पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८४४

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ci - इन्द-हो और सब किस्सा तो सुन चुका केवल इतना सुनना बाकी है कि आपकी वह तिलिस्मी किताब क्याकर इसके हाथ लगी और यह उस पुतली की सूरत में क्यों बता रहा करती थी। गोपाल-इतना किस्सा आप तिलिस्मी कार्रवाई स छुट्टी पाकर सुन लीजिएगा और खैर अगर इस पर ऐसा ही जी लगा हुआ है तो भै मुख्तसर में आपका रामझायें देता हूँ क्याकि में यह सब हाल इन्दिरा से सुन चुका है। असल यह है कि मेर यहाँदो ऐयार हरनामसिह और बिहारी रहते थे। वरुपये की लालच में पड़कर कम्बख्त मायारानी स मिल गए थे ओर मुझे कैदखान में पहुँचाने के बाद वे लोग उसी की इच्छानुसार काम करत थे मगर पुरी राह चलन यालों को या पुरों का सग करने वालों को कुछ फल मिलता है वही उन्हे भी मिला. अथात एक दिन मायारानी ने धोखा दकर उन्हें खास बाग के एक गुप्त कूए में ढकेल दिया * जिसके बार में वह कोवल इतना ही जानती थी कि वह तिलिस्मी ढग का फूओं लोगों को मार डालने क लिए बना हुआ है मगर वास्तव में ऐसा नहीं है। यह पहुआ उन नागों के लिए बना है जिन्हें तिलिस्म में कैद करना मजूर हाता है। मायारानी को चाहे यह निश्चय हो गया कि दोनों एयार मर गए किनधास्तव ने व मरे नहीं बल्कि तिलिस्म में कैद हो गये थे। इस बात को मायारानी बहुत दिनों तक छियाय रही लेकिन आरियर एक दिन उसने अपनी लोडी लीला से कह दिया और लीला से यह बात हरनामसिह की लड़की ने ली जब आपने मुझे कैद से छुडाया और मै खुल्लमखुल्ला पुन जमानिया का राजा बना तर हरनामसिह की लड़की फरियाद करने के लिए मेरे पास पहुंची और मुझसे वह हाल कहा। मैन जवाब में कहा कि दोनों ऐयार उस कुएँ में ढकेल देने से मरे नहीं बल्कि तिलिम्भ में कैद हो गए है जिन्हें मै छुआ तो सकताई मगर उन दोनों ने मेरे साथ दगा को है इसलिए छुड़ाने योग्य नहीं है और न मैं उन्हें छुड़ाऊगा ही। इतना सुन वह चली गई मगर छिप-छिपे उत्तने ऐसा भेद लगाया और चालाकी की जिसे सुनेंगे तो दग हो जायेंगे। मुख्तसर यह कि अपने बाप को छुड़ाने की नीयत से उसी लड़की ने मेरी तिलिस्मी किताव धुराई और उसकी मदद से तिलिस्म के अन्दर पहुँधी. मगर उस किताब का मतलब ठीक ठीक न समझने के सबब वह न तो आपने बाप को छजा सकी और न खुद ही तिलिस्म के लाहः निकल सकी, ही उसी जगह अकस्मात् इन्दिरा से उसकी मुलाकात हो गई। इन्दिरा का भी अपनी तरह दुखी जान कर उसने सर हाल इससे कहा और इन्दिरा न चालाकी स वह किताब अपने कब्जे में कर ली तथा उरात बहुत कुछ फायदा-सी उठाया। निलिस्म के आने में जाने वालों से अपने को बचाने के लिए इन्दिरा उस पुनली की सूरत बनकर ग्इन लगी क्योंकि उसी ढग के कपड इन्दिरा को उस पुतली वाले घर से मिल गए थे। जब मैंने इन्दिरासे यह हाल सुना तो बिहारीसिह और हरनामसिह तथा - उसकी लड़की को बाहर निकाला। दे सय भी चुनारगड पहुंचाए जा चुके है। जब आर चुनारगढ पहुंगे तो औरों के साथ-साथ उन लोगों का भी तमाशा देखेंगे, तथा लक्ष्मीदेवी-(गोपालसिह स) मगर जाप इन बातों को इतनी जल्दी-जल्दी और सक्षेप में कर कर कुमारों का भगाना क्यों चाहते है ? इन्हे यहाँ अगर एक दिन की दर हो ही जायगी तो क्या हर्ज है? कमलिनी-मेहमानदारी के ख्याल से जल्द छूटना चाहते है। गोपाल-औरतों का काम ता आवाज कसने का हई है मगर में किसी और ही सवव से जल्दी मचा रहा हूँ। महाराज (वीरेन्द्रसिह) के पत्र बराबर आ रहे है कि दोनों कुमारों को शीघ भेज दें इसके अतिरिक्त दहा कैदियों का जमाव हो रहा है और नित्य एक नया रग खिलता है। यहाँ जितनी आफतें थी यह सब जाती रही लक्ष्मी-(गात काट कर ) तो कुमार को और हम लोगों को आप तिलिस्म के बाहर क्यों नहीं ले चलते ? वहाँ से कुमार बहुत जल्दी चुनार पहुच सकते है। गोपाल-(कुमार से आप इस समय मेरे साथ तिलिस्म के बाहर जा सकते है मगर ऐसा हाना न चाहिए। आप लोगों के हाथ से जो कुछ तिलिस्म टूटने वाला है उसे तोड़ कर ही आपका इस तिलिस्म के अन्दर ही अन्दर चुनार पहुचना उचित होगा। जब आपकी शादी हो जायगी तब मै आपको यहाँ लाकर अच्छी तरह इस तिलिस्म की सैर फराऊँगा। इस समय मै (किशोरी कामिनी इन्दिरा वगैरह की तरह बताकर ) इन सभों को लेकर खास बाग में जाता हू क्योंकि अब वहाँ सब तरह से शान्ति हो चुकी है और किसी तरह का अन्देशा नहीं। यहों आठ-दसदिन रह कर समों को लिए हुए मैं चुनार चला जाऊँगा और तब उसी जगह आपसे हम लोगों की मुलाकात होगी। इन्द्रजीत-जा कुछ आप कहते हैं वही होगा मगर यहा की अद्भुत बातें देखकर मेरे दिल में कई तरह का सुटका बना हुआ है। देखिए सन्तति आठवा भाग, पाँचवा बयान । देवकीनन्दन खत्री समग्र