पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८०८

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art मुहर द० --गु०मा० इस चीठी को कुंअर इन्द्रजीतसिह ने पुन पहा और ताज्जुब करते हुए अपने छोटे भाई की तरफ देख क कहा ताज्जब नहीं कि यह चीती किसी ने दिल्लगी के तौर पर लिख कर भेरोसिह के रास्ते में डाल दी हो और हम लोगा को तरदुद में डाल कर तमाशा देखा चाहता हो ?' आन-कदाचित ऐसा ही हो। अगर कमलिनी से मुलाकात हो गई होती तो भैरो-तब क्या होता ? में यह पूछता हूं कि इस तिलिस्म के अन्दर आकर आप दोनों भाइयों ने क्या किया? अगर इसी तरह से समय विताया जायगा तो देखियेगा कि आगे चल कर क्या-क्या होता है। इन्द्र-तो तुम्हारी क्या राय है, बिना समझे बूझ तोड फोड़ मचाऊ? भैरो-बिना समझे बूझे तोड़ फोड मचाने की क्या जरुरत है ? तिलिस्मी किताव और तिलिस्मी याजेस आपने क्या पाया और वह किस दिन काम आवेगा ? क्या इन वागों का हाल उसमें लिखा हुआ न था? इन्द्रजीत-लिखा हुआ तो था मगर साथ ही इसके यह भी अन्दाज मिलता था कि तिलिस्म के य हिस्स टूटन वाले नहीं है। भैरो-यह तो मैं भी बिना तिलिस्मी किताब पढे ही समझ सकता हूँ कि तिलिस्म के ये हिस्से टूटन वाले नहीं है अगर टूटने वाल हाते तो किशोरी कामिनी योरह को राजा गोपालसिह हिफाजत के लिए यहा न पहुंचा देते मगर यष्टा से निकल जाने का या तिलिस्म के उस हिस्से में पहुँचने का रास्ता तो जरुर हागा जिस आप तोड सकत है। आनन्द-हा इसमें क्या शक है। भैरो-अगर शक नहीं है तो उसे खोजना चाहिए। इतने ही में इन्द्रानी और आनन्दी भी आ पहुची जिन्हे देख दानों कुमार बहुत प्रसन्न हुए और इन्दजीतसिह ने इन्द्रानी से कहा- मैं बहुत देर से तुम्हारे आने का इन्तजार कर रहा था। इन्द्रानी-मेरे आने में वादे से ज्यादे देर तो नहीं हुई। इन्द-न सही मगर ऐसे आदमी के लिए जिसका दिल तरह-तरहफे त्तरददुदों और उलझनों में पड़ कर खराबहो रहा हो इतना इन्तजार भी कम नहीं है। इस समय इन्दानी और आनन्दी यद्यपि सादी पोशाक में थीं मगर किसी तरह की सजावट की मुहताज न रहने वाली उनकी खूबसूरती दखने वाले का दिल, चाहे वह परले सिरे का त्यागी क्यों न हो अपनी तरफ खैचे बिना रह सकती थी । नुकीले हया से ज्यादे काम करने वाली उनकी बड़ी-बड़ी आखों में मारने और जिलाने वाली दोनों तरह की शक्तियों मौजूद थीं। गालो पर इत्तिफाक से आ पड़ी हुई घुघराली ल्रे शान्त वैठ हुए मन को भी चावुक लगा कर अपनी तरफ मुतवजह कर रही थी। मूधपन ओर नकचलनी का पता देने वाला सीधी और पतली नाक तो जादू का काम कर रही थी मगर उनक खूबसूरत पतले और लाल ओ को हिलते देखने और उनमें से तुले हुए तया मन लुभाने वाले शब्दों के निकलने की लालसा से दोनों कुमारों कोछूटकारा नहीं मिल सकता था और उनकी सुराहीदार गर्दनों पर गर्दन देनेवालों की कमी नहीं हो सकती थी। केवल इतना ही नहीं उनके सुन्दर-सुडौल और उचित आकार वाले अगों की छटा वडे-बडे कवियों और चित्रकारों को भी चक्कर मे दाल कर लाजी कर रकती थी। जर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह के आग्रह से वेदानों उनके सामने बैठ गई मगर अदब का पल्ला लिए और सर नीचा किए हुए। इन्द्रानी-इस जल्दी और थोडे समय में हम लोग आपकी चातिरदारी और मेहमानी का इन्तजाम कुछ भी न कर सकी मगर मुझ आशा है कि कुछ देर के बाद इस कसूर की माफी का इन्तजान अवश्य कर शॉगी। इन्द्रजीतसिह-इतना क्या कम है कि मुझ जैसे नाचीज नुसाफ़िर के साथ यहाँ की रानी होकर तुमने ऐसा अच्छा बर्ताव किया। अव आशा है कि जिस तरह तुमन अपने वर्ताव से मुझे प्रसन्न किया है उसी तरह मेरे सवालों का जवाब देकर मेरा सन्देह भी दूर करोगी। इन्दानी-आप जो कुछ पूछना चाहते हो पूछे. मुझे जवाब देने में किसी तरह का उख न होगा। इन्दजीत-किशारी,कामिनी कमलिनी और सद्धिशी वगैरह इस तिलिस्म के अन्दर आई है? इन्द्रानी-जी हा आई तो हैं ? इन्द्रजीत-क्या तुम जानती हो कि इस समय वे सब कहाँ है? देवकीनन्दन खत्री समग्र Goo