पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८४६

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दि उस औरत की बातें सुनकर मुझे बडा ही ताज्जुब हुआ और मैंने उससे पूछा, वह है कौन जो तेरा दुश्मन है और मेरे कब्जे में है? औरत-तेरी बेटी कमलिनी मेरे साथ दुश्मनी कर रही है। मै-क्यों ? औरत-उसकी खुशी मैने तो उसका नुकसान नहीं किया । मैं-आखिर दुश्मनी का कोई सबब भी तो होगा? औरत-अगर कोई सबब है तो केवल इतना ही की वह भूतनाथ का पक्ष करती है और मुझे भूतनाथ का दुश्मन समझती है मगरमै कसम खाकर कहती हूँ कि मुझे भूतनाथ से जरा भी रज नहीं है बल्कि मै भूतनाथ को अपना मददगार और भाई समझती हूँ। अगर मुझे भूतनाथ से किसी तरह का रज होता तो मैं तुझे गिरफ्तार करके न लाती बल्कि भूतनाथ ही को ले आती क्योंकि जिस तरह मै तुझे उठा लाई हूँ उसी तरह भूतनाथ को भी उठा ला सकती थी। खैर अब मैं चाहती हूँ कि तू एक चीठी कमलिनी के नाम की लिख दे कि वह मेरे साथ दुश्मनी का बर्ताव न करे। अगर तू अपनी कसम दे के यह बात कमलिनी को लिख देगा.तो वह जरूर मान जायगी। मैने कई तरह से उलट फेर के कई तरह की बातें उस औरत से पूछी मगर साफ-साफन मालूम हुआ कि कमलिनी उसके साथ दुश्मनी क्यों करती है ? इसके अतिरिक्त मुझे इस बात का भी निश्चय हो गया कि जब तक मै कमलिनी के नाम की चीटी न लिख दूंगा तब तक मेरी जान को छुट्टी न मिलेगी। चीठी लिखने से इनकार करने के कारण कई दिनों तक मैं उसका कैदी बना रहा आखिर लाचार हो मैने उसकी इच्छानुसार पत्र लिख दिया, तब उसने बेहोशी की दवा सुंघा कर मुझे बेहोश किया और उसके बाद जब मेरी आँख खुली तो मैंने अपने को आपके सामने पाया । भूत-आपको यह नहीं मालूम हुआ कि उस औरत का नाम क्या था ? चल-मैने कई दफे नाम पूछा मगर उसने न बताया। मालूम होता है किबलभद्रसिह ने अपना जो कुछ हाल वयान किया उस पर हमारे सजा साहब या ऐयारों को विश्वास न हुआ मगर उनकी खातिर से तेजसिह ने कह दिया कि ठीक है ऐसा ही होगा । चलभद्रसिह और भूतनाथ को राजा साहब विदा किया ही चाहते थे कि उसी समय इन्द्रदेव के आने की इत्तिला मिली। आज्ञानुसार इन्द्रदेव हाजिर हुए और सभी को सलाम करने के बाद इशारा पाकर तेजसिह के बगल में बैठ गए। इन्ददेव के आने से हमारे राजा साहब और ऐयारों को बड़ी खुशी हुई और इसीलिएपन्नालाल रामनारायण और प० बद्रीनाथ वगैरह हमारे बाकी के ऐयार लोग भी जो इस समय यहाँ हाजिर और इस इमारत के बाहरी तरफ टिके हुए थे इन्ददेवके साथ ही साथ राजा साहब के पास पहुंचे क्योंकिइन्ददेव बलभदसिहऔर भूतनाथ का अनूठा हाल जानने के लिए सभी बेचैन हो रहे थे और खास करके भूतनाथ के मुकदमे से तो सभी को दिलचस्पी थी। इसके अतिरिक्त इन्द्रदेव अपने साथ दो कैदी अर्थात् नकली बलभद्रसिह और नागर को भी लाए थे और बोले थे कि काशिराज के भेजे हुए और भी कई कैदी थोडी देर में हाजिर हुआ चाहते है जिस कारण हमारे ऐयारों की दिलचस्पी और भी बढ रही थी। सुरेन्द्र-तुम्हारे आने से हम लोगों को बड़ी प्रसन्नता हुई। इन्द्रजीत और गोपालसिह तुम्हारी बडी प्रशसा करते हैं और वास्तव में तुमने जो कुछ किया है वह प्रशसा के योग्य भी है। इन्ददेव-( हाथ जोडकर ) मैं तो किसी योग्य भी नहीं है और न कोई काम ही मेरे हाथ से ऐसा निकला जिससे महाराज के गुलाम के बराबर भी अपने को समझने की प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकू-हॉ दुर्दैव - जो कुछ मेरे साथ बर्ताव किया और उसके सबब से मुझ अभागे को जो कष्ट भोगने पडे उन्हें सुनकर दयालु महाराज को मुझ पर दया अवश्य आई होगी । सुरेन्द-हम लोग ईश्वर को धन्यवाद देते है जिसकी कृपा से एक विचित्र और अनूठी घटना के साथ तुम्हारी स्त्री और लडकी का पता लग गया और तुमने उन दोनों को जीती-जागती देखा। इन्द्र-यह सब कुछ आपके और कुमारों के चरणों की बदौलत हुआ। वास्तव में तो मैं भाडे की जिन्दगी बिताता हुआ दुनिया से विरक्त ही हो चुका था। अब भी वे दोनों आप लोगों के चरणों की धूल आँखों में लगा लेंगी तभी तेरी प्रसन्नता का कारण होंगी। आशा है कि आज ही या कल तक राजा गोपालसिह भी उन दोनों तथा किशोरी, कामिनी, लक्ष्मीदेवी कमलिनी लाडिली और कमला इत्यादि को लेकर यहाँ आ और महाराज के चरणों का दर्शन करेंगे। सुरेन्द्र-( आश्चर्य और प्रसन्नता के साथ ) हॉ । क्या गोपाल ने तुम्हें कुछ लिखा है ? इन्द्रदेव-जी हॉ, उन्होंने मुझे लिखा है कि मैं शीघ्र ही उन सभों को लेकर महाराज की सेवा में उपस्थित हुआ देवकीनन्दन खत्री समग्र ८३८