पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९३५

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३ कदापि उल्लघन नहीं कर सकता अस्तु मै अपनी अद्भुत जीवनी सुनने के लिए तैयार हू, परन्तु, इतना कहकर भूतनाथ ने एक लम्बी सास ली और महाराज सुरन्द्रसिह की तरफ देखा। सुरेन्द्र-भूतनाथ यद्यपि हमलोग तुम्हारा कुछ-कुछहाल जान चुके हैं मगर फिर भी तुम्हारा पूरा-पूरा हाल तुम्हार ही मुँह से सुनन की इच्छा रखते है। तुम बयान करने में किसी तरह का सकाच न करो। इससे तुम्हारा दिल भी हल्का हो जायगा और दिन-रात जा तुम्हें सुटका बना रहता है वह भी जाता रहा। भूत-जा आज्ञा। इतना कहकर नूतनाथ न सलाम किया और अपनी जीवनी इस तरह बयान करने लगा - भूतनाथ की जीवनी मूर्त-सवक पहिल में वही बात कहूगा जिसे आप लोग नहीं जानते अर्थात मै नौगढ के रहने वाले और देवीसिह के सग चाचा जीवनसिह का लडका हू। मरी सौतेली माँ मुझ देखना पसन्द नहीं करती थी और मैं उसकी आँखों में कॉटे की तरह गडा करता था। मेरे ही सबब स मेरी माँ की इज्जत और कदर थी और उस बॉझ को कोई पूछता मी न था अतएव वह मुझ दुनिया से ही उठा देने की फिक्र में लगी और यह बात मेरे पिता को भी मालूम हो गई इसलिए जब कि मै आठ वर्ष का था मेर पिता न मुझे अपने मित्र देवदत्त उमचारी के सुपुर्द कर दिया जो तेजसिह के गुरु *थ और महात्माओं की तरह नौगढ की उस तिलिस्मी खोह में रहा करतथे जिसे राजा वीरेन्द्रसिहजी ने फतह किया। मैं नहीं जानता कि मेरे पिता ने मर विषय में उन्हें क्या समझाया और क्या कहा परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि बसचारीजी मुझे अपने लडके की तरह मानते, पढाते-लिखाते और साथ-साथ ऐयारी भी सिखाते थे परन्तु जडी बूटियों के प्रभाव से उन्होंने मेरी सूरत में बहुत बडा फर्फ डाल दिया था जिसमें मुझे कोई पहिचान न ले। मेर पिता मुझे देखने के लिए बराबर इनके पास आया करते थे। इतना कहकर भूतनाथ कुछ देर के लिए चुप रह गया और सभों के मुह की तरफ देखने लगा। सुरेन्द-(ताज्जुब क साथ) ओफ ओह !क्या तुम जीवनसिह क वही लडके हो जिसके बार में उन्होंने मशहूर कर दिया था कि उस जगलम शेर उठा ले गया !! भूत-(हाथ जोडकर ) जी हाँ! तेज-और आप वहीं है जिसे गुरुजी फिरकी कह के पुकारा करते थे क्योंकि आप एक जगह ज्यादा देर तक बैठते नधे। भूत-जी हाँ। देवी-यद्यपि मैं बहुत दिनों से आपको भाई की तरह मानने लग गया हूँ परन्तु आज यह जानकर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा कि आप वास्तव में मेरे भाई हैं.मगर यह तो बताइए कि ऐसी अवस्था में शरसिह आपक भाई क्योंकर हुए? वह कौन है? भूत-वास्तव में शेरसिह मरा भाई नहीं है बल्कि गुरुमाई और उन्हीं बहधारीजी का लडका है भगर हॉ लडकपन ही से एक साथ रहने के कारण हम दोनों में भाई की सी मुहब्बत हो गई थी। तेज-आजकल शरसिह कहाँ है? भूत-मुझ रन्की कुछ भी खबर नहीं है मगर मेरा दिल गवाही देता है कि अब वे हम लोगों को दिखाई न देंगा वीरेन्द-सा क्या? भूत-इसीलिए कि ये भी अपने को छिपाये और हम लोगों में मिल जुले रहते। और साथ ही इसके ऐबों से खाली सुरेन्द्र-खर कोई चिन्ता नहीं अच्छा तब? भूत-जन्तुम उन्ही ब्रह्मचारीजीके पास रहने लगा। कई वर्ष बीत गये। पिताजी मुझसे मिलन के लिएकभी-कभी आया करतथ और जब मै बडा हुआ तो उन्होंने मुझे अपने से जुदा करने का सबब भी बयान किया और वे यह जानकर यहुत प्रसन्न हुए कि मैं एयारी के फन में बहुत तेज और हाशियार हा गया है। उस समय उन्होंन ब्रहमचारीजीस कहा कि चन्दकान्ता पहिले माग के छठे बयान में तेजसिह ने अपने गुरु के कार में वीरेन्द्रसिह स कुछ कहा था। चन्द्रकान्ता तन्तति भाग २२ ९२९