पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९३१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हि बारहवाँ बयान यद्यपि भूतनाथ को तरददुदों से छुट्टी मिल चुकी थी, यद्यपि उसका कसूर माफ हो चुका था और वह महाराज के खास ऐयारों में मिला लिया गया था मगर इस जगह उस आदमी को जिसने नकाबपोशों के मकान में तस्वीर पेश करके उस पर दावा करना चाहा था देखकर उसकी अवस्था फिर बिगड़ गई और साथ ही इसके अपनी स्त्री को भी वहाँ काम करते हुए देखकर उसे क्रोध चढ आया । जब वह आदमी पानी का घडा और भारी रख कर लोट चला तब इददेव ने उस पुकार कर कहा, 'अर्जुन जरा वह तस्वीर भी तो ल आओ जिसेवार-यार तुम दिखाया करते हो और जो हमारे दोस्त भूतनाथ को डराने और धमकाने के लिए एक औजार की तरह पर तुम्हारे पास रक्खी हुई है।' इस नाभ ने भूतनाथ के कलेजे को और भी हिता दिया। वास्तव में उस आदमी का यही नाम था और इस खयाल ने तो उस ओर भी बदहवास कर दिया कि अब वह तस्वीर लेकर आयेगा। इस समय सब कोई बाग में टहल रहे थे और इसीलिए एक दूसरे से कुछ दूर हो रहे थे। भूतनाथ बढकर देवीसिह के पास चला गया और उसका हाथ पकड़कर धीरे से बोला 'देखा इन्द्रदेव का रंग-ढग?'. देवी-(धीरे से ) मे सव कुछ देख और समझ रहा हूँ मगर तुम घबडाआ नहीं। भूत-पालुम होता है कि इन्द्रदेव का दिल अभी तक नरी तरफ से साफ नहीं हुआ। वी-शायद ऐसा ही हो मगर इन्द्रदेव से ऐसी उम्मीद ही नहीं सकती, मेरा दिल इसे कबूल नहीं करता। मगर भूतनाथ तुम भी अजीब सिडी हा। भूत-सा क्या? देवी-यही कि नकाबपोशों का पीछा करके तुमने कैसे-कैसे तमाशे देखे और तुम्हें विश्वास भी हो गया कि इन नावमाशों से तुम्हारा कोई भेद छिपा नहीं है, फिर अन्त में यह भी मालूम हो गया कि इन नकाबपोशों के सार कुँअर इन्दजीतसिह और आन्न्दन्तिह थे अस्तु इन दोनों से भी अब फाई यात छिपी नहीं रही। मूत-यशक ऐसा ही है। देवी-तो फिर अब क्यों तुम्हारा दम घुटा जाता है ? अब तुम्हें किसका डर रह गया। मूत-कहते तो ठीक हो खैर कोई चिन्ता नहीं जो कुछ होगा देखा जायगा । देवी-बल्कि तुम्हें यह जानने की कोशिश करना चाहिये कि दोनों कुमारों को तुम्हारे भेदों का पता क्योंकर लगा। ताज्जुब नहीं कि अब वे सब वातं खुला चाहती हो । भूत-शायद ऐसा ही हा भगर मेरी स्त्री के बारे मे तुम क्या ख्याल करते हो ? देवीसिह-इस बार में मेरा तुम्हारा मामला एक सा हो रहा है अस्तु'इस विषय में मैं कुछ भी नहीं कह सकता। वह देखो इन्द्रदेव नेजसिह के पास चला गया है और तुम्हारी स्त्री की तरफ इशारा करके कुछ कह रहा है। तेजसिह अलग हो तो मैं उनसे कुछ पूलूं। यहां की छटा ने तो लोगों का दिल ऐसा लुमा लिया है कि सभों ने एक दूसरे का साथ ही छोड दिया। (चौंक कर ) ला दो तुम्हारा लडका नानक भी तो आ पहुँचा उसके हाथ में भी कोई तस्वीर मालूम पडती है, अर्जुन भी उसी के साथ है। भूत-(ताज्जुब से } आश्चर्य की बात है नानक और अर्जुन का साथ केसे हुआ? और नानक यहाँ आया हो क्यों? क्या अपनी माँ के साथ आया है ? क्या कपूत छोकरे ने भी मेरी तरफ से आँख फेर ली है? ओफ यह तिलिस्मी जमीन ना मेरे लिए भयानक सिद्ध हो रही है अच्छा खासा तिलिस्म मुझे दिखाई दे रहा है। जिन पर मुझे विश्वास था जिनका मुझे भरोसा था जो मेरी इज्जत करते थे यहां उन्हीं को मै अपना विपक्षी पाता हूँ और वे मुझस बात तक करना पसन्द नहीं करते। नानक और अर्जुन को भूतनाथ और दीसिह ताज्जुब के साथ देख रहे थे। नानक ने भी मूतनाथ को देखा मगर दूर ही स प्रणाम करके रह गया पास न आया और अर्जुन को लिए सीधे इन्द्रदेव की तरफ चला गया जो तजसिह से बातें कर रहे थे। इस समय आज्ञानुसार अर्जुन अपने हाथ में तस्वीर लिए हुए था और नानक के हाथ में भी एक तस्वीर थी। नानक और अर्जुन को अपने पास आते देख इन्द्रदेव ने हाथ के इशारे से उन्हें दूर ही खडेरहने के लिए कहाऔर उन्होंने भी ऐसा ही किया। कुछ देर तक और भी तेजसिह के साथ इन्ददेव बातें करता रहा इसके बाद इशारे स अर्जुन और नानक को अपने पास बुलाया और जब वे दोनों पास आ गय तो कुछ कह-सुन कर विदा किया। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २१ ९२५