पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८७५

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ori इस समय इन दोनों के दिल की क्या कैफियत थी सो वे ही जानते होंगे, अस्तु लाचार होकर देवीसिह ने घर लौट चलने का विचार किया मगर भूतनाथ ने इस बात को स्वीकार न करके कहा 'इस तरह लकलीफ उठाने और बेइज्जत होने पर भी विना कुछ काम किए घर लौट चलना मेरे ख्याल से उचित नहीं है।' देवी-आखिर फिर किया ही क्या जायगा? मुझे इतनी फुरसत नहीं है कि कई दिनों तक बेफिक्री के साथ इन लोगों का पीछा करूँ। उधर दरबार की जो कुछ कैफियत है तुम जानते ही हो ! ऐसी अवस्था में मालिक की प्रसन्नता का खयाल न करके एक साधारण काम में दूसरी तरफ उलझे रहना मेरे लिये उचित नहीं है। भूत-आपका कहना ठीक है मगर इस समय मेरी तबीयत का क्या हाल है सो भी आप अच्छी तरह समझते होंगे। देवी-मेरे ख्याल से तुम्हारे लिये कोई ज्यादे तरदुद की बात नहीं इसके अतिरिक्त घर लौट चलने पर मै अपनी औरत को देखूगा, अगर वह मिल गई तो तुम भी अपनी स्त्री की तरफ से बेफिक्र हो जाओगे । भूत-अगर आपकी स्त्री घर पर मिल जाय तो भी मेरे दिल का खुटका न जायगा । देवी-अपनी स्त्री का हाल-चाल लेने के लिए तुम भी अपने आदमियों को भेज सकते हो। भूत-यह सब कुछ ठीक है मगर क्या करूँ इस समय मेरे पेट मे अजब तरह की खिचडी पक रही है और क्रोध क्षण- क्षण में बढ़ा ही चला आता है। देवी-अगर ऐसा ही है तोजो कुछ तुम्हें उचित जान पड़े सो करो मै अकेला ही घर की तरफ लौट जाऊगा । भूत-अगर ऐसा ही कीजिये तो मुझ पर बड़ी कृपा होगी मगर जब महाराज मेरे बारे में पूछेगे तब क्या जवाब देवी-(बात काटकर ) महाराज की तरफ से तुम वेफिक्र रहो मैं जैसा मुनासिब समझूगा कह-सुनलूगा मगर इस बात का वादा कर जाओ कि कितने दिन पर तुम वापस आओगे या तुम्हारा हाल मुझे कब और क्योंकर मिलेगा? भूत-मै आपसे सिर्फ तीन दिन की छुट्टी लेता है। अगर इससे ज्यादे दिन तक अटकने की नौबत आई तो किसी न किसी तरह अपने हाल-चाल की खबर आप तक पहुंचा दूंगा। देवी-बहुत अच्छा (मुस्कुराते हुए) अब आप जाइये और पुन लात खाने का बन्दोबस्त कीजिए मैं तो घर की तरफ रवाना होता हू, जय माया की । भूत-जय माया की। भूतनाथ को उसी जगह छोड़ कर देवीसिह रवाना हुए और सध्या होने के पहिले ही तिलिस्मी इमारत के पास आ पहुंचे। . सातवॉ बयान डेरे पर पहुंचकर स्नान करने और पौशाक बदलने के बाद देवीसिह सबसे पहिले राजा बीरेन्दसिह के पास गये और उसी जगह तेजसिह से भी मुलाकात की। पर देवीसिह ने अपना और भूतनाथ का कुल हाल क्यान किया जो कि हम ऊपर के बयानों में लिख आये है। उस हाल को सुनकर बीरेन्द्रसिह और तेजसिह को कई दफे हसने और ताज्जुब करने का मौका मिला और अन्त में बीरेन्द्रसिह ने कहा अच्छा किया जो तुम भूतनाथ को छोड कर यहा चले आये। तुम्हारे न रहने के कारण नकाबपोशों के आगे हम लोगों को शर्मिन्दा होना पड़ा।' देवी-(ताज्जुब से) क्या वे लोग यहा आये थे? बीरेन्द्र-हा, वे दोनों अपने मामूली वक्त पर यहा आये थे और तुम दोनों के पीछा करने पर ताज्जुब और अफसोस करते थे, साथ ही इसके उन्होंने यह भी कहा था कि वे दोनों ऐयार हमारे मकान तक नहीं पहुंचे। देवी वे लोग जो चाहें सो कहें मगर मेरा ख्याल यही है कि हम दोनों उन्हीं के मकान में गए थे वीरेन्द्र-खैर जो हो मगर उन नकाबपोशों कायह कहना बहुत ठीक है कि जब हम लोग समय पर अपना हाल आप ही कहने के लिए तैयार हैं तो आपको हमारा भेद जानने के लिए उद्योग न करना चाहिए ! देवी-बेशक उनका कहना ठीक है मगर क्या किया जाय, ऐयारों की तबीयत ही ऐसीचचल होती है कि किसी भेद को जानने के लिए वे देर तक या कई दिनों तक सब नहीं कर सकते। यद्यपि भूतनाथ इस बात को खूब जानता है कि वे दोनों नकाबपोश उसके पक्षपाती है और पीछा करके उनका दिल दुखाने का नतीजा शायद अच्छा न निकले मगर फिर भी उसकी तबीयत नहीं मानती. तिस पर कल की बेइज्जती और अपनी स्त्री को वहा न देखता तो नि सन्देह मेरे साथ वापस चला आता और उन लोगों का पीछा करने का ख्याल अपने दिल से निकाल देता। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २० ८६७