पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८६६

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eri चिल्ला उठा। उसी समय उसने यह भी देखा कि उसकी आवाज उन लोगों के कानों में पहुच गई और इस सवव से वे लोग ताज्जुब के साथ ऊपर की तरफ देखन लगे। भूतनाथ जल्दी के साथ चारपाई के नीचे उतर आया और कापती हुई आवाज में देवीसिह से बोला “ओफ में अपने को सम्हाल न सका और मेरे मुंह से चीख की आवाज निकल ही गई जिसे उन लोगों ने सुन लिया ताज्जुब नहीं कि उन लोगों में से कोई यहा आय, अस्तु आप जो उचित समझिये कीजिये, कुछ देर बाद में अपमा हाल आपसे कहूगा।' इतना कह भूतनाथ जमीन पर बैठ गया। देवसिह ने झटपट अपने बटुए में से सामान निकालकर मोमबत्ती जलाई दो-तीनडपट की बातें कह भूतनाथ को चैतन्य किया और उसके मोढे पर चढ़ कर कन्दील जलाने बाद मोमबत्ती बुझा कर बटुए में रख ली और इसके बाद दोनों चारपाई उसी तरह दुरुस्त कर दी जिस तरह पहिले थी इसके बाद एक चारपाई पर भूतनाथ को सुला कर पेट दर्द का बहाना करने और हाय-हाय करके कराहने के लिए कहकर आप उसी चारपाई के सहारे बेठ गय। उसी समय कमरे का दर्वाजा खुला और तीन-चार नकाबपोश अन्दर आते हुए दिखाई पडे । उन आदमियों ने पहिले तो गौर से कमरे के अन्दर की अवस्था देखी और तब उनमें से एक ने आगे बढ कर देवीसिह से पूछा क्या अभी तक आप लोग जाग रहे है ? देवी-हा (भूतनाथ की तरफ इशारा करके) इनके पट में यकायक दर्द पैदा हो गया और बड़ी तकलीफ है अक्सर दर्द की तकलीफ से चिल्ला उठते हैं। नकाब-(भूतनाथ की तरफ देख के) आज यहाँ कुछ खाने के भी तो नहीं आया। देवी-पहिले ही की कुछ कसर होगी। नकाब-फिर कुछ दवा वगैरह का बन्दोवस्त किया जाय? देवी-मैचे दो दफे दवा खिलाई है अब तो कुछ आराम हो रहा है पहिले बडी तेजी पर था। इतना सुनकर वे लोग चले गये और जाती समय पहिले की तरह दर्वाजा पुन बन्द करते गये। अब फिर उस कमरे में सन्नाटा हा गया और भूतनाथ तथा देवीसिह को धीरे-धीर बातचीत करन का मौका मिला। देवी-हा अब बताओ तुमने पिछले कमरे में क्या देखा और तुम्हारे मुँह से चीख की आवाज क्यों निकल गई? भूत--ओफ मेरे प्यारे दोस्त देवीसिह क्योंकि अब मैं आपको खुशी और सच्च दिल से अपना दोस्त कह सकता हू चाहे आप मुझसे हर तरह पर वडे क्या न हो उस कमरे में जो कुछ मैंने देखा वह मुझे दहला देने के लिए काफी था। पहिले तो वहाँ मैने अपने लडके को देखा जिरो उम्मीद है कि आपन भी देखा होगा। देवी-बेशक उसे मैंने देखा था मगर शक मिटाने के लिये तुम्हें दिखाना पड़ा चाहे वह कोई ऐयार ही सूरत बदले क्यों न हो मगर शक्ल ठीक वैसी ही थी। भूत-अगर उसकी सूरत बनावटी नहीं है तो वह मेरा लडका हरनामसिह ही है खैर उसके बारे में तो मुझे कुछ ज्यादे तरदुद न हुआ मगर उसके कुछ ही देर बाद मैने एक ऐसी चीज देखी कि जिससे मुझे हौल हो गया और मुंह से चीख की आवाज निकल पड़ी। देवी-वह क्या चीज थी? भूत-एक बहुत बडी तस्वीर थी जिसे एक आदमी ने पहुच कर उस नकाबपोशों के आगे रख दिया जो गद्दी पर बैठे हुए थे और कहा, बस मैं इसी का दावा भूतनाथ पर करूँगा। देवी-वह किसकी तस्वीर थी किसी मर्द की या औरत की? भूत-(एक लम्बी सास लेकर ) वह औरत मर्द जगल पहाड बस्ती उजाड सभी की तस्वीर थी मैं क्या बताऊँ किसकी तस्वीर थी। एक यही बात है जिसे मैं अपने मुँह से नहीं निकाल सकता । मगर अब मैं आपसे कोई बात न छिपाऊगा चाहे कुछ ही क्यों न हो। आप यह तो अच्छी तरह जानते ही है कि मै उस पीतल की सन्दूकडी से कितना डरता हू जो नकली बलभद्रसिह की दी हुई अभी तक तेजसिह के पास है। देवी-मै खूब जानता हू और उस दिन भी मेरा खयाल उसी सन्दूकडी की तरफ चला गया था जब एक नकाबपोश ने दर्बार में खडे होकर तुम्हारी तारीफ की थी और तुम्हें मुंहमागा इनाम देने के लिए कहा था ! भूत-ठीक है, बलभद्रसिह ने भी मुझे यही कहा था कि 'ये नकाबपोश तुम्हारे मददगार है और तुम्हारा भेद ढके रहने देवकीनन्दन खत्री समग्र ८५८