पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९०६

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वि लौडिया उसकी खिदमत के लिए हाजिर थीं जिनमें से एक ने आगे बढ कर स्माल से उसके ऑसू पोंछे और पीछे हट गई। मैंने अफसोस के साथ पूछा कि 'सय यह तेरा क्या हाल है ? इसके जवाब में स! ने बहुत बारीक आवाज में रूककर कहा, भैया. (क्योंकि वह ग्राय मुझे मैया कहकर ही पुकारा करती थी) मेरी बुरी अवस्था हो रही है। अब मेरे बचने की आशा न करनी चाहिए। यद्यपि दारोगा साहब ने मुझे कैद किया था मगर में इनका एहसान मानती हूँ कि इन्होंने मुझे किसी तरह की तकलीफ नहीं दी बल्कि इस बीमारी में मेरी बडी हिफाजत की, दवा इत्यादि का भी पूरा प्रबन्ध रक्खा मगर यह न बताया कि मुझे कैद क्यों किया था। खैर जा हो इस समय तामें आखिरी दम का इन्तजार कर रही हूँ और सब तरफ से माहमाया को छोड ईश्वर से लौ लगाने का उद्योग कर रही हूँ। मैं समझ गई हूँ कि तुम मुझे लने के लिए आए हो मगर दया कर के मुझ इस जगह रहने दा और इधर-उधर कहीं मत ले,जाआ क्योंकि इस समय में किसी अपने को देख माया-मोह में आत्मा को फंसाया नहीं चाहती ओर न गगाजी का सम्बन्ध छोडकर दूसरी किसी जगह मरना ही पसन्द करती हूँ यहाँ यों भी अगर गगाजी में फेंक दी जाऊँगी तो मेरी सदगति हो जायगी बस यही आखिरी प्रार्थना है। एक बात और भी है कि मेरे लिएदारोगा साहब को किसी तरह की तकलीफ न देना और ऐसा करना जिसमें इनकी जरा बेइज्जती न हा यह मेरी वमीयत है और यह मेरी आरजू। अब श्रीगगाजी का छुडाकर मुझनर्क में मत डालो। इतना कह स'कुछ दर के लिए चुप हा गई और मुझे उसकी अवस्था पर रुलाई आने लगी। में और भी कुछ देर तक उसके पास बैठा रहा और धीरे-धीरे बातें भी होती रही मगर जो कुछ उसने कहा उसका तत्त्व यही था कि मुझे यहा से मत इटाओ ओर दारोगा को कुछ तकलीफ मत दो। उस समय मेर दिल में यही बात आई कि इन्द्रदेव को इस बात की इत्तिलादे देनी चाहिए. वह जैसी आज्ञा देंगे किया जायेगा। मगर अपना यह विचार मैंने दारोगा से नहीं कहा क्योंकि उसे मैं इन्द्रदेव की तरफ से बेफिक्र कर चुका था और कह चुका था किसयू और इन्दिरा के साथ जो कुछ बर्ताव तुमने किया है उसकी इतिला में इन्द्रदेव को न दूगा, दूसरे को क्सूरवार ठहरा कर तुम्हारा नाम बचा जाऊगा । अस्तु मै स! से दूसरे दिन मिलने का वादा करके वहा से उठा और अपने डेरे पर चला आया। यद्यपि रात बहुत कम बाकी रह गई थी परन्तु मैन उसी समय अपने एक आदमी को पत्र देकर इन्द्रदेव के पास रवाना कर दिया और ताकीद कर दी कि एक घोड़ा किराए का लेकर दौड़ा-दौड चला जाय और जहा तक जल्द हो सके पत्र का जवाब लेकर लौट आवे। दूसरे दिन आधी रात जात जाते वह आदमी लोट आया और उसने इन्द्रदव का पत्र मेर हाथ में दिया। लिफाफा खालकर मैंने पढा उसमें यह लिखा हुआ या -- तुम्हारा पत्र पढ़ने से कलेजा हिल गया। सच तो यह है कि दुनिया में मुझ सा बदनसीब भी कोई न होगा? खैर परमश्वर की मरजी ही ऐसी है तो मैं क्या कर सकता हूँ। दारोगा के बारे में मैंने जी प्रतिज्ञा तुमसे की है उसेझूठा न होने दूंगा। मैं अपने कलेजे पर पाथर रखकर सब कुछ सहूंगा मगर वहाँ जाकर वैचारी सर्दू का अपना मुँह न दिखाऊँगा और नदारोगा से मिलकर उसके दिल में किसी तरह का शक ही आने दूगा। हॉ अगर सर्दू की जान बचती नजर आवे या इस बीमारी से बच जाय तो उसे जिस तरह मुनासिब समझना मेरे पास पहुचा देना और अगर वह मर जाय तो मेरी जगह तुम बैठे ही हो उसकी अत्त्येष्टि किया अपनी हिम्मत के मुताबिक करके मेरे पास आना । मेरी तबीयत अब दुनिया से हट गई बस इससे ज्यादे मैं कुछ नहीं कहा चाहता हा यदि कुछ कहना होगा तो तुमस मुलाकात होने पर कहूगा। आग जो ईश्वर की मर्जी। । तुम्हारा वही-इन्द्रदेव । इस चीठी को पढ कर में बहुत देर तक रोता और अफसोस करता रहा इसके बाद उठकर दारोगा के मकान की तरफ रवाना हुआ मगर आज भी अपने बचाव का पूरा-पूराइन्तजाम करता गया। मुलाकात होन पर दारोगा ने कल से ज्यादा खातिरदारी के साथ मुझे बैठाया और देर तक बातचीत करता रहा मगर जब मैं सर्दू के पास गया तो उसकी हालत कन से आज बहुत ज्यादै खराव देखने में आई, अर्थात् आज उसमें बोलने की भी ताकत न थी। मुख्तसर यह कि तीसरे दिन बेहाश और चौथे दिन आधी रात के समय मैंने सर्दू को मुर्दा पाया। उस समय मेरी क्या हालत थी सो मैं बयान नहीं कर सकता। अस्तु उस समय जो कुछ करना उचित था और मैं कर सकता था उसे सवेरा होने के पहिले ही करके छु किया अपने खयाल से सर्दू के शरीर की दाह क्रिया इत्यादि करके पचतत्व में मिला दिया और इस बात की इत्तिला इन्द्रदेव को दे दी। इसके बाद इन्दिरा के लिए अपने अड्डे पर गया और वहाँ उसे न पाकर बडा ही ताज्जुब हुआ । पूछने पर मेरे आदमियों ने जवाब दिया कि हम लोगों को कुछ भी खबर नहीं कि वह कब और कहाँ भाग गई । इस बात देवकीनन्दन खत्री समग्र