पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८८६

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ग्यारहवॉ बयान हा गया नकाबपोशों के चले जाने के बाद जब केवल घर वाले यहा रह गय तब राजा वीरेन्दसिह ने अपने पिता से तारासिह की बाबत जो कुछ हाल हम ऊपर लिख आए है कुछ घटा बढ़ाकर बयान किया और इसके बाद कहा, 'तारासिह नकाबपोशों के सामने ही लौट कर आ गया था जिससे अभी तक यह पूछने का मौका न मिला कि वह कहा गया था और वह तस्वीर उसे कहा से मिली थी जो उसने अपनी मा को दी थी। इतना कहकर धीरेन्द्रसिह चुप हो गये और देवीसिह न वह कपड़ वाली तस्वीर (जा चम्पा ने दी थी ) महाराज सुरेन्द्रसिह के सामने रख दी। सुरेन्दसिह ने बड़े गौर से उस तस्वीर को देखा और इसका पाद तारासिक से पूछा- सुरेन्द्र-नि सन्देह यह तस्वीर किसी अच्छ कारीगर के हाथ की बनी हुई है यह तुम्हे का निली? तारा-मै स्थयम इस तस्वीर का हाल अर्ज करन वाला था. परन्तु इसके सम्बन्ध की कई एसी बात को जानना आवश्यक था जिनके बिना इसका पूरा भेद मालूम नहीं सकता अतएव में उन्हो बातो का जानने की फिर में पड़ा हुआ था और इसी सवव से अभी तक कुछ अर्ज करने की नौबत नहीं आई। तेज-ता क्या तुम्हें इसका पूरा-पूरा भद माना तारा-जी नहीं, मगर कुछ कुछ जर मालूम हुआ? तेज-तरे इस काम में तुमने अपने साथियों से मदद क्यो नही ली? तारा-अभी तक मदद की जररत नहीं पड़ी थी मगर हा अब मदद लगी पडेगी! वीरेन्द्र-खैर बताओ कि इस तस्वीर को तुमने क्योंकर पाया ? तारा-(इधर-उधर देख कर ) भूतनाथ की स्त्री से। तारासिह की इस बात को सुनकर सब चौक पड़े यास कर देवीसिट को तो बड़ा ही ताज्जुब हुआ और उसने हेत कि निगाह से अपने लडके तारासिह की तरफ देख कर पूछा- देवी-भूतनाथ की स्त्री तुम्हें कहा मिली? तारा-उसी जगल में जिसमें आपने और भूतनाथ ने उसे दया था पल्कि उसो झापी में जिसमें भूतनाथ और आप उसके साथ गये थे और लाचार होकर लौट आए थे। आपको यह सुनकर ताजुब होगा कि यह वास्तपने भूतनाथ की स्त्री ही थी। देवी-( आश्चर्य ) है. क्या वह वास्तव मे भूतनाथ की स्त्री थी? तारा-जी हा, आप और भूतनाथ नकारपोशों के फर भे यद्यपि कई दिनों तक परेशाए परन्तु उतना हाल मालूम न कर सके जितना में जान आया हू। इस समय दर में आपुस वालों के सिवाय कोई गैर आदमी ऐसा था जिसके सामन इस तरह की बातो को कहने सुनने में किसी तरह काखयाल होता अतएव बड़ी उत्कण्ठा के साथ सब कोई तारासिह की बातें सुनने के लिए तैयार हो गये और देवीसिह का तो कहना ही क्या जिनका दिल तूफान में पडे हुए जहाज की तरह हिंडोल खा रहा था। उन्हें यकायक य्याल पैदा हुआ कि अगर वह वास्तव में भूतनाथ की स्त्री थी तो दूसरी औरत भी जरूर धम्पा ही रही होगी जिसे नकाबपोशों के मकान में देखा गया था अस्तु बड़े ताज्जुब के साथ अपन लडके तारासिंह से पूछा क्या तुम बता सकते हो कि जिन दो औरतो को हमने नकाबपोशों के मकान में देखा था वे कौन थी?' तारा-उनमें से एक तो जरूर भूतनाथ की स्त्री थी मगर दूसरी के बारे में अभी तक कुछ पता नहीं लगा। देवी-(कुछ सोचकर ) दूसरी भी तुम्हारी मा होगी? तारा-शायद ऐसा हो मगर विश्वास नहीं होता। तेज-तुम्हें यह कैसे निश्चय हुआ कि वह वास्तव में भूतनाथ की स्त्री थी? तारा-उसने स्वय भूतनाथ की स्त्री होना स्वीकार किया बल्कि और भी बहुत सी बातें ऐसी कहीं जिससे किसी तरह का शक नहीं रहा। देवी-और तुम्हें यह कैसे मालूम हुआ कि नकाबपोशों के घर में जाकर हम लोगों ने किसे देखा यहा जंगल में भूतनाथ की स्त्री हम लोगों को मिली थी और हम लोग उसके पीछे-पीछे एक झोपड़ी में जाकर सूर्य हाथ लौटे आये थे? तारा-यह सब हाल मुझे बखूबी मालूम है और उस समय में भी उसी जगल में था जिस समय आपने भूतनाथ की देवकीनन्दन खत्री समग्र ८७८