पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८५८

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सुरेन्द्र-अगर उनके मामले में पता लगाने की इच्छा ही है तो क्या तुम्हारे यहाँ ऐयारों की कमी है जो तुम स्वय कष्ट करोगे? तेजसिह दवीसिह पण्डित बद्रीनाथ या और जिसे चाहो इस काम पर मुकर्रर करो। गोपाल-जो आज्ञा देवीसिह कहते ही हैं तो इन्हीं को यह काम सुपुर्द किया जाय । देवीसिह-(सलाम करके) जो आज्ञा | गोपाल-और इस बात का भी पता लगाना कि भूतनाथ उनका पीछा करता है या नहीं । देवी-जरूर पता लगाऊँगा। इस बात से छुट्टी पाने बाद थोडी देर तक और बातें हुई इसके बाद महाराज आराम करने चले गए तथा और लोग भी अपने ठिकाने पधारे। चौदहवां बयान सबसे ज्यादे फिक्र भूतनाथ को इस बात के जानने की थी कि वे दोनों नकाबपोश कौन है और दारोगा जैपाल तथा वेगम को उन सूरत्तों से क्या सम्बन्ध है जो समय-समय पर नकाबपोशों ने दिखाई थीं या हमारे तथा राजा गोपालसिह और लक्ष्मीदेवी इत्यादि के सम्बन्ध में हम लोगों से भी ज्यादे जानकारी इन नकाबपोशों को क्योंकर हुई तथा ये दोनों वास्तव में दो ही है या कई । इन्हीं बातों के सोच-विचार में भूतनाथ का दिमाग चक्कर खा रहा था। यों तो उस दरबार में जितने भी आदमी थे सभी उन दोनों नकाबपोशों का हाल जानने के लिए बेताब हो रहे थे और दर बर्खास्त होने तथा अपने डेरे पर जाने के बाद भी हर एक आदमी इन्हीं दोनों नकाबपोशों का खयाल और फिक्र करता था मगर किसी की हिम्मत यह न होती थी कि उनके पीछे-पीछे जाय। हाँ ऐयार और जासूस लोग जिनकी प्रकृति ही ऐसी होती है कि खामख्वाह भी लोगों के भेद जानने की कोशिश किया करते हैं उन दोनों नकाबपोशों का हाल जानने के फेर में पड़े हुए थे। भूतनाथ का डेरा यद्यपि तिलिस्मी इमारत के अन्दर बलभद्रसिह के साथथा मगर वास्तव में वह अकेला न था। भूतनाथ के पिछले किस्से से पाठकों को मालूम हो चुका होगा कि उसकेसाथी नौकर सिपाही याजासूस लोग कम न थे जिनसे वह समय समय पर काम लिया करता था और जो उसके हाल-चाल की खबर बराबर रक्खा करते थे। अब यह कह देना आवश्यक है कि यहाँ भी भूतनाथ के बहुत से आदमी धीरे-धीरे आ गए है जो सूरत बदल कर चारों तरफ घुमते और उसकी जरूरतों को पूरा करते हैं और उनमें से दो आदमी खास तिलिस्मी इमारत के अन्दर उसके साथ रहते हैं जिन्हें भूतनाथ ने अपने खिदमतगार कह कर अपने पास रख लिया है और इस बात को बलभद्रसिह भी जानते है । दर्बार बर्खास्त होने के बाद भूतनाथ और बलभद्रसिह अपने डेरे पर गये और कुछ जलपान इत्यादि से छुट्टीपाकर यों बातचीत करने लगे-- बलभद-ये दोनों नकाबपोश तो बडे ही विचित्र मालूम पड़ते हैं। भूत-क्या कहे कुछ अक्ल काम नहीं करती। मजा तो यह है कि हमी लोगों की बातों को हम लोगों से भी ज्यादा जानते और समझते है। बलभद-वेशक ऐसा ही है। भूत--यद्यपि अभी तक इन नकाबपोशों ने मेरे साथ कुछ बुरा बर्ताव नहीं किया बल्कि एक तौर पर मेरा पक्ष ही करते रहे है तथापि मेरा कलेजा डर के मारे सूखा जाता है यह सोचकर कि जिस तरह आज मेरी स्त्री की एक गुप्त बात इन्होंने प्रकट कर दी जिसे मैं भी नहीं जानता था उसी तरह कहीं मेरी सन्दूकडी का भेद भी न खोल दें जो जैपाल की दी हुई अभी तक राजा साहब के पास अमानत रक्खी है और जिसके खयाल ही से मरा कलेजा हरदम कापा करता है। बलभद्र-ठीक है मगर मेरा खयाल है कि नकाबपोश तुम्हारी उस सन्दूकडी का भेद न तो खुद ही खोलेंगे और न खुलने ही देंगे। - भूत-सो कैसे? वलमद-क्या तुम उन बातों को भूल गये जो एक नकाबपोश ने भरे दर्यार में तुम्हारे लिए कही थीं? उसने नहीं कहा था कि भूतनाथ नेजैसे-जैसे काम किए है उनके बदले में उसे नुहमागा इनाम देना चाहिए और क्या इस बात को महाराज ने भी स्वीकार नहीं किया था? भूत-ठीक है तो इस कहने से शायद आपका मतलब यह है कि मुहमॉगा इनाम के बदले में मै उस सन्दूकडी को भी पा सकता हूँ? देवकीनन्दन खत्री समर