पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८७३

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दि नकाय-बहुत अच्छा मगर नकाब हटाने के लिए जिद्द न करना। इतना कहकर नकाबपोश घाडे के नीचे उतर पडा और भूतनाथ ने उससे कहा "लेकिन तुम्हें अपने चेहरे से नकाब हटाना ही पड़ेगा और यह काम सबसे पहिले होगा। यह कहते-कहतेभूतनाथ ने अपन हाथ से उसके चेहरे की नकाव उलट दी मगर उसके चेहरे पर निगाह पडते ही चौक कर बोल उठा है.यह तो मेरी स्त्री है जो नकाक्पोशों के घर में दिखाई पड़ी थी। छठवां बयान अपनी स्त्री की सूरत दखकर जितना ताज्जुब भूतनाथ को हुआ उतना ही आश्चर्य देवीसिह को भी हुआ। यह विचारकर रजगम और गुस्से से देवीसिह का सिरं घूमने लगा कि इसी तरह मेरी स्त्री भी अवश्य नकाबपोशों के यहा होगी और हम लोगों को उसकी सूरत देखने मे किसी तरह का भ्रम नहीं हुआ। यदि सोचा जाय कि जिन दोनों औरतों को हम लोगों ने देखा था वे वास्तव में हम लोगों की औरतें न थीं बल्कि वे औरतों की सूरत में ऐयाएथे तो इसका निश्चय भी इस समय हो सकता है। वह औरत सामने मौजूद है देख लिया जाय कि कोई ऐयार है या वास्तव में भूतनाथ की स्त्री। उस स्त्री ने भूतनाथ केमुह से यह सुनकर कि यह तो मेरी स्त्री है क्रोध भरी आँखों से भूतनाथ की तरफ देखा और कहा एक तो तुमने जबर्दस्ती मेरी नकाब उलट दी दूसरे बिना कुछ सोचे विचारे अवारा लोगों की तरह यह कह दिया कि यह मेरी स्त्री है । क्या सभ्यता इसी को कहते है ? (देवीसिह की तरफ देख के) आप ऐसे सज्जन और प्रतापी राजा वीरेन्द्रसिह के ऐयार होकर क्या इस बात को पसन्द करते है ? देवी-अगर तुम भूतनाथ की स्त्री नहीं हो तो मै जरूर इस बर्ताव को बुरा समझता हूँ जो भूतनाथ ने तुम्हारे साथ किया है। औरत-(भूतनाथ से) क्यों साहब आपन मेरी ऐसी बेइज्जती क्यों की । अगर मेरा मालिक या कोई वारिस इस समय यहा हाता तो अपने दिल में क्या कहता? भूत-(ताज्जुब से उसका मुह देखता हुआ) क्या मैं भ्रम में पड़ा हुआ हू या मेरी ऑखें मेरे साथ दगा कर रही है? औरत-सो तो आप ही जानें, क्योंकि दिमाग आपका है और आँखें भी आपकी हैं, हॉ इतना मुझे अवश्य कहना पडेगा कि आप अपनी असभ्यता का परिचय देकर पुरानी बदनामी को चरितार्थ करते है। कौन सी बात आपने मुझमें ऐसी देखी जिससे इतना कहने का साहस आपको हुआ ? भूत-मालूम होता है कि या तो तू कोई ऐयार है और या फिर किसी दूसरे ने तेरी सूरत मेरी स्त्री के ढग की बना दी है जिसे शायद तूने कभी देखा नहीं । भूतनाथ ने उस औरत की बातों का जवाब तो दिया मगर वास्तव में वह खुद भी बहुत घबरा गया था। अपनी स्त्री की ढिढाई और चपलता पर उसे तरह-तरह के शक होने लगे और वह बड़ी बेचैनी के साथ सोच रहा था कि अब क्या करना चाहिए कि इसी बीच में उस स्त्री ने भूतनाथ की बात का यों जवाब दिया - स्त्री-यों आप जिस तरह चाहें सोच समझकर अपनी तबीयत खुश कर लें मगर इस बात को खूब समझ रक्खें कि मैं भी लावारिस नहीं हू और आप अगर मेरे साथ कोई बेअदबी का बर्ताव करेंगे तो उसका बदला भी अवश्य पावेंगे साथ ही इस बात को भी अवश्य समझ लें कि आपके इस कहने पर कि तूकोई ऐयार नहीं है आपके सामने अपना चेहरा धोने की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकती। भूत-मगर अफसोस है कि में बिना जाच किए तुम्हें छोड भी नहीं सकता। स्त्री-(देवीसिह की तरफ देख के) वहादुरी तो तव थी जब आप लोग किसी मर्द के साथ इस दिठाई का बर्ताव करते। एक कमजोर औरत को इस तरह मजबूर करके फजीहत करना ऐयारों और यहादुरों का काम नहीं है। हाय इस जगह अगर मेरा कोई होता तो दुख न भोगना पड़ता। (यह कह कर वह आसू बहाने लगी) उस औरत की बातचीत कुछ ऐसे ढग की थी कि सुनने वालों को उस पर दया आ सकती थी और यही मालूम होता था कि यह जो कुछ कह रही है उससे झूठ का लेश नहीं है यहाँ तक कि स्वय भूतनाथ को भी उसकी बातों पर सहम जाना पडा और वह ताज्जुब के साथ उस औरत का मुह देखने लगा खास करके इस ख्याल से भी कि देखें आसू बहने के सबब से उसके चेहरे का रग कुछ बदलता है या नहीं। उधर देवीसिह तो उसकी बातों से ही हैरान हो गये और उनके जी में रह-रह के यह बात पैदा होने लगी कि जरूर भूतनाथ इसके पहिचानने में धोखा खा गया और वास्तव में यह भूतनाथ की स्त्री नहीं है। अक्सर लोगों ने एक ही रग रूप के दो आदमी देखे है ताज्जुब नहीं कि यहाँ भी वैसा ही कुछ मामला आ पड़ा हो। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २० ५५