पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८८०

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६ साथ ही इसके एक चीठी महाराज के नाम की भी उन्होंने भेजी है। इतना कह के नकाबपोश ने अपनी जेब में से एक चन्द लिफाफा निकालकर वीरन्द्रसिह के हाथ में दिया। वीरेन्द्र-( ताज्जुब क साथ लिफाफा लेकर ) सीधे मेरे पास क्यों नहीं भेजा? नकाय-वे ? तो खुद तिलिस्म के बाहर आ सकत है और न किसी का भज सकते हैं हम लोगों का आदमी हरदम तिलिस्म के अन्दर मौजूद रहता है और हाल-चाल की खबर लिया करता है इसलिए उसके मारफत पत्र भज सकत है। इतना सुनकर शेरेन्द्रसिह चुप रहे और लिफाफा खोल कर पढने लगे। प्रणाम इत्यादि के बाद यह लिखा था "हम दोनों भाई कुशल पूर्वक तिलिस्म की कार्रवाई कर रहे हैं परन्तु कोई एयार या मददगार न रहने के कारण कभी कभी तकलीफ हो जाती है इसलिए आशा है कि भैरोसिह और तारासिह को शीघ भज देंगे। यहा तिलिस्म में ईश्वर ने हमें दो मददगार बहुत अच्छे पहुचा दिये है जिनका नाम रामसिह और लक्ष्मणसिह है। य दोनों मायारानी और तिलिस्मी दारोगा इत्यादि के भेदों से खूब वाकिफ है। यदि इन लोगों के सामने दुष्टों के मुकदमे का फैसला करेंगतो आशा है कि दखने-सुननवालों को एक अपूर्व आनन्द मिलेगा। इन्हीं दोनों की जुबानी हम दानों भाइयों का हालपूरा-पूरा मिला करेगा और ये ही दोनों भैरोसिह को भी हम लोगों के पास पहुचा देंगे। भाई गोपालसिह से कह दीजिएगा कि उनके दोस्त भरतसिह जी भी इस तिलिस्म में मुझे मिले है। उन्हें कम्बख्त दारोगा ने कैद किया था ईश्वर की कृपा से उनकी जान मच गई। भाई गोपालसिह जी मुझसे विदा होते समय तालाव वाले नहर के विषय में गुप्त रीति से जो कुछ कह गये थे वह ठीक निकला, चाद वाला पताका भी हम लोगों को मिल गया। आपके आज्ञाकारी पुत्र-इन्दजीत, आनन्दा इस चीठी को पढ़कर वीरेन्द्रसिह बहुत प्रसन्न हुए मगर साथ ही इसके उन्हें ताज्जुब भी हद से ज्यादे हुआ। इन्द्रजीतसिह के हाथ के अक्षर पहिचानने में किसी तरह की भूल नहीं हो सकती थी. तथापि शक मिटाने के लिए धीरेन्द्रसिह ने वह चीठी राजा गोपालसिह के हाथ में दे दी क्योंकि उनके विषय में भी दो एक गुप्त बातों का ऐसा इशारा था जिसके पढने से इस बात का रत्ती भर शक नहीं हो सकता था कि यह चीठी कुमार के हाथ की लिखी हुई नहीं है या ये नकाबपोश जाल करते है। चीठी पढने के साथ ही राजा गोपालसिह हद से ज्यादे खुश होकर चौक पड़े और राजा बीरेन्द्रसिह की तरफ देखकर बोले, नि सन्देह यह पत्र इन्दजीतसिह के हाथ का लिखा हुआ है। विदा होते समय जो गुप्त बातें मैं उनसे कह आया था इस चीठी में उनका जिक्र एक अपूर्व आनन्द दे रहा है, तिस पर अपने मित्र भरतसिह के पा जाने का हाल पद कर मुझे जो प्रसन्नता हुई उसे मै शब्दों द्वारा प्रकट नहीं कर सकता। (नकाबपोशों की तरफ देख के) अब मालूम हुआ कि आप लोगों के नाम रामसिह और लक्ष्मणसिह है,जरूर आप लोग बहुत सी बातों को छिपा रहे है परन्तु जिस समय भेदों को खोलेगे उस समय नि सन्देह एक अद्भुत आनन्द मिलेगा!" इतना कह कर राजा गोपालसिह ने वह चीठी तेजसिह के हाथ में दे दी और इन्होंने पढ़ कर देवीसिह को और देवीसिह ने पढकर और ऐयारों को भी दिखाई जिसके सबब से इस समय सभों ही के चेहरे पर प्रसन्नता दिखाई देने लगी। इस समय तारासिह भी यहा आ पहुचा । नकाबपोश ने जो कुछ कहा था वही हुआ अर्थात् थोड़ी देर में तारासिह ने भी वहा पहुंचकर सभों के दिल से खटका दूर किया, मगर हमारे राजा साहब और ऐयारों को इस बात का ताज्जुब जरूर था कि नकाबपोश को तारासिह का हाल क्योंकर मालूम हुआ और उसने किस जानकारी पर कहा कि वह घण्टे भर के अन्दर आ जायगा। खैर इस समय तारासिह के आ जाने से सभों को प्रसन्नता ही हुई और देवीसिह को भी उस तस्वीर के विषय में कुछ खुलासा हाल पूछने का मौका मिला मगर नकाबपोशों के सामने उस विषय में बात-चीत करना उचित न जाना। नकाबपोश-(वीरेन्दसिह से) देखिए तारासिह आ गये, जो मैने कहा था वही हुआ। अब इन दोनों के विषय में क्या हुक्म होता है? क्या आज ये दोनों ऐयार कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह के पास जाने के लिए तैयार हो सकते है। तेज-हा तैयार हो सकते है और आप के साथ जा सकते है मगर दोजरूरी कामों की तरफ ध्यान देने से यही उचित जान पडता है कि आज नहीं बल्कि कल इन दोनों भाईयों को आपके साथ विदा किया जाय। नकाय-जैसी मर्जी अव आज्ञा हो तो हम लोग विदा हो। तेज-क्या आज इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह का किस्सा आप न सुनावेंगे? देवकीनन्दन खत्री समग्र ५७२