पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८२३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

और आनन्दसिह को बडा ही आश्चर्य हुआ। गद्यपि उसकी उम्र पचास से ज्याद न थी मगर वह साठ वर्ष से भी ज्यादे उम्र का युडा मालूम होता था। उसके खूबसत चेहरे पर जर्दी छाई थी, बदन में हड्डी ही हड्डी दिखाई देती थी, और मालून हाता था कि इसकी उम्र का सबस बडा हिस्सा रज गम और मुसीबत ही में बीता है। इसमें कोई शक नहीं कि यह किसी जमाने में खूबसूरत दिलेर और बहादुर रहा हागा मगर अब तो अपनी सूरत-शक्लसे देखन वालों के दिल में दुख ही पैदा करता था। दोना कुमार ताज्जुन की निगाहों स उसे देखते रहे और उसका हाल जानने की उत्कण्ठा, उन्हें बेचैन कर रही थी। कन्यादान हो जाने के बाद दोनों कुमारों ने अपनी-अपनी उगली से अगूठी उतार कर अपनी-अपनी स्त्री को (निशानी या तोइफे के तौर पर) दी और इसके बाद सभों की इच्छानुसार दोनों भाईउठ उसी कमरे में चले गये जो एक तौर पर उनके बैठने या रहने का स्थान हो चुका था। इस समय रात घण्टे भर से कुछ कम बाकी थी। दोनों कुमारों को उस कमरे में बैठे पहर मर से ज्यादे बीत गया नगर किसी ने आकर खवर न ली कि वे दोनों क्या कर रहे हैं और उन्हें किसी चीज की जरूरत है या नहीं आखिर राहादेखत-देखतेलाचार होकर दोनों कुमार कमरे के बाहर निकले आर इस समय बाग में चारों तरफ सन्नाटा देखकर उन्हें बड़ा ही ताज्जुब हुआ। इस समय न तो उस बाग में कोई आदमी था और नव्याइ-शादी के सामान में से ही कुछ दिखाई देता था यहा तक कि उस सगनभर क चबूतरे पर भी (जिस पर ब्याह का मडवा या) हर तरह से सफाई थी और यह नहीं मालूम होता था कि आज रात का इस पर कुछ हुआ था। बेशक यह बात ताज्जुब की थी बल्कि इससे भी बडकर यह बात ताज्जुब की थी कि दिन मर बीत जाने पर भी किसी ने उनकी खबर न ली। जलरो कामों से छुट्टी पाकर दोनों कुमारों ने यावली में स्नान किया और दो-चार फल जो कुछ उस वागीच में मिल सके खाकर उसी पर सन्तोष किया दोनों भाइयों नेतरह-तरह के सोच विचार में दिन ज्यो त्यों करके बिता दिया मगर सध्या होते-हातेजो कुछ वहा पर उन्हॉन दखा उसके बर्दाश्त करने की ताकत उन दोनों के कोमल कलेजों में न थी। सध्या होने में थोड़ी ही देर थी जव उन दोनों ने उस युड्ढे दारोगा को तेजी के साथ अपनी तरफ आते हुए देखा। उसकी सूरत पर हवाई उड रही थी और वह घबडाया हुआ सा मालूम पड रहा था] आने के साथ ही उसन कुँअर इन्द्रजोतसिह की तरफ देख के कहा 'बडा अन्धेर हो गया ! आज का दिन हम लोगों के लिए प्रलय का दिन था इसलिए आपकी सेवा में उपस्थित न हो सका ।। इन्दजीत-(घबडाहट और ताज्जुब के साथ) क्या हुआ? दारोगा आश्चर्य है कि इसी बाग में दो-दा खून हा गये और आपको कुछ मालूम न हुआ ।" इन्द्रजीत (चौक कर ) कहा और कौन माग गया? दारोगा-(हाथ का इशारा करके) उस पड के नीचे, चलकर देखने से आपको मालूम होगा कि एक दुष्ट ने इन्द्रानी और आनन्दी को इस दुनिया से उठा दिया लेकिन बडी कारीगरी से मैन खूनी को गिरफ्तार कर लिया है। यह एक ऐसी बात थी जिसने इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह के होश उड़ा दिए। दोनों घबडाए हुए उस युढे दारोगा के साथ पूरव तरफ चले गये और एक पेड के नीच इन्द्रानी और आनन्दी की लाश देखी। उनके बदन में कपड़े और गहने सब वहीं थ जो आज रात को ब्याह के समय कुमार ने देखे थे और पास ही एक पेड के साथ बंधा हुआ नानक भी उसी जगह नौजूद था। उन दोनों को देखने के साथ ही इन्द्रजीतसिह ने नानक से पूछा "क्या इन दोनों को तूने मारा इसक जवाब में नानक ने कहा ' हा इन दोनों का मैने मारा है और इनाम पाने का काम किया है ये दोनों बड़ी ही शैतान थी।

  • अठारहवा भाग समाप्त

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ८१५