पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७८१

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lari भैरो-क्या यह भी कहा था कि कृष्णाजिन्न का रुप भी उन्हीं कृपानिधान ने धारण किया था ? आनन्द-नहीं सा तो साफ नहीं कहा था मगर उनकी बातों से हम लोग कुछ-कुछसमझ गये थे कि कृष्णाजिनवही बने थे खैर अव तुम खुलासा बताओ कि क्या हुआ? भैरोसिहने वह सब हाल दोनों कुमारों से कहा जो ऊपर के बयानों में लिखा जा चुका है और जिसमें का बहुत कुछ हाल राजा गोपालसिह की जुबानी दोनों कुमार सुन चुके थे। इसके बाद भैरोसिह ने कहा- 'जब राजा गोपालसिह को मालूम हो गया कि मायारानी बहुत स आदमियों को लेकर तिलिस्मी बाग के अन्दर जा छिपी है तब वे एक गुप्त राह से छिप कर सब औरतों को साथ लिए हुएउस मकान में पहुचे जिससे कमन्द के सहारे सभी को लटकाते हुए शायद आपने देखा होगा इन्द्रजीत-हा देखा था, तो क्या उस समय वे औरतें बेहोश थीं? भैरो-जी हा न मालूम किस ख्याल में उन्होंने सब औरतों को बेहोश कर दिया था मगर इसके पहिल यह कह दिया था कि तुम्हें तिलिस्म के अन्दर पहुचा दते है जहा दोनों कुमार है यद्यपि वहा पहुचना बहुत कठिन था मगर अब एक दीवार वाले तिलिस्म को दोनों कुमार तोड चुके है इसलिए वहा तक पहुचा देने में कोई कठिनता न रही । इन्द्र-लो क्या तुम भी उन औरतों के साथ ही उस बाग में उतारे गये थे? भैरी-पहिले ता उन्होंने इन्द्रदेव को बहुत सी बातेसमझाई-बुझाई जिन्हें मैं समझ न सका। इसके बाद इन्ददेव को तो गोपालसिह बनाया औरइन्द्रदेव के एक ऐयार को भैरोसिह बना कर दोनों को खास बाग के अन्दर भेजा। इस काम से छुट्टी पाकर सब औरतों को और मुझे साथ लिए उस मकान में आयें। सभों को तो उस कमरे में बैठा दिया जिसमें से कमन्दके सहारे सबको लटकायाथाऔर मुझे उनकी हिफाजत के लिए छोडनेकेबाद कमलिनी को साथ लिए हुए कहीं चले गय और घन्टे भर के बाद वापस आये। उस समय कमलिनी के हाथ में एक छोटी सी किताब थी जिसे उन्होंन कई दफे तिलिस्मी किताय के नाम से सम्बोधन किया था। इसके बाद उन्होंने सभी को बेहोश करके नीचे लटका दिया। इस काम स छुट्टी पाकर उन्होंने आपके नाम की दो चीठिया लिखीं एक तो उसी कमरे में रक्खी और दूसरी चीठी जिसका मैं अभी जिक्र कर चुका हू मुझे देकर कहा कि जब कुमारों से तुम्हारी मुलाकात हो तो यह चीटी उन्हें देना और सब काम कमलिनी की आज्ञानुसार करना यहा तक कि यदि कमलिनी तुम्हें सामना हो जाने पर भी कुमारों से मिलने के लिए मना करे तो तुम कदापि न मिलना इत्यादि कह कर मुझे नीचे उतर जाने के लिए कहा। (कुछ रुक कर) नहीं-नहीं मैं भूलता हूँ, मुझे उन्होंने पहिले ही नीचे उतार दिया था क्योंकि सभों की गठरी मै ही ने नीचे से थामी थी सभों को नीचे उतार देने के बाद जब मैं उनकी आज्ञानुसार पुन ऊपर गया तब उन्होंन ये सब बातें मुझे समझाई और आपके इन्द्रदेव भी वहा : ण्हुचे जो गोपालसिह की सूरत बने हुए थे। इन्द्रदेव ने राजा गोपालसिह से कुछ कहना चाहा,मगर उन्होंने राक दिया और मुझसे कहा कि अब तुम भी कमद के सहारे नीचे उतर जाओ और इन्द्रदेव के आने का इन्तजार करो। मैं उनकी आज्ञानुसार नीचे उतर आया। मैं अन्दाज से कहता है कि उन बेहोशों में आप या छाटे कुमार छिप थे और आप ही दोनों में से किसी ने मेरे बदन के साथ तिलिस्मी खजर लगाया था जिससे मैं बेहोश हो गया। इन्द-हा ठीक है ऐसा ही हुआ था। भैरो-फिर तो मै बेहोश हो ही गया मुझे कुछ भी नहीं मालूम कि इन्द्रदेव जो गोपालसिह की सूरत में थे कब नीचे आये या क्या हुआ ! आनन्द-ठीक है, वह भी थोडी देर बाद नीचे उतरे और तुम्हारी तरह से वह भी बेहोश किए गए।(इन्दजीतसिह) से अब मालूम हुआ कि इन्ददेव ही के कहे मुताबिक मैं आपको बुलाने के लिए ऊपर गया था । मैरो-हा जब हम लोगों को उन्होंने चैतन्य किया तो कहा था कि दोनों कुमार ऊपर गए है। आखिर इन्द्रदेव ने कमन्द खीचली और हम लोगों को लिए हुए दूसरी दीवार की तरफ गये। वहा कमलिनी ने जमीन खोद कर एक दर्वाजा पैदा किया। ताज्जुब नहीं कि उसी दर्वाजे की राह से आप लोग भी यहा तक आये हों और अगर ऐसा है तो उस कोठरी में भी अवश्य पहुचे होंगे, जहा की जमीन लोगों को बेहोश करके तिलिस्म के अन्दर पहुचा देती है । आनन्द-हमलोग भी उसी रास्ते से यहा तक आये हैं अच्छा तो क्या इन्द्रदेव भी तुम लोगों के साथ यहा आये है? भैरो-जी नहीं वह तो ऊपर ही रह गये बोले कि मुझे तिलिस्म के अन्दर जाने की आज्ञा नहीं है तुम लोग जाओ मैं इसी चाग में 'छिप कर रहूगा. जब दोनों कुमार यहा आ जायेंगे तब उनसे छिप कर पुन कमन्द के सहारे ऊपर जाऊगा और राजा गापालसिह के साथ मिल कर काम करुगा। आनन्द-(इन्द्रजीतसिह से) तव ताज्जुब नहीं कि इन्द्रदेव ने ही सर्दू को बेहोश किया हो ? इन्द-जझर ऐसा ही है ( भैरो से) अच्छा तब क्या हुआ । भैरो-नीच उतर कर जब हम लोग उस कोठरी में पहुंचे जहा की जमीन थोडी देर में लोगों को बेहोश कर देती है तव 1 चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७ ७७३