन्द्र-( मुस्कुरा कर ) फिर तुमने वही रास्ता पकड़ा? खैर मैं इस बात की इजाजत न दूंगा। कम-ता मैं आज्ञा के विरुद्ध कुछ न करेंगी इन्द-(भैरो से) इनकी बातचीत का ढग देखत हो? भैरो (हस कर ) शादी हो जाने पर भी ये आपको नहीं छोडा चाहती तो मै क्या करूँ। कम-अच्छा मुझे एक बात की इजाजत तो जरुर दीजिए। इन्द-वह क्या? कम-आपकी शादी में मैं आपस एक विचित्र दिल्लगी किय थाहती हूँ। इन्द-वह कौन सी दिल्लगी होगी? कम-यही बता दूंगी तो उसमें नजर ही क्या रह जायगा? बस आप कह दीजिए कि उस दिल्लगी से रजन होंगे चाहे वह कैसी ही गहरी क्यों न हो। इन्द-(कुछ सोच कर ) खैर में रज न होऊँगा। इसके बाद थाडी दर तक हसी की बातें हाती रहीं और फिर सब काइ उठ कर अपन अपने ठिकाने चले गय । बारहवां बयान याह की तैयारी और हँसी खुशी में ही कई सप्ताह बीत गये और किसी को कुछ गालूम न हुआ ! हॉ अर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह को खुशी के गथ ही रज और उदासी से भी मुकाबला करना पड़ा। यह रज और उदासी क्यों? शायद कमलिनी और लाडिली के सवव से हा। जिस तरह कुअर इन्द्रजीतसिह कमलिनी से मिल कर आर उसकी जुवानी ज्सक न्याह का हो जाना सुनकर दुखी हुए. उसी तरह आनन्दसिह को भी लाडिली से मिल कर दुखी होना पडा या नहीं सो हम नहीं कह सकते क्योंकि लाडिली से और आनन्दसिह सजा वातें हुईउससे और कमलिनी की बातो से बडा फर्क है। कमलिनी ने तो खुद इन्दजीतसिह को अपने कमरे में बुलवाया था मगर लाडिली ने ऐसा नहीं किया। लाडिली का कमर, मी आनन्दसिह के कमरे के बगल ही मे था ! जिस रात कमलिनी से और इन्द्रजीतसिह से दूसरी मुलाकात हुई थी उसी रात को आनन्दसिंह ने भी अपने बगल वाले कमरे में लाडिली को देखा था मगर दूसरे ढग से। आनन्दसिह अपने कमरे में मसहरी पर लेटे हुए तरह तरह की बातें साध रहे थे कि उसी समय बगल वाले कमरे में से कुछ खटके की आवाज आई जिसे आनन्दसिह चौके और उन्हान धूमकर देखा तो उस कमर का दरवाजा कुछ खुला हुआ नजर आया। इन्हें यह जरूर मालूम था कि हमार बगल ही में लाडिली का कमरा है और उससे मिलने की नीयत से इन्होंने कई दफे दरवाजा खोलना भी चाहा था मगर चन्द पाकर लाचार हो गये थे। अब दरवाजा खुला णकर बहुत खुश हुए और मसहरी पर से उठ धीर धीरे दरवाजे के पास गये। हाथ के सहारे दरवाजा कुछ विशेष स्रोला और अन्दर की तरफ झाक कर देखा ! लाडिली पर निगाह पड़ो जो एक शमादान के आरोचैटी हुई कुछ लिख रही थी। शायद उसे इत्त बात की कुछ खयर ही न थी कि मुझे कोई देख रहा है। भीतर सन्नाटा पाकर अर्थात् किसी और को न देख कर आनन्दसिह बेरडक कमरे के अन्दर चले गये। पैर की आहट गते ही लाडिली चौको तथा आनन्दसिह को अपनी तरफ आते देख उट खड़ी हुई और योली, आपने दरवाजा कैस खोल लिया? आनन्द-(मुस्कुराते हुए) किसी हिकमत से ! लाडिली-क्या आज के पहिले वह हिकमत मालूम न थी? शायद सफाई के लिए किसी लौडी ने दरवाजा खोला हो और बन्द करना भूल गई हो। आनन्द-अगर ऐसा ही हो तो क्या कुछ हर्ज है ? लाडिली-नहीं हर्ज काहे का है, मैं तो खुद हो आपसे मिला चाहती थी मगर लाचारी- आनन्द-साचारी कैसी? क्या किसी ने मना कर दिया था ? लाहिली--मना ही समझना चाहिये जब कि मेरी बहिन कमलिनी ने जोर देकर कह दिया कि “या तो तू मेरी इच्छानुसार शादी कर ले या इस बात की कसम खा जा कि किसी गैर मर्द स कभी बातचीत न करेगी। जिस समय उनकी (क्मलिनी की शादी हाने लगी थी उस समय भी लोगों ने मुझ पर शादी कर लने के लिए दबाव डाला था मगर मै इस समय जैसी हूवैसी ही रहने के लिए कसम खा चुकी है, मतलब यह है कि इसी बखेडे में मुझस और उनसे कुछ तकरार भी हो गई है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २२ ९५९