पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८६४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

2 देवी-ठीक है । मगर भूतनाथ, तुम बडे ही निडर और हौसले के ऐयार हो जो ऐसी अवस्था में भी हसने और मुस्कुराने से बाज नहीं आते। भूत-तो क्या आप ऐसा नहीं कर सकत? देवी-अगर बनावट के तौर पर हसन या मुस्कुराने की जरूरत न पडे ता में ऐसा नहीं कर सकता। मैं इस बात को खूब समझता हू कि तुम्हारे जीवट और हौसले की इतनी तरक्की क्योकर हुई मगर वास्तव में तुम निराले दग के आदमी हो, सच तो यह है कि तुम्हारी ठीक-ठाक अवस्था जानना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव है। भूत-आपका कहना बहुत ठीक है मगर अभी तक मेरे जीवट और मर्दानगी का अन्दाजा मिलना कठिन जब तक कि मैं अपने को मुर्दा समझे हुए हू, जिस दिन मैं अपने को जिन्दा समझूगा उस दिन यह यात न रहगी। देवी-तो क्या तुम अभी तक भी अपने को मुर्दा ही समझे हुए हा? भूत-वेशक क्योंकि अब मैं येइज्जती और बदनामी के साथ जीने को मरने के बराबर समझता हूँ। जिस दिन में राजा बीरेन्द्रसिह का विश्वासपात्र बनने योग्य हो जाऊगा उस दिन समभूगा कि जी गया। मैं आपसे इस किस्म की बातें कदापिन करता अगर आपको अपना मेहरबान और मददगार न समझता। आप को जेपाल या नकली बलभद्रसिह की पहिली मुलाकात का दिन याद होगा जब आपने मुझ पर मेहरबानी रखने और मुझे अपनाने का शपथपूर्वक एकरार किया था । देवी-देशक मुझे याद है जब तुम घबराये हुए और देवसी की अवस्था में थे तब मैंने तुमसे कहा था कि यदि मुझे यह मालूम हो जायगा कि तुम मेरे पिता के घातक हो जिन पर मेरा बडा स्नेह था तब भी मैं तुम्हें इसी तरह मुहय्यत की निगाह से देखूगा जैसे कि अब में देख रहा हू | कहा है न यही बात? भूत-वेशक यही शब्द आपने कहे थे। देवी-और अब भी मै उसी बात का एकरार करता हूँ। भूत-(प्रसन्नता से ) आपकी सचाई पर भी मुझे उतना ही विश्वास हे जितना एक ओर एक दो होने पर । देवी-यह बात लो तुम सच नहीं कहते । भूत- (चौककर) सो क्यों ? देवी-इसी से कि तुमने भेद की काई घात आज तक मुझसे नहीं कही, यहा तक कि इस जगह आन की इच्छा भी मुझ पर प्रकट न की। भूत-(शरमिन्दगी और सिर नीचा करक) बेशक यह मेरा कसूर है जिसके लिए (हाथ जोडकर मै आपसे माफी मागता हू, क्योंकि मैं इस बात को अच्छी तरह देख चुका हूँ कि आपने अपनी बात का निवाह पूरा-पूरा किया। देवी-खैर अब भी अगर तुम मुझे अपना विश्वासपात्र समझोगे तो मेरे दिल का रज निकल जायगा, असल ता यों है कि इस मौके पर तुमसे मिलने के लिए ही मैंने यहाँ आने का इरादा भी किया क्योंकि मुझे विश्वास था कि यहाँ तुम जरूर आआग। खेर अब तुम अपने कौल और इकरार को याद रक्खो और इस समय इन बातों का इसी जगह छोड़कर इस बात पर विचार करो कि अब हम लोगों को क्या करना चाहिये। में समझता हू कि तुम्हारे पास तिलिस्मी खजर माजूद है। भूत--जी हाँ ( खजर की तरफ इशारा करके ) यह तैयार है। देवी-( अपने खजर की तरफ बता के) मेरे पास भी है। भूत-आपका कहा से मिला? देवी-तेजसिंह ने दिया था। यह वही खजर है जो मनारमा के पास था कमबख्त ने इसके जोड की अगूठी अपनी जाधों के बीच छिपा रक्खा था जिसका पता बड़ी मुश्किल से लगा और तब स इस ढग को मैने भी पसन्द किया। भूत-अच्छा तो अब आपकी क्या राय होती है ? यहाँ से निकल भागन की कोशिश कोजाय या यहाँ रहकर कुछ भेद जानने की? देवी-इन दोनों खजरों की बदौलत शायद हम यहाँ से निकल जा सकं मगर ऐसा करना चाहिए। अब जब गिरफ्तार होने की शरमिन्दगी उठा हो चुके तो बिना कुछ किये चले जाना उचित नहीं है। अब क्या विना उन दोनों का असल भेद मालूम किये यहाँ से चलने की इच्छा हो सकती है। भूत-वेशक एसा ही है। इतना कहते-कहते भूतनाथ यकायक रुक गया क्योंकि उसके कान में किसी के जोर से हसने की आवाज आई और

  • देखिये ग्यारहवें भाग का आखिरी बयान ।

देवकीनन्दन खत्री समग्र