पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९

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GyT - - यहां सीता की खोज भी एक प्रकार का प्रेम-प्रसंग है। तिलस्म में अन्न नहीं होता । वहाँ फंसे लोग प्रायः फलों और मेवों पर जीवन विताते हैं। मधुर फल । मधुर जल । 'मानस' की तपस्विनी वानरों से कहती है- तेहि तब कहा करहु जलपाना । साहु सुरस सुंदर फल नाना ! ये लोग नहाना नहीं भूलते। दोनों स्थानों में नहाने की पूरी व्यवस्था है। चंद्रकान्ता, संतति आदि में तो कपड़े भी बदले जाते हैं । पूजा आदि भी होती है। मानस' के वानर कौन सा वस्त्र बदलते? चूंकि सारी कथा जंगलों में है अतः वहाँ भी दोनों में मेल है । महाभारत में गुफा है।। गुफा कई योजन लंबी है। पहले भाग में अंधकार,फिर प्रकाश है। यह दैत्यराज मय का बनाया है। प्रभावती नामी तपस्विनी इसकी रक्षा करती है। इसमें सब प्रकार के भोज्य एवं पेय पदार्थ हैं । (वनपर्व, रामोपाख्यान) देखने में ये कथाएँ ऐतिहासिक सत्य लगती हैं । किंतु शुद्ध कल्पनाधारित हैं। इनमें एक नैतिक भाव भी है। स्त्रियाँ हैं। किन्तु अधिकतर सती साध्वी है। बदचलन को अच्छा नहीं माना जाता है। चन्द्रकान्ता और सन्तति में कहीं भी स्त्री संबंधी छिछोरापन नहीं है। बंद और बेहोशकर भयानक एकांत में भी उनमें कर्म की नैतिकता बनी है। बदचलन स्त्रियाँ खलनायिका हैं। यही स्थिति पुरुष की है। नैतिकता को छोड़े बिना संघर्ष करते हैं। अंत में उन्हें सफलता मिलती है। इच्छित प्रेमी प्रेमिका मिलते हैं। वह भी अपनी सामाजिक मर्यादा के अनुसार । यह नहीं कि राजा की लड़की सिपाही के बेटे के साथ चली जायगी। वर्ण-वर्ग व्यवस्था का पूरा ध्यान रहता है। खत्री जी के उपन्यासों में स्त्रियाँ प्रायः शीलवान् किंतु बाहरी जीवन में भी सक्रिय हैं। भारतीय वर्ण-व्यवस्था और सामंती जीवन में स्त्री प्रायः पर्दै में रही है। उसे सूर्य भी न देख सके। किंतु खत्री जी केकथा साहित्य की स्त्रियाँ सीता और सावित्री के समान वन भी जाती - उन्हें ऐयारी की छूट मिली है । वे कहीं आने-जाने में, गिरफ्तार करने, कराने, होने आदि के लिए स्वतंत्र हैं। राजपरिवार में पैदा होकर भी वे गुप्तचर जैसा कार्य करती हैं। ऐयार तो प्रथम श्रेणी की हैं । इसीलिये पुरुष की अपेक्षा स्त्रियाँ ऐयारी के काम को और भी खूबी के साथ करती हैं। फिर भी समाज में उनका स्थान नहीं है । ऐयारी के बाद उनका क्षेत्र घर है । प्रबन्ध और शासन सब पुरुषों के हाथ है।इनमें कुसुमकुमारी अपवाद है। क्योंकि पिता के अभाव में उसे स्वयं ही सब कुछ करना होता है । खत्री जी के उपन्यासों से लगता है कि लड़कियाँ हर कार्य के लिए सक्षम बनाई जाती थीं। घोड़ा चढ़ना, युद्ध करना, राजनैतिक कौशल दिखलाना आदि । किंतु इनका उपयोग वे पुरुष की अनुपस्थिति में ही करती थीं। पुरुष की उपस्थिति में इन्हें सौंदर्य और कोमलता की मूर्ति समझा जाता था। देवकीनंदन खत्री का तिलस्म भी एक प्रकार का प्रतीक है। यह सृष्टि एक तिलस्म है। जो इसमें फंस गया निकल नहीं सकता। फंसता ही जाता है । इसके रहस्य को जानना अत्यन्त कठिन है । सभी जान भी नहीं सकते। इसके संकेत और लिपि संसार के सामान्य संकेतों से भिन्न हैं। भाग्यवान ही इन संकेतों और लिपियों को पढ़ पाते हैं । तिलिस्म के माध्यम से लेखक इस दुनिया में एक भिन्न दुनिया का निर्माण करता है । जहाँ की समस्याएँ सामान्य दुनिया की समस्याओं से भिन्न है। चूंकि तिलस्म जगलों में हैं इसलिए यहाँ भोजन-पानी की समस्यां नहीं है। लोग जंगली फलों को खाकर आसानी से जी लेते हैं। मेवों की चर्चा ऐसे की जाती है जैसे मिर्जापुर के जंगलों में मेवों की बहुतायत हो । जब कि ऐसी बात है नहीं। मेचे ऐयारों के झोलों में है 1 जंगल में हैं । लेखक मेवों का नाम लेने में 'सावधान है । प्राय: जंगली मेवों का ही नाम लेता है। (x)