पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८२१

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Qyt कुमार भी धीर-धीरे उस कोठरी में चले गए मगर वहाँ भैरासिह दिखाई न पडा ओर न उस कोठरी में स किसी तरफ जाने का रास्ता ही मालूम हुआ। इन्द्र-(आनन्द ) क्यों हम लागों का खयाल ठीक निकला न । आनन्द-नि सन्देह वह झूठा था अगर ऐसा न होता तो जानकारों की तरह इस कोठरी में घुसकर गायब न हो जाता। इन्द्र-वात तो यह है कि तिलिस्म के इस भाग में बहुत समझ-यूझकर काम करना चाहिए जहा की आबोहवा अपनों को भी पराया कर देती हैं। आनन्द-मामला तो कुछ ऐसा ही नजर आता है। मेरी राय मे तो अब यहाचुप-चापबैठना भी व्यर्थ जान पडता है। यहा से किसी तरफ जाने का उद्योग करना चाहिए। इन्द-अब आज की रात तो सब करके चिता दा कल सवेरे कुछ न कुछ बन्दोबस्त जरूर करेंगे। इसके बाद दानों भाई वहाँ से हटे और टहलते हुए वावली के पास आकर सगमर्मर वाले चबूतरे पर बैठ गए। उसी समय उन्होंन एक आदमी को सामने वाली इमारत के अन्दर से निकलकर अपनी तरफ आते देखा। यह शख्स वही बुड्ढा दारोगा था जिससे पहिले बाग में मुलाकात हो चुकी थी जिसने नानकै को गिरफ्तार किया था और जिसके दिए हुए कमन्द के सहारे दोनों कुमार उस दूसरे बाग में उतर कर इन्दानी और आनन्दी से मिले थे। जव वह कुमार के पास पहुचा तो साहब सलामत के बाद कुमारों ने उसे इज्जत के साथ अपन पास बैठाया और यों वातचीत होने लगी - इन्द्रजीत--आज पुन आपसे मुलाकात होने की आशा तो न थी । दारोगा नेशक मुझ भी इस बात का गुमान न था परन्तु एक आवश्यक कार्य के कारण मुझे आप लोगों की सेवा में उपस्थित होना पडा। क्षमा कीजिएगा जिस समय आप कमन्द के सहारे उस बाग में उतरे थे उस समय मुझे इस बात की कुछ भी खबर न थी कि उन औरतों में जिन्हें देख कर आप उस बाग में गए थे दोऔरतें ऐसी है जिन्हें और बातों के अतिरिक्त यहा की रानी कहलाने की प्रतिष्ठा भी प्राप्त है। जिन्दगी का पिछला भाग इस बुढौती के लिबास में काट रहा हूँ इसलिए आखों की राशनी और ताकत ने भी एक तौर पर जवाब ही दे दिया है इसलिए मैं उन ओरतों को भी पहिचान न सका। इन्द्र-खैर ता यह यात ही क्या थी जिसके लिए आप माफी माग रहे है और इससे मेरा हर्ज भी क्या हुआ? आप उस काम की फिक्र कीजिए जिसके लिए आपको यहा आने की तकलीफ उठानी पड़ी। दारोगा-इस समय वे हो दोनों अर्थात इन्द्रानी और आनन्दी मेरे यहा आने का सबब हुई है। मैं आपके पास इस बात की इत्तिला करने के लिए भेजा गया है कि परसों उन दोनों औरतों की शादी, आपदोनों भाइयों के साथ होने वाली है आशा है कि आप दोनों भाई इसे स्वीकार करेंगे। इन्द्र-मै अफसोस के साथ यह जवाब देने पर मजबूर हू कि हम लोग इस शादी को मजूर नहीं कर सकते और इसके कई सवय है। दारोगा-ठीक है, मुझे भी पहिले-पहिले यही जवाब सुनने की आशा थी मगर मैं आपको अपनी तरफ से भी नेकनीयती के साथ यह राय दूगा कि आप इस शादी से इनकार न करें और मुझे उन सब बातों के कहने का मौका न दें जिन्हें लाचारी की हालत में निवेदन करके समझाना पड़ेगा कि आप इस शादी से इन्कार नहीं कर सकते बाकी रही यह बात कि इनकार करने के कई सबब हैं, सो यद्यपि मै उन कारणों के जानने का दावा तो नहीं कर सकता मगर इतना तो जरूर कह सकता हूँ कि सबसे बडा सबब जो है वह केवल मुझी को नहीं बल्कि सभों को यहा तक कि इन्दानी और आनन्दी को भी मालूम है। परन्तु मै आपको भरोसा दिलाता हू कि किशोरी और कामिनी को भी इस शादी से किसी तरह का दुख न होगा क्योंकि उन्हें इस बात की पूरी-पूरी खबर है कि यह शादी ही आपकी और उनकी मुलाकात का सबब होगी विना इस शादी के हुए वे आपको और आप उन्हें दख भी नहीं सकते। इन्द्र--मै आपकी बातों पर विश्वास करने की कोशिश करूँगा परन्तु और सब बातों को किनारे रख कर मैं आपसे पूछता हू कि यह शादी किस रीति के अनुसार हो रही है ? विवाह के आठ प्रकार शास्त्र ने कहे हैं, यह उनमें से कौन सा प्रकार है और ऐसी शादी का नतीजा क्या निकलेगा। यद्यपि इसमें मेरी कुछ हानि नहीं हो सकती परन्तु मरी अनिच्छा के कारण जो कुछ हानि हो सकती है. इसका विचार लड़की वाले के सिर है। दारोगा-ठीक है मगर जहा तक मै सोचता हूँ इन सब बातों पर अच्छी तरह विचार किया जा चुका है और ज्योतिषी चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ८१३