पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९५९

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६ 1 थाडी दर तक सब कोई उस चबूतरे की बनावट देखत रहे इसके बाद इन्द्रदेव ने महाराज से कहा तिलिस्म बनाने वालों ने यह बागीचा कवल तमाशा देखने के लिए बनाया था। यहाँ की कैफियत आपके साथ रह कर मैनहीं दिखा सकता हॉ यदि आप मुझ दो तीन पहर की छुट्टी दें तो " इन्द्रदव की बात महाराज ने मजूर कर ली और तब वह (इन्द्रदेव) सभों के दखते दखते चौखूटे पत्थर के ऊपर चले गए जा चबूतर के बीच में जडा हुआ था। सवार होन क साथ ही वह पत्थर हिला और इन्द्रदेव को लिए हुए जमीन क अन्दर चला गया मगर थाडी देर तक तो सब कोई उस चबूतरे पर खडे रह इसके बाद धीर धीरे वह चबूतरा गरम होन के अन्दर चला गया मगर थोडी देर में पुन ऊपर चला आया और अपने पर ज्यों का त्यों बैठ गया लेकिन इस समय इन्ददेव उस पर न थे। इन्द्रदव के चले जाने बाद थोडी देर तक तो सव कोई उस चबूतरे पर खडेरहे इसके बाद धीरे-धीरे वह चबूतरा गरम होने लगा और यह गर्मी यहॉ तक बढ़ी कि लाधार उन सभों को चबूतरा छोड देना पडा अर्थात् सव कोई चबूतरे के नीचे उतर आए और बाग में टहलने लगे। इस समय दिन घण्टे भर स कुछ कम बाकी था । इस ख्याल से कि दख इसकी दीवार किस ढग की बनी हुई हे सब कोई घूमते हुए पूरब तरफ वाली दीवार के पास जा पहुच और गौर से देखन लग मगर कोई अनूठी बात दिखाई न दी। इसके बाद उत्तर तरफ वाली और फिर पश्चिम तरफ वाली दीवार का देखते हुए सब कोई दक्खिन तरफ गए और उधर की दीवार को आश्चर्य के साथ देखने लगे क्योंकि इसमें कुछ विचित्रता जरूर थी ! “यह दीवार शीश की मालूम होती थी और इसमें महाभारत की तस्वीरें बनी हुई थी। ये तस्वीरें उसी ढग की थी जैसी कि उस तिलिस्मी बगले में चलती फिरती तस्वीरें इन लोगों न देखी थीं। ये लोग तस्वीरों को बडी देर तक देखते रहे और सभों को विश्वास हो गया कि जिस तरह उस वगले वाली तस्वीरों को चलते फिरते और काम करते हम लोग देख चुके हैं उसी तरह इन तस्वीरों को भी देखेंगे क्योंकि दीवार पर हाथ फेरने से साफ मालूम होता था कि तस्वीरें शीशे के अन्दर हैं। इन तस्वीरों को देखने से महाभारत की लडाई का जमाना आँखों के सामने फिर जाता था। कोरवों और पाण्डवों की फौज बडे बड सेनापति तथा रथ,हाथी,घाड इत्यादि जो कुछ बने थे सभी अच्छे और दिल पर असर पैदा करने वाले थ! इस लडाइ की नकल अपनी आँखों से देखेंगे इस विचार से सब काई प्रसन्न थे। बड़ी दिलचस्पी के साथ उन तस्वीरों का दख रहे थे यहाँ तक कि सूर्य अस्त हो गया और धीरे धीरे अन्धकार ने चारो तरफ अपना दखल जमा लिया। उस समय यकायक दीवार चमकने लगी और तस्वीरों में हरकत पैदा हुई जिमसे सभों ने समझा कि नकली लडाई शुरु हुआ चाहती हे मगर कुछ ही देर बाद लोगों का यह विश्वास ताज्जुब के साथ बदल गया जब यह देखा कि उसमें की तस्वीर एक-एक करक गायब हो गई है यहाँ तक कि घडी भर के अन्दर ही सब तस्वीरें गायब हो गई और दीवार साफ दिखाई दने लगी। इसके बाद दीवार की चमक भी बन्द हो गई और फिर अन्धकार दिखाई देने लगा ! थाडी दर बाद उस चबूतरे की तरफ रोशनी मालूम हुई। यह देख कर सब कोई उसी तरी रवाना हुए और जब उसके पास पहुचे ता दखा कि उस चबूतरे की छत में जड़े हुए शीशों के दस बारह टुकर्ड इस तेजी के साथ चमक रहे है कि जिसमें कवल चबूतरा ही नहीं बल्कि तमाम बाग उजाला हो रहा है। इसके अतिरिक्त सैकडों मूरतें भी उस चबूतरे पर इधर उधर चलती फिरती दिखाई दी। गौर करने से मालूम हुआ कि ये मूरतें ( या तस्वीरें ) बेशक वे ही है जिन्हें उस दीवार के अन्दर दख चुके है। ताज्जुब नहीं कि वह दीवार इन सभा का खजाना हो और वे ही यहा इस चबूतरे पर आकर तमाशा दिखाती हो। इस समय जितनी मूरतें उस चबूतरे पर थीं सब अर्जुन क पुत्र अमिमन्यु की लडाई स सम्बन्ध रखती थीं। जब उन मूरतों न अपना काम शुरु किया तो ठीक अभिमन्यु की लडाई का तमाशा आखों के सामने दिखाई देने लगा। जिस तरह कोरवों क रचे हुए व्यूह के अन्दर फंस कर कुमार अभिमन्यु ने वीरता दिखाई थी और अन्त में अधर्म के साथ जिस तरह वह मारा गया था उसी को आज नाटक स्वरुप में देख कर सब कोई बडे प्रसन्न हुए और सभों के दिलों पर बहुत देर तक इसका असर रहा। इस तमाशे का हाल खुलासे तौर पर हम इसलिए नहीं लिखते कि इसकी कथा बहुत प्रसिद्ध है और महाभारत में विस्तार के साथ लिखी है। यह तमाशा थाडी ही देर में खत्म नहीं हुआ बल्कि दखते देखते तमाम रात बीत गई। सवेरा हाने के कुछ पहिले अन्धकार हो गया और उसी अन्धकार में सब मूरतें गायब हो गई। उजाला होने और ऑखें ठहरन पर जव सभों ने देखा तो उस चपतर पर सिवाय इन्ददव के और कुछ भी दिखाई न दिया । चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २२