पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७७

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६ -- , सवार बहुत जल्द मुझसे आकर मिलें। थालेसिह थोडी ही दूर गया था कि पहिले जासूस का एक और साथी भी आ पहुंचा और उसने खवर दी कि चोरदर्वाजे से किले के अन्दर जो लोग घुसे थे उनमें से कई आदमी किसी को जबर्दस्ती गिरफ्तार करके ले आये और पालमपूर की तरफ रवाना हो गए। यह खबर पाकर बालेसिह ने घोडे की बाग मोडी और उस जासूस को यह आज्ञा देकर पालमपूर की तरफ रवाना हुआ कि तू इसी जगह खडा रह जब मेरे सवार यहाँ आवे तो उन्हें पालमपूर की तरफ भेज दे पालमपूर की तरफ लगभग आध कोस के गया होगा कि सामने से एक औरत आती हुई दिखाई पड़ी, जब पास पहुँचा तो उसे रोक कर पूछा कि 'तू कौन है?' चॉद अच्छी तरह निकल आया था इसलिए उस औरत ने बालेसिह और जसवन्तसिह को बखूबी पहिचान लिया और कहा, "मैं कालिन्दी हूँ, इस समय तुम्हारा एक काम किये हुए चली आ रही हूँ। इसके जवाब में बालेसिह ने कहा- “जो कुछ तू कर चुकी है मुझे बखूबी मालूम है ! इसी समय वालेसिह के और सवार भी आ पहुंचे, उनमें से दस सवारों को उसने आज्ञा दी कि इस औरत (कालिन्दी)को ले जाओ और हिफाजत से रक्खो। इसके बाद बालेसिह बाकी सवारों को साथ लिये हुए तेजी के साथ पालमपूर की तरफ रवाना हुआ और बात की बात में वहाँ पहुँचकर उसने रनवीरसिह इत्यादि को चारो तरफ से घेर लिया। जैसा कि ऊपर के बयान में हम लिख आये है। उस समय पूरब तरफ सूर्य की किरणें दिखाई दे रही थी । रनबीरसिह यह देख कर कि बालेसिह की नीयत कुसुमकुमारी पर कब्जा करने की है जोश में आ गए और नगी तलवार लिये हुए बालेसिह पर टूट पडे । इस समय रनवीरसिह की बहादुरी देखने ही योग्य थी। बालेसिह ने बहुत जोर मारा परन्तु महारानी की डोली पर हाथन रख सका। बेचारी कुसुम यह हाल देख कर घबडा गई और अॅजुली उठा कर बोली 'है ईश्वर, इस समय मेरी लाज को रखनेवाला तेरे सिवा इस जगत मे और कोई भी नहीं है। थोड़ी ही देर में लड़ाई की यह नौबत पहुँची कि वालेसिह के सवार जिन्होंने चारो तरफ से घेर लिया था रनवीरसिह बीरसेन और उनके सिपाहियों की बहादुरी देख के दग हो गए और उन्हें लाचार होकर एक तरफ हो मुकाबला करना पडा। इसी बीच में रनवीरसिह ने अपनी पीठ किले की तरफ कर दी और बीरसेन से कहा कि 'कुसुम की डोली लेकर लडते हुए पीछे की तरफ हटना शुरू कर दो और वीरसेन ने ऐसा ही किया। लडाई अन्धाधुन्ध होने लगी और मौत का बाजार ऐसा गर्म हुआ कि बहादुरों को दीन-दुनिया की होश न रही और न किसी को यहीआशा रह गई कि आज इस लडाई से जीते जी बच कर घर जायेंगे। रनवीरसिह की तरह काटने वाली तलवार पर दुश्मनों की निगाह नहीं ठहरती थी। वे देखते कि उस बहादुर की तलवार बिजली की तरह चारो तरफ घूम रही है अभी एक के सिर पर पड़ी और तुरन्त दूसरे की गर्दन से निकलते ही तीसरे को सफा किया और चौथे की तरफ पलट पडी। इसी बीच में रनवीरसिह की निगाह नमकहराम जसवन्तसिह पर जा पडी जिसकी निगाह कुसुम की डोली पर घडी घडी पड़ रही थी। उसे देखते ही रनबीरसिह यह वाहते हुए उसकी तरफ झुक पडे "ओ कमबख्त । अब मेरे हाथ से बच कर तू कहाँ जा सकता है? जसवन्त ने चाहा कि अपने को रनवीर की निगाह स छिपा ले मगर न हो सका।याज की तरह झपट कर रनबीरसिह उसके पास जा पहुंचे और तलवार का एक वार किया। जसवन्त ने चालाकी से अपने घोडे को पीछे की तरफ हटा लिया इसलिये रनवीर की तलवार अवकी दफे केवल जसवन्त के घोडे का खून चाट सकी अर्थात घोडे की गर्दन पर जा पडी और सिर कट जाने के कारण घोडा जमीन पर गिर पड़ा और साथ ही इसके जसवन्त ने भी जमीन चूम ली। उस समय बहादुर रनबीरसिह क्षण मात्र तक इसलिये रुक गये कि वह नमकहराम सीधा होकर उनकी तलवार को फिर एक दफे देख ले। जसवन्त ने उठ कर रनवीर पर वार करना ही चाहा था कि उस बहादुर की तलवार ने कम्बख्त जसवन्त का काम तमाम कर दिया। उसका सिर बालेसिह के सामने जो केवल दस हाथ की दूरी पर खडा इस अद्भुत लडाई को देख रहा था जा गिरा और इस तरह लोगों के देखते ही देखते विश्वासघाती जसवन्त अपने किये की सजा पाकर नर्क भोगने के लिये यमराज को राजधानी की तरफ रवाना हो गया। लडाई को घण्टा भर से ज्यादे हो गया इस बीच बालेसिह के पचास सबार जान से मारे गए और दो सौ लडाके बेकाम होकर जमीन पर लेट गए उनके घोडे भी जख्मी होकर और अपनी पीठ खाली पाकर मैदान की तरफ भाग गए। चालेसिह के बदन पर भी कई जख्म लगे यहादुर रनबीरसिह के तीस आदमी मारे गए और वह स्वय भी जख्मी हुए मगर लड़ने की हिम्मत अभी बाकी थी। दिलेर वीरसेन भी यद्यपि जख्मी हुए था मगर दिलावरी के साथ अभी तक कुसुम को दुश्मनों के हाथ से बचाये रहा । यह लडाई ऐसी नहीं थी कि छिपी रहे और दिन विशेष चढ जाने के कारण इस लडाई की घूम और भी हो गई। किले में से पाँच सौ बहादुर सिपाही और आ पहुंचे जो कुसुमकुमारी के लिये जान देने को तैयार थे और इसी तरह , १०८५