पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७९४

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चोरी गई है। कहीं ऐसा न हो कि मेरी कुछ चीजों को ये नकली सौदागर साहब अपनी ही चीज बतावें उस समय ताज्जुब नहीं कि मैं अपनी ही चीजों का चोर वन जाऊ । दीवान-चीजों की फिहरिश्त जमादार के पास मौजूद है. तुम्हारी चीजों का तुम्हें कोई चोर नहीं बना सकता। हा तुमने इन्हें नकली सौदागर क्यों कहा? नानक इसलिए कि ये दोन्गें भी मेरी तरह से ऐयार है और इनके मालिक तारासिह को मैने गिरफ्तार कर लिया है दुश्मनी से नहीं बल्कि आपुस की दिल्लगी से, क्योंकि हम दोनों एक ही मालिक अर्थात् राजा वीरेन्द्रसिह के एयार हैं धोखा देने की शर्त लग गई थी। राजा वीरेन्द्रसिह का नाम सुनते ही दीवान साहब के कान खडे हो गए और वे ताज्जुब के साथ तारासिह के दोनों शागिदों की तरफ देखने लगे। तारासिह के एक शागिर्द ने कहा, इसने तो झूठ बोलने पर कमर बांध रक्खी है यह चाहे राजा वीरेन्द्रसिंह का ऐयार हो मगर हम लोगों को उससे कोई सरोकार नहीं है। हम लोग न तो ऐयार है और न हम लोगों का कोई मालिक ही हमारे साथ था जिसे इसने गिरफ्तार कर लिया हो। यह तो अपने को ऐयार बताता ही है फिर अगर झूठ बोल के आपको धोखा देने का उद्योग करे तो ताज्जुब ही क्या है ? इसकी झुठाई-सचाई का हाल तो इतने ही से खुल जायगा कि एक तो इसकी तलाशी ले ली जाय दूसरे इससे ऐयारी की सनद मागी जाय जो राजा बीरेन्द्रसिह की तरफ से नियमानुसार इसे मिली होगी। दीवान-तुम्हारा कहना बहुत ठीक है, ऐयारों के पास उनके मालिक की सनद जरुर हुआ करती है। अगर यह प्रतापी महाराज वीरेन्द्रसिह का ऐयार होगा तो इसके पास सनद जरुर होगी और तलाशी लेने पर यह भी मालूम हो जायगा कि इसने जिसे गिरफ्तार किया है वह कौन है । (नानक से) अगर तुम राजा वीरेन्द्रसिह के ऐयार हो तो उनकी सनद हमको दिखाओ। हा और यह भी बताओ कि अगर तुम ऐयार हो तो इतनी जल्दी गिरफ्तार क्यों हो गए क्योंकि ऐयार लोग जहा कब्जे के बाहर हुए तहा उनका गिरफ्तार होना कठिन हो जाता है। नानक मै गिरफ्तार कदापि न होता मगर अफसोस मुझे यह बात बिल्कुल मालूम न थी कि तारासिह को मेरी पूरी खबर है और वह मेरी तरफ से होशियार है तथा उसने पहिले ही से मुझे गिरफ्तार करा देने का बन्दोबस्त कर रखा है। दीवान-खैर तुम ऐयारी की सनद दिखाओ। नानक-(कुछ लाजवाब सा होकर ) सनद मुझे अभी नहीं मिली है। तारासिह का शा० (दीवान से) देखिए मैं कहता था न कि यह झूठा दीवान-(क्रोध से ) वेशक झूठा है और चोर भी है ( जमादार से ) हॉ अब इसकी तलाशी ली जाय । जमादार-जो आज्ञा। नानक की तलाशी ली गई और दो ही तीन गठरियों बाद वह बडी गठरी खोली गई जिसमें सराय का सिपाही बेचारा बँधा हुआ था। नानक ने उस बेहोश सिपाही की तरफ इशारा करके कहा "देखिए यही तारासिह है जो सौदागर बना हुआ सफर कर रहा था। तारासिह का शा०-(दीवान से) यह बात भी इसकी झूठ निकलेगी, आप पहिले इस बेहोश का चेहरा धुलवाइये। दीवान-हॉ मेरा भी यही इरादा है। (जमादार से ) इसका चेहरा तो धोकर साफ करो। नानक मैं खुद इसका चेहरा धोकर साफ किये देता हूँ और तब आपको मालूम हो जायगा कि मै झूठा हूँ या सच्चा । नानक ने उस सिपाही का चेहरा धोकर साफ किया मगर अफसोस नानक की मुराद पूरी न हुई और वह सिर से पैर तक झूठा साबित हो गया। अपने यहाँ के सिपाही को ऐसी अवस्था में देख कर जमादार और दीवान साहब को क्रोध चढ आया। जमादार ने किसी तरह का ख्याल न करके एक लात नानक के कमर पर ऐसी जमाई कि वह लुढक गया मगर बहुत जल्द सम्हल कर जमादार को मारने के लिए तैयार हुआ। नानक का हर्चा पहिले ही ले लिया गया था और अगर इस समय उसके पास कोई हर्वा मौजूद होता तो वेशक वह जमादार की जान ले लेता मगर वह कुछ भी न कर सका उलटा उसे जोश में आया हुआ देख सभी को क्रोध चढ़ आया। सराय में उतरे हुए मुसाफिर भी उसकी तरफ से चिढ़े हुए थे क्योंकि वे बेचारे वेकसूर रोके गये थे और उन पर शक भी किया गया था, अतएव एक दम से बहुत से आदमी नानक पर टूट पड़े और मन मानती पूजा करने के बाद उसे हर तरह से बेकार कर दिया इसके बाद दीवान साहब की आज्ञानुसार उसकी और उसके साथियों की मुश्के कस दी गई। दीवान साहब ने जमादार को आज्ञा दी कि यह शैतान (नानक) बेशक झूठा और चोर है इसने बहुत ही बुरा किया कि सरकारी नौकर को गिरफ्तार कर लिया। तुम कह चुके हो कि उस समय यही सिपाही सौदागर के दर्वाजे पर पहरा देवकीनन्दन खत्री समग्र