पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८३८

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Gyt तकलीफ उठा चुकी है जिसका यदला तो में ले न सकी मगर उसकी लाश पर थूकन का मोका मुझे जरूर मिल गया। (लक्षमीदवी की तरफ दख के ) जय मेने भूतनाथ के कागजात लेन के लिए मनोरमा के मकान पर जाकर नागर का धोखा दिया था तब मैने अपनी कोठरी के बगल वाली कोठरी में इसी की लटकती हुई लाश पर थूका था *। उसी कोठरी में मैने अफसांस के साथ वरदयू को भी मुर्दा पाया था, उसके मरने का सवव भी मुझेन मालूम हुआ और न होगा। वास्तव मे वरदूर्व बडा ही नेक आदमी था और उसने मेरे साथ बडी नेकियों की थीं। मुझे यह खबर उसी न दी थी कि अब मायारानी तु मार डालने का बन्दोवस्त कर रही है । वह उन दिनों खास वाग के मालियों का दागगा था । इन्दिरा-वशक वरदेवू वडा नेक आदमी था असल में वह पुर्जा उसी ने भरी तरफ फेंका था और कम्बख्त नानू ने देख लिया था, मगर मैं धाखा खा गई, मेरी समझ में आया कि वह पुर्जा नानू का फेंका हुआ है और उन टुकडों को इस ख्याल से उसने चुन लिया है कि कोई दखने न पावे या किसी दुश्मन के हाथ में पड कर मेरा कमलिनी-अच्छा फिर आगे क्या हुआ सो कहा। इन्दिरा-जब मैने यह समझ लिया कि यह नेकी नानू ने ही मेरे साथ की है और वह टहलता हुआ मकान के पाम आ गया तो मैं छत पर से उतर कर पुन बाग में आई और टहलती हुई उसके पास पहुची। मैं-(नानू से) आपने मुझ पर बड़ी कृपा की हे जो मुझे आने वाली आफत से होशियार कर दिया। में अभी तक मनोरमा को अपनी मॉ ही समझ रही थी। नानू-ठीक है मगर तुम्हें मुझसे ज्यादा वात-चीत न करनी चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि लोगों को मुद्दा पर शक हा जाय। मैं-इस रामय यहाँ कोई भी नहीं है इसलिए मै यह प्रार्थना करने आई है कि जिस तरह आपने मुझ पर इतनी कृपा की है उसी तरह मेरे निकल भागन में भी मदद देकर अनन्त पुण्य के भागी हों। नानू अच्छा में इस काम में भी तुम्हारी मदद करुगा मगर तुम भागने में जल्दी न करना नहीं तो सब काम चौपट हो जायगा क्योंकि यहां के सभी आदमी तुम पर गहरी हिफाजत की निगाह रखत है और बरदेवू तो तुम्हारा पूरा दुश्मन है उससे कभी यातचीत न करना वह बडा ही धोखेबाज ऐयार है। घरदेबू को जानती हो ? मैं हॉ मैं वरदेवू को जानती हू । नानू वस तो तुम यहा से चली जाओ, मैं फिर किसी बहाने से तुम्हारे पास आऊगा तब बातें करूगा । मैं खुशी-खुशीवहा से हटी और बाग के दूसरे हिस्स में जाकर टहलने लगी जहा से पहरे वाले बखूबी देख सकते थे। जैसे-जैसे अन्धकार बढता जाता था मुझ पर हिफाजत की निगाह भी बढती जाती थी यहा तक आधी घडी रात जाने पर लौडियो और खिदमतगारों ने मुझे मकान के अन्दर जाने पर मजबूर किया और मैं मी लाचार होकर अपने कमरे में आ बिस्तर पर लेट गई सभों ने खाने-पीने के लिए कहा मगर इस समय मुझे खाना-पीनाकहा सूझता था अस्तु बहाना करके टाल दिया और लेटे-लेटे सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए? मैं समझे हुए थी कि नानू मेरे पास आकर मुझ यहा से निकल जाने के विषय में राय देगा जैसा कि वह वादा कर चुका था मगर मेरा ख्याल गलत था आधी रात तक इन्तजार करने पर भी वह मेरे पास न आया। इसके अतिरिक्त रोज मरी हिफाजत के लिये रात को दो लाँडिया मेरे कमरे में रहती थीं मगर आज चार लौडियों को रोज से ज्यादे मुस्तैदी के साथ पहरा देते देखा। उस समय मुझ खुटका हुआ मैं सोचन लगी कि नि सन्देह इन लोगों का मेरे बारे में कुछ सन्देह हो गया है। मैं नोंद न पडने और सिर में दर्द होने से वेचैनी दिखाकर उठी और कमरे में टहलने लगी यहा तक कि दर्वाजे के बाहर निकल कर सहन में पहुची और तव देखा कि आज तो बाहर भी पहरे का इन्तजाम बहुत सख्त हो रहा है। मैने प्रकट में किसी तरह का आश्चर्य नहीं किया और पुन अपने विस्तर पर आकर लेट रही और तरह-तरहकी बातें सोचने लगी। उमी समय मुझो निश्चय हो गया कि उस पुर्जे को फेंकने वाला नानू नहीं कोई दूसरा है अगर नानू होता तो इस वात की खबर फैल न जाती क्योंकि उन दुकर्डा का ता नानून मेरे सामने ही बटार लिया था। अफसोस, मैने बहुत बुरा किया, अगर वे थाई से शब्द मैन कहती तो नानू सहज में ही टुकड़ा से कोई मतलब नहीं निकाल सकता था, मगर अब ता असल भेद खुल गया और मेरे पैरों में दाहरी जजीर पड़ गई अस्तु अब क्या करना चाहिए । दखिए सन्तति सातवा भाग, सालवा क्यान। देवकीनन्दन खत्री समग्र ८३०