पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९३

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सका। उसने कुश्ती के ढग पर दाँव पेंच करना चाहा परन्तु रनवीर ने उसका भी जवाब देकर उसे जमीन पर पटक दिया और उसकी छाती पर चढ कर ऐसा दबाया और एक दफे कूदे कि उसकी तमाम पसलियों कडकडा कर टूट गई और उसने अपनी जिन्दगी की आखिरी निगाह रनवीर पर डाल कर ऑखें उलट दी। उसके मुह से खून का सोतासा वह चला और वह फिर न उठा। दो चार दफे सॉस लेने के बाद उसकी आत्मा ने यमालय की तरफ प्रस्थान किया। रनवीरसिह उसकी छाती पर से उतरे और उस अच्छी तरह देखने और जाँचने के बाद पुन जगले के अन्दर जाकर अपने बाप के पास पहुंचे जिनके मुँह से दो दफे शाबाश शाबाश की आवाज निकल चुकी थी। हथकड़ी और वेडी खोलने के बाद वे बोले अब विलम्ब न कीजिये उठिय और मेरे साथ ही साथ इस मकान के बाहर निकल चलिये ! जरा देर रुक कर रनवीरसिह ने पहिले यही बात सोची कि किस राह से बाहर निकलना चाहिये ? जिस राह से व. आये है उस राह से या जिस राह से यह सर्दार आया था उस राह से निकल चलना चाहिय? पर अन्त में उन्होंने यही निश्चय किया कि जिस राड से हम आये हैं उसी राह से निकल चलने में सुबीता होगा। रनबीरसिह अपने पिता को लिये हुए कोठरी के बाहर निकले और ऊपर जाने वाली सीढियों पर चढा ही चाहते थे कि पीछे से आवाज आई. 'नहीं नहीं आप इधर से आइये । रनवीरसिह ने फिर कर देखा, उसी बूढी औरत पर निगाह पडी जिसके नाम की घीठी दे लाये थे जा यहाँ के मन्दिर की पुजारिन थी और जिसके साथ इस समय एक नौजवान भी था। रनबीरसिह उस नौजवान को देखकर हिचके मगर युडिया ने उनके दिल का विचार समझ कर तुरन्त कहा 'आप इसकी तरफ से (नौजवान की तरफ इशारा कर के) कुछ चिन्ता न कीजिये यह मेरा लडका है और उस चीठी में जो आप लाय थे इसी लडके के बार में इशारा किया हुआ था ! रनबीर-हों तुम्हारा लडका यही है ।" बुढिया-जी हाँ मेरा लडका यही है ! रनवीर-जिस समय मैने पहिले पहल इसे देखा था उसी समय मर दिल ने गवाही दी थी कि यह जवान बहुत नेक और धर्मात्मा जान पडता है, परन्तु न जान ऐसे दुष्ट पुरुषों का साथ क्यों दे रहा है ! नौजवान (हाथ जोडकर) इसका हाल भी आपका मालूम हो जायगा परन्तु इस समय आप विलम्ब न कीजिये और हमलोगों के पीछे पीछे चले आइये हा पहिले मुझे एक काम कर लने दीजिये। इतना कह वह नौजवान सीढी चढ कर उस कोठरी में चला गया जिसमें रनबीरसिह ने अपना आसन जमाया था और भीतर से उस कोठरी का और उसके बाद वाली दूसरी कोठरी का भी अच्छी तरह बन्द करता हुआ नीचे उतर कर फिर बोला 'हा अब आप लोग चले आइये 11 आग आगे वह नौजवान, उसके पीछे बूढी औरत फिर रनबीरसिह के पिता और सब क पीछे रनवीरसिह वहाँ से रवाना हुए। चौकठ पार हा जाने पर उन्होंने उस रास्ते को एक सुरग की तरह पर पाया जिसके खतम होने के बाद सीढी की राह से ऊपर चढना पड़ता था। वे लोग जब उस राह से बाहर निकल तो अपने को मकान के अन्त में पश्चिम तरफ की मामूली कोठरी के दर्वाजे पर पाया उस समय रनवीरसिह ने नौजवान से पूछा, अब तुम्हारी क्या राय है ?' नौजवान–पहिले आप ही बताइये कि आपकी क्या राय है ? रनवीर-नहीं पहिले तुम्हीं को अपनी राय देनी चाहिये क्योंकि मैं यहाँ की हर एक बातों से अनजान हू। नौजवान-मान लीजिय कि यहाँ पर आप हर तरह से अनजान हैं मगर यह कहिये कि अगर हम लोग आपको न मिलते तो आप क्या करते? रनवीर-अगर तुम लाग न मिलते तो मुझे बहुत व कुछ सोचना और गौर करना पडता क्योंकि मैने कई दिन की जल्दी की थी। बुढिया-(ताज्जुब से) तो क्या दो चार दिन में यहाँ आपका कोई मददगार आने वाला है और क्या वह भी आप ही की तरह से आवेगा? रनवीर-यह मै नहीं कह सकता कि कौन और किस तरह आवेगा मगर बाबाजी ने इतना कहा था कि तुम्हारे पास फलाने दिन मदद पहुँच जायगी मगर यकायक (पिताकी तरफ इशारा करके) इनकी आवाज पाकर मैं कैदखाने में चला गया और वहाँ तुम्हारे सर्दार के पहुँच जाने से उसे भी मारना पड़ा। बुढिया-मै भी यही सोचे हुए थी कि आपको मुझसे मदद लेने की जरूरत पडेगी और आपका काम दो एक रोज के बाद होगा यही बात मैंने अपने लड़के से भी कही थी। नौजवान-मुझे भी जब मॉने यह बताया कि आप फलाने है तो मैं हर एक बातों से होशियार हो गया। आज जब मैने देखा कि सर्दार को आप पर शक हुआ है और वह इस राह से कैदखाने में जा रहा है तो हम दोनों भी छिप कर उसके पीछे कुसुम कुमारी ११०१