पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८५७

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बेगम की बात सुनकर दोनों नकाबपोश गुस्से में आ गये। दूसरा नकाबपोश जो बैठा था उठ खडा हुआ और अपने चेहरे की एक झलक लापरवाही के साथ बेगम को दिखाकर क्रोध भरी आवाज में बोला, 'क्या ये सब बात झूठ है।" इस दूसरे नकाबपोश ने अपनी सूरत दिखाने की नीयत से अपनी नकाब को दमभर के लिए इस तरह हटाया जिससे लोगों का गुमान हो सकता था कि धोखे में नकाब खसक गई मगर होशियार और ऐयार लोग समझ गए कि इसन जान बूझ के अपनी सूरत दिखाई है। यद्यपि इसके चेहरे पर केवल तेजसिह देवीसिह, गोपालसिह भूतनाथ जैपाल और बेगम की निगाह पड़ी थी मगर इस दूसरे नकाबपोश के चेहरे पर निगाह पडते ही बेगम यह कह कर चिल्ला . उटी-आह तू कहाँ | क्या नन्हों भी गई ॥. बस इससे ज्यादे और कुछ न कह सकी एक दफे कॉप कर बेहाश हो गई और जैपाल भी जमीन पर गिरकर वेहाश हो गया अतएव मुकद्दमे की कार्रवाई राक देनी पड़ी। भूतनाथ तथा हमारे ऐयारों को विश्वास था कि यह दूसरा नकाबपोश वही होगा जिसने पहिले दिन सूरत दिखलाई थी, मगर ऐसा न था। उस सूरत और इस सूरत में जमीन आसमान का फर्क था अतएव सभों ने निश्चय कर लिया कि वह काई दूसरा था और यह कोई और है। इस सूरत को भी भूतनाथ पहिचानता न था। उसके ताज्जुब का हद्द न रहा और उसने निश्चय कर लिया कि आज इनकी खबर जरूर ली जायगी और यही कैफियत हमारे ऐयारों की भी थी। कैदी पुन कैदयाने में भज दिये गये दोनों नकाबपोश बिदा हुए और दरि बास्त किया गया । तेरहवॉ बयान - दर्षार बर्खास्त होने के बाद जब महाराज सुरेन्द्रसिह जीतसिह बीरेन्द्रसिह तेजसिह गोपालसिह और देवीसिह एकान्त में बैठे ता यों बातचीत होने लगी -- सुरेन्द्र-ये दोनों नकाबपोश ता विचित्र तमाशा कर रहे हैं मालूम होता है कि इन सब मामलों की सबसे ज्यादे खवर इन्हीं लोगों को है। जीत-वेशक ऐसा ही है। वीरेन्द्र-जिस तरह इन दोनों ने तीन दफे तीन तरह की सूरतें दिखाई इसी तरह मालूम होता है और भी कई दफे कई तरह की सूरतें दिखाएँगे। गोपाल–नि सन्देह ऐसा ही हागा। मैं समझता हू कि या तो ये लोग अपनी सूरत बदल कर आया करते हैं या दोनों कवल दो ही नहीं है और भी कई आदमी हैं जो पारी-पारी से आकर लोगों को ताज्जुब में डालते है और डालेंगे। तेज-मेरा भी यही खयाल है। भूतनाथ क दिलभे भी खलबली पैदा हो रही है। उसके चेहरे से मालूम होता था कि वह इन लोगों का पता लगाने के लिए परेशान हो रहा है। देवी-भूतनाथ का ऐसा विचार काई ताज्जुब की बात नहीं | जय हम लोग उनका हाल जानने के लिए व्याकुल हो रहे है तब भूतनाथ का क्या कहना है । सुरेन्द्र-इन लोगों ने मुकदमे की उलझन खोलने का ढग तो अच्छा निकाला है मगर यह मालूम करना चाहिए कि इन मामलों से इन्हें क्या सम्बन्ध है? देवी-अगर आज्ञा हो तो मैं उनका हाल जानने के लिए उद्योग कसं? बीरेन्द्र--कहीं ऐसा न हो कि पीछा करने से ये लोग विगड जायें और फिर यहाँ आने का इरादा न करें। गोपाल-मरे खयाल से तो उन लोगों को इस बात का रज न होगा कि लोग उनका हाल जानने के लिए पीछा कर रहे हैं क्योंकि उन लोगों ने काम ही ऐसा उठाया है कि सैकडों आदमियों को ताज्जुब हो और सैकडों ही उनका पीछा भी करें। इस बात को वे लोग खूब ही समदत होंगे और इस बात का भी उन्हें विश्वास होगा कि भूतनाथ उनका हाल जानने के लिए सबस ज्यादे कोशिश करेगा। वीरेन्द-ठीक है और इसी खयाल से वे लोग हर वक्त चौकन्ने भी रहते हों तो कोई ताज्जुब नहीं । जीत-जरूर चौकन्ने रहते होंगे और ऐसी अवस्था में पता लगाना भी कठिन हागा। गोपाल-जो हो मगर मेरी इच्छा तो यही है कि स्वय उनका हाल जानने के लिए उद्योग करूँ। - चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९ ८४९