पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९३३

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ste इन्द-तीसरी एक बहुत ही गरीव नेक सूधी और जमाने की सताई हुई औरत है जिसे देखकर और जिसका हाल सुनकर महाराज का बडी ही दया आयेगी। यह वह औरत है जिसे मरे हुए एक जमाना हो गया मगर अब उसे विचित्र ढग से पैदा होते देय लोगों को बडा ही ताज्जुब होगा । महाराज-आखिर वह औरत है कौन ? इन्द-वेचारी दुखिनी कमला की मॉ यानी भूतनाथ की पहली स्त्री। यह सुनत ही भूतनाथ चिल्ला उठा और उसने बड़ी मुश्किल से अपा को बेहोश हाने स रोका। ॥ इक्कीसवाँ भाग समाप्त ॥ चन्द्रकान्ता सन्तति बाईसवां भाग पहिला बयान भूतनाथ की अवस्था ने सनों का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। कुछ देर तक सन्नाटा रहा और इसके बाद इन्द्रदेव न पुन महाराज की तरफ देखकर कहा- महाराज, ध्यान देन और विचार करने पर सभी को मालूम होगा कि आज कल आपका दार नाट्यशाला (थियेटर का धर) हो रहा है। नाटक खलकर जो जो बातें दिखाई जा सकती हैं और जिनके देखने स लागों का नसीइत मिल सकती है तथा मालूम हो सकता है कि दुनिया में जिस दर्ज तक के नेक और बद दुखिया और सुखिया. गभीर और छिछोर इत्यादि पाये जाते हैं वे सब इस समय ( आज कल) आपक यहा प्रत्यक्ष हा रहे हैं। ग्रह-दशा के फेर में जिन्होंन दुख भोगा वे भी मौजूद है और जिन्होंने अपने पैर में आप कुल्हाड़ी मारी वे भी दिखाई दे रहे हैं जिन्होंने अपन निये का फल ईश्वरेच्छा सपा लिया है वे भी आय हुए है और जिन्हें अब सजा दी जायगी वे भी गिरफ्तार किये गए हैं। बुद्धिमानों का यह कथन है कि जो बुरी राह चलेगा उसे बुरा फल अवश्य मिलेगा ठीक है, परन्तु कभी-कभी ऐसा भी होता हे कि अच्छी राह चलने वाले तथा नेक लाग भी दुख के चेहले में फस जाते हैं और दुर्जन तथा दुष्ट लोग आनन्द के साथ दिन काटत दिखाई देत है। इसे लोग ग्रह-दशा के कारण कहते है मगर नहीं इसके सिवाय कोई और बान भी जकर है। परमात्मा की दी हुई बुद्धि और विचारशक्ति का अनादर करने वाले ही प्राय सकट में पडकर तरह तरह के दुख मागते हैं। मेरे कहने का तात्पर्य यही है कि इस समय अथवा आजकल आपके यहा सब तरह के जीव दिखाई देते हैं, दृष्टान्त देने के चदले केवल इशारा करने से काम निकलता है। हा में यह कहना ता मूल ही गया कि इन्हीं में से ऐसभी जीव आए हुए हैं। जा अपन किए का नहीं बल्कि अपने सम्बन्धियों के किये हुए पापों का फल भोग रहे हैं और इसी से नाते ( रिश्ते) और सम्बन्ध का गूढ अथ भी निकलता है। यचारी लक्ष्मीदेवी की तरफ देखिये जिसने किसी का कुछ भी नहीं विगाडा ओर फिर भी हद्द दर्जे की तकलीफ उटाकर ताज्जुब है कि जोती बच गई। एसा क्यों हुआ? इसके जवाब में मैं तो यही फहूगा कि राजा गोपालसिह की बदौलत जो बेईमान दारोगा के हाथ की कठपुतली हो रहे थे और इस बात की कुछ भी खबर नहीं रखते थे कि उनके घर में क्या हो रहा है या उनके कर्मचारियों ने उन्हें कैसे जाल में फसा रक्खा है। जिस राजा को अपने घर की खबर नहोगी वह प्रजा का क्या उपकार कर सकता है, और ऐसा राजा अगर सफट में पड जाय तो आश्चर्य ही क्या है । कवल इतना ही नहीं इनके दुख भोगने का एक सबब और भी है। बडों न कहा है कि स्त्री के आग अपन भेद की बात प्रकट करना बुद्धिमानों का काम नहीं है परन्तु राजा गोपालसिह ने इस बात पर कुछ भी ध्यान न दिया और दुष्टा मायारानी की मुहब्बत में फस कर तया अपने भेदों को बता कर बर्बाद हो गये। सज्जन और सरल स्वभाव होने ही दुनिया का काम नहीं चलता कुछ नीति का भी अवलम्बन करना ही पड़ता है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २२ ९२७