पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९२०

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Come 1 वीरेन्द्र-हॉ हमें याद है उस मूरत को तुमने उखाड कर किसी कोठरी के अन्दर फेंक दिया था और वह फूट कर चूने की कली की तरह हो गई थी। उसी के पेट में से इन्द्र-जी हॉ। सुरेन्द-तो वह चमकती हुई चीज क्या थी और वह कहाँ है? इन्द-वह हीरे की बनी हुई एक चाभी थी जो अभी तक मेरे पास मौजूद है (जेब से निकालकर और महाराज को दिखाकर) दखिये यही ताली इस पुतली के पेट में लगती है। सभों ने उस चाभी को गौर से देखा और इन्दजीतसिह ने सभों के देखते-देखते उस चबूतरे पर बैठी हुई पुतली की नाभी में वह ताली लगाई। उसका पेट छोटी आलमारी के पल्ल की तरह खुल गया । इन्द-बस इसी में वह किताब मेरे हाथ लगी जिसकी बदौलत वह चबूतरे वाला तिलिस्म खोला । सुरेन्द-अब वह किताब कहाँ है? इन्द्र-आनन्दसिह के पास मौजूद है। इतना कहकर इन्दजीतसिह ने आनन्दसिह की तरफ देखा और उन्होंने एक छोटी सी किताब जिसके अक्षर बहुत बारीक थे महाराज के हाथ में दे दी। यह किताब भाजपत्र की थी जिस महाराज ने बडे गौर सदखा और दा तीन जगहों से कुछ पढकर आनन्दसिंह के हाथ में देते हुए कहा "इसे निश्चिन्ती में एक दफे पढ़ेंग: इन्द्र-यह पुतली वाला चबूतरा उस तिलिस्म में घुसने का दर्वाजा है। इतना कहकर इन्द्रजीतसिह ने उस पुतली के पट में (जो खुल गया था हाथ डाल के कोई पेच घुमाया जिसस चबूतरे के दाहिने तरफ वालदीवार किवाड के पल्ले की तरह धीरे-धीरे खुलकर जमीन के साथ सट गई और नीचे उतरने के लिए सीढियों दिखाई देने लगी। इन्द्रजीतसिह ने तिलिस्मी खजर हाथ में लिया और उसका कब्जा दवाकर रोशनी करते हुए चबूतरे के अन्दर घुसे तथा सभों का अपने पीछे आन के लिए कहा। सभों के पीछे आनन्दसिह तिलिस्मी खजर की रोशनी करते हुए चबूतरे के अन्दर घुसे लगभग पन्द्रह वीस चक्करदार सीढियों के नीचे उतरने बाद ये लोग एक बहुत बडे कमरे में पहुंचे जिसमें सोने-चांदी के सैकड़ों बड़े-बडहण्डे अशर्फियों और जवाहिरात स मरे पड़े हुए थे जिसे सभों ने बडे गौर और ताज्जुव के साथ देखा और महाराज ने कहा इस खजाने का अन्दाज करना भी मुश्किल है। इन्द्र-जा कुछ खजाना इस तिलिस्म के अन्दर मैने देखा और पाया है उसका वह पासँगा भी नहीं है। उसे बहुत जल्द ऐयार लोग आपके पास पहुंचावेगे। उन्हीं के साथ-साथ कई चीजें दिल्लगी की भी है जिसमें एक चीज वह भी है जिसकी बदौलत हम लोग एक दफे हँसते-हँसतेीवार के अन्दर कूद पड़े थे और मायारानी के हाथ में गिरफ्तार हो गए थे। जीत-(ताज्जुब से ) हाँ ! अगर वह चीज शीघ्र बाहर निकाल ली जाय ता (सुरेन्द्रसिह से ) कुमारों की शादी में सर्वसाधारण को उसका तमाशा दिखाया जा सकता है। सुरेन्द्र बहुत अच्छी बात है ऐसा ही होगा। इन्द्र-इस तिलिस्म में घुसन के पहिल ही मैने सभों का साथ छोड दिया अर्थात् नकाबपोशों को (कैदियों को बाहर ही छोडकर, केवल हम दोनों भाई इसके अन्दर घुसे और काम करते हुए धीरे-धीर आपकी सेवा में जा पहुंचे। सुरेन्द्र-तो शायद उसी तरह हम लोग भी सब तमाशा देखते हुए उसी चबूतरे की राह बाहर निकलेंगे? जीत-मगर क्या उन चलती-फिरती तस्वीरों का तमाशा न देखिएगा? सुरेन्द-हॉ ठीक है उस तमाशे का तो जरुर देखेंगे। इन्द्र--तो अब यहाँ से लौट चलना चाहिए क्योंकि इस कमरे के आगे बढ़ कर फिर आज ही लौट आना कठिन है इसके अतिरिक्त अब दिन भी थोडा रह गया है सध्यावन्दन और भोजन इत्यादि के लिए भी समय चाहिए और फिर उन तस्वीरों का तमाशा भी कम से कम चार-पाँच घण्टे में पूरा होगा। सुरेन्द्र क्या हर्ज है लौट चलो। महाराज की आज्ञानुसार सब कोई वहाँ से लौटे और घूमत हुए बेंगले के बाहर निकल आये देखा तो वास्तव में दिन बहुत कम रह गया था। --- देवकीनन्दन खत्री समग्र ९१२ {