पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८१०

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Gri जिसको इश्वर ने तिलिस्म लोडन की शक्ति दी है, तिलिरम तोटो वाल को हम ईश्वर समझें यही उचित है। आनन्द-तो तुम राजा गोपालसिह के पास जा सकती है या हमारी चीठी उनके पास पहुंचा सकती हो ? इन्द्रानी-मै स्वय राजा गापालसिह के पास जा सकती हूँ और अपना आदमी नी भज सकती हूँ मगर आजकल एसा करने का मौका नहीं है, क्योंकि आजकल मायारानी वगैरह खास बाग में आई हुई है और उनसे तथा राजा गोपालसिहस बदा-यदी हो रही है शायद यह वात आपको भी मालूम होगी। इन्दजीत-हा मालूम है ! इन्दानी--एमी अवस्था में हम लोगों का या हमारे आदमियों का वहा जाना अनुचित ही नहीं बल्कि दुख दाई भी हो सकता है। इन्द्रजीत-हा सो तो जरूर है। इन्दानी-मगर मै आपका मतलब समझ गई आप शायद उसके विषय में राजा गोपालसिह को लिखा चाहते है जिसके हिस्से में किशोरी कामिनी वगैरह पड़ी हुई है मगर ऐसा करने की कोई जरुरत नहीं है दा रोज संबकीजिए तब तक स्वय राजा गोपालसिह ही यहा आकर आराम मिलेंग। इन्द्रजीत-अच्छा यह बताया कि हमारी धीठी किशारी या कमलिनी क पास पहुंचा सकती हो इन्द्वानी-जी हा बल्कि उसका जवार भी मगवा सकती हूँ मगर ताज्जुब की बात है कि कमलिनी ने आपके पास काई पत्र क्यों नहीं भेजा। इसमें कोई सन्देह नहीं कि उन्हें आप लोगों का पहा आम मालूम है। इन्दजीत-शायद कोई सयब हागा, अच्छा तो में कमलिनी के नाम से एक चोटी लिख दूं? इन्द्रानी-हा लिख दीजिये मैं उसका जवाव मगा दूंगी। कुअर इन्दजीतसिह ने भैरोसिह की तरफ देखा । भैरासिह ने अपन बटुए में स कलम दवात और कागज निकाल कर कुमार के सामने रख दिया और कुमार ने कमलिनी क नाम सहस मजमून की चीठी लिख और बन्द कर इन्दानी के हवाले कर दी- 'मेरी कमलिनी, यह तो मुझे मालूम ही है कि किशोरी कामिनी लक्ष्मीदेवी और लाडिती वर्गरह को साथ लेकर राजा गोपालसिह की इच्छानुसार तुम यहा अई हा मगर मुझे अफसोस इस बात का है कि तुम्हारः दिल जो किसी समय मक्खन की तरह मुलायम था अब फोलाद की तरह टस हो गया। इस बात का नो विश्वास हा ही नहीं सकता कि तुम इच्छा करके भी मुझस मिलन में असमर्थ हो परन्तु इस बात का रज अवश्य हा सकता है कि किसी तरह का कसूर न होने पर भी तुमन मुझे दूध की मक्खी की तरह अपने दिल में निकाल कर फेंक दिया। खेर तुम्हारे दिल की मजबूती और कठोरता का परिचय तो तुम्हारे अनूठ कामों हीरो मिल चुका था परन्तु किशारी के विषय में अभी तक मेरा दिल इस बात की गवाही नहीं देता कि वह भी मुझे तुम्हारी ही तरह अपने दिल से मुला दने की तावात रखती है। मगर क्या किया जाय? पराधीनता की बैंडी उसके पैरों में है और लाचारी की मुहर उसफ होठों पर अस्तु इन सब बातों का लिखना तो अब वृथा ही है, क्योंकि तुम अपनी आप मुख्तार हामुझसमिलो चाहे न मिलो यह तुम्हारी इच्छा है मगर अपना तथा अपने साथियो का कुशल मगल तो लिख भेजो या यदि अब मुझे इस योग्य भी नहीं समझती तो जाने दो। क्या कहें, किसका- इन्द्रजीत" कुअर आनन्दसिह की भी इच्छा थी कि अपने दिल का कुछ हाल कामिनी और लाडिली को लिखे परन्तु कई बातों का खयाल कर रह गए। इन्दानी कुअर इन्दजीतसिह की लिखी हुई चीठी लेकर उठ खडी हुई और यह कहती हुई अपनी बहिन का साथ लिए चली गई कि अब में चिराग जले के बाद आप लोगों से मिलूगी तब तक आप लोग यदि इच्छा हो तो इस बाग की सैर करें मगर किसी मकान के अन्दर जान का उद्योग न करें। सातवां बयान अब हम थोडा सा हाल राजा गोपालसिह का लिखने है। जब वह बरामदे पर से झाकन वाला आदमी मायारानी के चलाए हुए तिलिस्मी तमचे की तासीर से बेहोश होकर नीचे आ गिरा और भीमसेन उसके चेहरे की नकाब हटाने और सरत दखने पर चौक कर बोल उठा कि वाह-वाह यह ता राजा गोपालसिह है, तव मायारानी पटुत ही प्रसन्न हुई और भीमसन से बोली बस अब विलम्ब करना उचित नहीं है, एक ही बार में सिर धड से अलग कर देना चाहिए। भीम-नहीं. इसे एकदम से मार डालना उचित न हागा बल्कि कैद करके तिलिस्म का कुछ हाल मालूम करना लाभदायक होगा। देवकीनन्दन खत्री समग्र ८०२