पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७८

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दि बालेसिह के हजार फौजी सिपाही भी उस जगह आ पहुंचे। अब लडाई का दग बिल्कुल ही बदल गया। हटते हटते रनबीरसिह अपनी फौज के सहित किले की तरफ हो गए और बालेसिह मुकाबले में अपने लश्कर की तरफ हो गया और लड़ाई कायदे के साथ होने लगी। पोंच सौ फौजी आदमियों के पहुँच जाने से वीरसेन को मौका मिल गया । वह रनबीरसिह की आज्ञानुसार महारानी कुसुमकुमारी की डोली को दुश्मनों के हाथ से बचा कर चोरदर्वाजे की राह से किले के अन्दर जा पहुंचा और किले के अन्दर से तोप की आवाज आने से रनबीरसिह समझ गए कि उनकी पतिव्रता स्त्री कुसुम कुशलतापूर्वक किले के अन्दर पहुँच गई, क्योंकि यह काम भी इन्हीं की आज्ञानुसार हुआ था। कुसुम कुशलपूर्वक किले के अन्दर पहुंच गई मगर उसकी जान लडाई के मैदान ही में रह गई जिसका फैसला रनवीरसिह की जिन्दगी पर मुनहसिर था। यदि रनवीर की जान बच गई तो कुसुम भी जीती बचेगी नहीं तो वह विधवा होकर इस दुनिया में जिन्दगी बिताने वाली औरत नहीं है। इसी तरह की कितनी ही बातें सोच कुसुम ने बीरसेन से पूछा---'वह दस हजार फौज जो तुम्हारे मातहत में थी इस समय कहाँ है और कब हम लोगों के काम आदेगी? बीरसेन-उसका इन्तजाम में कर चुका हूँ। आज किसी समय वह फौज लड़ाई के मैदान में अवश्य दिखाई देगी और जो कुछ आने से रह जायगी वह दो दिन के अन्दर पहुँच जायगी। कुसुम-अच्छा तो इस समय किले के अन्दर जो फौज है उसे लेकर तुम इसी समय उनकी मदद के लिये चले जाओ. यस इज्जत बचाने कायही समय है, क्योंकि बालेसिह की येशुमार फौज इस समय मुकाबले में है। यदि हो सके ता अपने मालिक को, प्रथा कर किले के अन्दर चले आओ फिर हमारी फौज आ जायगी तो देखा जायगा । बीरसेन जी हाँ, मैं अब एक सायत यहाँ न ठहरूगा जो कुछ फौज मौजूद है उसे लेकर अभी जाता है। दिन पहर भर से ज्यादे चढ आने पर भी अभी तक किले के सामने वाले मैदान में लडाई हो रही है। चालसिह की बहादुरी ने भीबहुतों को चौपट किया मगर रनबीरसिह की चुस्ती चालाकी और दिलावरी ने उसे चौधिया दिया था। इस समय वह सोच रहा था कि जसवन्तसिह के हाथ से जख्मी होकर रनवीरसिह बहुत दिनों तक बेकाम पडे रहे और बहुत सुस्त हो गये है, तिस पर उनकी हिम्मत ने आज पजे में आई हुई कुसुम को छुड़ा ही लिया यदि वे मले चगे हाते तो न मालूम क्या करते ! घटे भर तक फोजी बहादुरी में लडाई होती रही और इस बीच में बालेसिह की बहुत सी फौज वहाँ आकर इकटठी हो गई। जिस समय किले में की बची हुई फौज को साथ लेकर बीरसेन मैदान में आ पहुचा उस समय भार काट का सौदा बहुत ही बढ गया और बीरसेन ने भी जी खोल कर अपनी बहादुरी का तमाशा बालसिह को दिखा दिया। रनबीरसिह और बीरसेन अपने बहादुरों को लेकर बालेसिह की फौज में घुस गए। उस समय मालूम होता था कि इस लड़ाई का फैसला आज हो ही जायगा। इसी समय बीरसेन की मातहतवाली फौज भी आती हुई दिखाई पड़ी जिससे रनबीरसिह के पक्ष वालों का दिल और भी बढ़ गया और वे लोग जी खोल कर जान देने और लेने के लिए तैयार हो गये। लडाई का जौहर दिखाता हुआ हमारा बहादुर रनवीर ऐसी जगह जा पहुंचा जहाँ से बालेसिह थोडी ही दूर पर दिखाई दे रहा था। उस समय रनवीरमिह के जोश का कोई हद्द न रहा और वे बालेसिह के पास पहुचने का उद्योग करने लगे। बालेसिह ने भी उन्हें देखा मगर पास पहुच कर उनका मुकाबला करने की हिम्मत न हुई। इस समय रनबीरसिह और बालेसिह दोनों ही घोड़ों पर सवार थे। रनवीरसिहको अपनी तरफ बढते देख थालेसिह छिप गया और धोखा देकर घूमता हुआ रनवीरसिह के पीछे जा पहुचा और पीछे ही से तलवार का एक भरपूर हाथ रनबीरसिह पर चलाया। तलवार रनबीरसिह के योऐ मोढे पर बैठी जिससे उनको सख्त सदमा पहुचा । उन्ह यह नहीं मालूम था कि पीछे की तरफ बालेसिह आ पहुचा है तथापि चोट खाने के साथ ही रनवीर ने घूम कर एक हाथ दुश्मन पर ऐसा जमाया कि वह बेक हो गया। तलवार उसकी जघा पर बैठी और उसका दाहिना पैर कट कर जमीन पर गिर पड़ा और साथ ही इसके वह घोड़े की पीठ से लुढक कर जमीन पर आ रहा। बालेसिह के फौजी आदमी यह हाल देखकर हताश हो गये और अपने मालिक को उठाकर खेमे की तरफ भागे। बीरसेन रनवीरसिह से दूर न था और वह इस लड़ाई का तमाशा बखूबी दे रहा था। रनबीरसिह ने भी बहुत सी चोटें खाई थी मगर इस समय गलेसिह के हाथ से पहुची हुई चोट ने उन्हें एकदम मजबूर कर दिया। बालेसिह से अपना बदला तो ले लिया मगर उनकी आँखों के आगे भी अधरा छा गया ओर वे त्योरा कर जमीन पर गिर पड़े। इस समय वीरसेन ने बड़ी दिलावरी की । अपने आदमियों को साथ लिये हुए बिजली की तरह उनके पास जा पहुचा और सब लोगों के देखते देखते उन्हें उठा कर अपनी फौज में ले गया। इस समय बीरसेन का कपड़ा भी लहू से तरबतर हो रहा था और उसके बदन पर भी कितने ही जख्म लग चुक थे। देवकीनन्दन खत्री समग्र १०८६