पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८५९

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बलभद्र-यशक ऐसा ही है और उन नकाबपोशों ने भी इसी खयाल से वह बात कही थीं, मगर अब यह सोचना चाहिए कि मुकदमा तै होने के पहिले मॉगने का मौका क्यों कर मिल सकता है। भूत-मेरे दिल ने भी उस समय यही कहा था मगर दो बातों के खयाल से मुझ प्रसन्न होने का समय नहीं मिलता। बलभद्र-वह क्या? भूत-एक तो यही कि मुकदमा होने के पहिले इनाम में उस सन्दूकडी के मागने का मौका मुझे मिलेगा या नहीं, और दूसरे यह कि नकाबपोश न उस समय यह बात सच्चे दिल से कही थी या केवल जैपाल को सुनाने की नीयत से साथ ही इसके एक बात और भी है। बलभद्र--यह भी कह डालो। • भूत-आज आखिरी मर्तवे दूसर नकाबपोश ने जो सूरत दिखाई थी उसकेबारे में मुझे कुछ भ्रम सा होता हैं। शायद मैंने उसे कभी देखा है मगर कहाँ ओर क्योंकर सो नहीं कह सकता। बलभद्र-हॉ उस सूरत के बारे में तो अभी तक मै भी गौर कर रहा हू मगर अक्ल तब तक कुछ ठीक काम नहीं कर सकती जब तक उन नकाबपाशों का कुछ हाल मालूम न हो जाय भूत मेरी तो यही इच्छा है कि उनका हाल जानने के लिए उद्योग करूँ, बल्कि कल मै अपने आदमियों को इस काम के लिए मुस्तैद भी कर चुका है। बलभद्र--अगर कुछ पता लगा सको तो बहुत ही अच्छी बात है सच तो यों है कि मेरा दिल भी खुटके से खाली नहीं है। भूत-इस समय सध्या तक और इसके बाद रात भर मुझे छुट्टी है यदि आप आज्ञा दें तो मैं इस फिक्र में जाऊँ। बलभद-कोई चिन्ता नहीं, तुम जाओ अगर महाराज का कोई आदमी खोजने आवेगा तो मैं जवाब दे लूगा। भूत-बहुत अच्छा। इतना कहकर भूतनाथ उठा और अपने दोनों आदमियों में से एक को साथ लेकर मकान के बाहर हो गया। पन्द्रहवां बयान तिलिस्मी इमारत से लगभग दो कोस दूरी पर जगल में पड़ों की घनी झुरमुट के अन्दर बैठा हुआ भूतनाथ अपने दो आदमियों से बातें कर रहा है। भूत-तो क्या तुम उनके पीछे-पीछे उस खोह के मुहाने तक चले गये थे? एक आदमी--जी नहीं थोडी देर तक तो मैं उन नकाबपोशों के पीछे-पीछे चला गया मगर जब देखा कि वे दोनों देफिक्र नहीं है बल्कि चौकन्ने होकर चारों तरफ खास करके मुझे गौर से देखते जाते है तय मैं भी तरह देकर हट गया। दूसरे दिन हम लोग कई आदमी एक दूसरे से अलग दूर-दूर बैठ गये ओर आखिर मेरे एक साथी ने उन्हें ठिकाने तक पहुँचाकर पता लगा ही लिया कि ये दोनों इस खोह के अन्दर रहते है। इसके बाद हम लोगों ने निश्चय कर लिया और उसी खोह के पास छिपकर मैने स्वय कई दफे उन लोगों को उसी के अन्दर आते-जाते देखा और यह भी जान लिया कि वे लोग दस-बारह आदमी से कम नहीं हैं। भूत-मेरा भी यही खयाल था कि वे लोग दस-बारह मे कम न होंगे, खैर जो होगा देखा जायगा, अब मैं सध्या हो जाने पर उस खोह के अन्दर जाऊँगा, तुम लोग हमारी हिफाजत का खयाल रखना और इसके अतिरिक्त इस बात का पता लगाना कि जिस तरह में उनकी टोह में लगा हुआ हू उसी तरह और कोई भी उनका पीछा करता है या नहीं। आदमी-जो आज्ञा। भूत-हॉ एक यात ओर पूछना है। तुम लोगों ने जिन दस-बारह आदमियों को खोह के अन्दरआते-जाते देखा है वे सभी अपने चहरे पर नकाब रखते है या दा-चार? आदनी जी हम लोगों ने जितने आदमियों को देखा सभों को नकाबपोश पाया। भूत-अच्छा तो तुम अब जाओ और अपने साथियों को मेरा हुक्म सुना कर हाशयार कर दो। इतना कह कर भूतनाथ खडा हो गया और अपन दोनों आदमियों को बिदा करने के बाद पश्चिम की तरफ रदाना हुआ। इस समय भूतनाथ अपनी असली सूरत में न था बल्कि सूरत बदलकर अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए था। यहा स लगभग कोस मर की दूरी पर उस खोह का मुहाना था जिसका पता भूतनाथ के आदमियों ने दिया था। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९ ८५१