पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८८१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

e देर तो हो गई मगर फिर भी कुछ थोडा सा हाल सुनाने के लिए हम लोग तैयार हैं आप दरियाफ्त करायें यदि बड़े महाराज निश्चिन्त हो तो इशारा पाते ही भैरोसिह बडे महाराज अर्थात महाराज सुरेन्द्रसिह के पास चले गये और थोडी देर में लौट आकर वोल महाराज आप लागा का इन्तजार कर रहे है। इतना सुनते ही वीरेन्द्रसिह के साथ ही साथ सब कोई उठ खडे हुए और बात की बात में यह दार-खास महाराज सुरेन्द्रसिह का दार-खास हो गया। नौवां बयान . महाराज सुरेन्द्रसिह और वीरन्द्रसिह तथा उनके ऐयारों के सामने एक नकाबपोश ने दोनों कुमारों का हाल इस तरह बयान करना शुरु किया - नकाय-कुअर इन्द्रजीतसिह ने भी उन पाचो कैदियों के साथ रात को उसी बाग में गुजारा किया। सवेरा होने पर मामूली कामों से छुट्टी पाकर दोनों भाई उसी बीच वाले बुर्ज के पास गये और चबूतरे वाले पत्थरों को गौर से देखने लगे। उन पत्थरों में कहीं अक और अक्षर भी खुदे थे उन्हीं अकों कोदखत-देखत इन्द्रजीतसिह ने एक चौखूटे। पर हाथ रक्खा और आनन्दसिह की तरफ देखकर कहा 'बस इसी पत्थर को उखाडना चाहिए। इसके जवाब में आनन्दसिह ने 'जी हा कहा और तिलिस्मी खञ्जर की नोक से टुकडे को उखाड डाला । पत्थर के नीचे एक छोटा सा चोखटा कुण्ड बना हुआ था और उस कुण्ड के बीचोबीच में लाहे की एक गोल कडी लगी थी जिस कुअर इन्दजीतसिह ने खींचना शुरू किया। उस कडी के साथ लाहे की पचीस तीस हाथ लम्बी जजीर लगी हुई थी जो बराबर खिंचती हुइ चली आई और जब वह रुक गई अर्थात् अपनी हद तक खिंच कर बाहर निकल आई तव उस चबूतरे के चारो तरफ का निचला पत्थर आप से आप उखडकर जमीन के साथ लग गया और उसके अन्दर जाने के लिए दो रास्त दिखाई दन लग। इनमें से एक रास्ता नीचे तहखाने में उतर जाने के लिए था दूसरा बुर्ज के ऊपर चढने के लिए। दानों कुमार पहिले बुर्ज के ऊपर चढ गय और वहा से चारों तरफ की बहार देखने लगे। खास बाग के कुछ हिस्स और उनके कई तरफ की मजबूत दीवारें तथा कुछ इमारत और पड़ पत्त इत्यादि दिखाई दे रहे थे। उन सभों को गौर से दखने वाद कुमार नीचे उतर आय और उन पाचों कैदियों का यह कहकर कि तुम लोग इसी बाग में रहा खवरदार नीचे न उतरना दानों भाई तहखाने में उतर गये। नीचे उतरने के लिए चक्करदार ग्यारह सीदिया थी जिन्हें तै करने बाद वे दानों एक लम्चे चौडे कमरे में पहुंचे। वहा विल्कुल अन्धकार था मगर तिलिस्मी खजर की रोशनी करन पर वहा की सब चीजें साफ दिखाई देन लगीं। वह कमरा लम्बाइ में बीस हाथ ओर चौडाई में पन्द्रह हाथ से ज्यादे न होगा। उसके बीचोबीच में लोह का एक चबूतरा था और उसके ऊपर लोहे ही का एक शेर बैठा हुआ था जिसकी धमकदार आखें उसके भयानक चेहरे के साथ ही साथ देखने वालों के दिल पर खौफ पैदा कर सकती थी। उसके सामने जमीन पर लोह का एक हथौडा पड़ा हुआ था। बस इसके अतिरिक्त उस कमरे में और कुछ भी न था। कुअर इन्द्रजीतसिह ने उस शेर के सर को अच्छी तरह टटोलना शुरु " किया। उस शेर के दाहिन कान की तरफ कवल एक उगली जाने लायक छोटा सा एक गडहा था। कुअर इन्द्रजीतसिह ने अपनी जेब में से एक चमकदार चीज निकाल कर उस गडहे में फसाने के बाद शर के सामने वाला हथौडा जमीन से उठा कर उसी स वह चमकदार चीज (कील) एक ही चोट में ठोंक दी और इसके बाद तुरन्त ही दोना भाई उस तहखान के बाहर निकल आया वह चमकदार चीज जो शेर के सिर में ठोंकी गई थी क्या थी इसे आप लोग जानते होंग। यह वही चमकदार चीज थी जो कुँअर इन्द्रजीतसिह को बाग क उस लहखाने में एक पुतल के पेट में से मिली थी जिसमें वे कुँअर आनन्दसिह को खोजते हुए गये थे * जब दोनों कुमार तहखाने के बाहर निकल आय उसके थोड़ी ही देर बाद जमीन के अन्दर से धमधमाहट और

  • देखियेचन्द्रकान्ता सन्तति दसवा भाग पहिला बयान ।

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २० २७३