पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७५९

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हम ऊपर बयान कर चुके हैं कि सेनापति कुबेरसिह के साथ थोडी सी फौज भी थी- अस्तु लीला को थोडी ही कोशिश से मालूम हो गया कि यहा सैकडों आदमियों का डेरा पड़ा हुआ है और वे लोग इस ढग से घने जगल में आड देख टिके हुए हैं जैसे डाकुओं का गिरोह या छिप कर धावा मारने वाले टिकते है और हर वक्त होशियार रहते हैं। लीला खूब जानती थी कि राजा बीरेन्द्रसिह और उनके साथी या सम्बन्धी अगर किसी काम के लिए कहीं जाते है या लडाई करते है तो छिप कर या आड पकड कर डेरा नहीं डालते हा अगर अकेले या ऐयार लोग हों तो शायद ऐसा करेंगे. मगर जब उनके साथ सौ पचास आदमी या कुछ फौज होगी तबकदापि ऐसा न करेंगे, इसलिए उसे गुमान हुआ कि ये लोग जरूरकोई गैरहै बल्कि ताज्जुब नहीं कि हमारा साथ देने वाले हों अस्तु बहुत सी बातों को सोच-विचार और अपनी ऐयारी पर भरोसा करके लीला,माधवी की फौज में घुस गई और वहा बहुत से सिपाहियों को होशियार तथा पहरा देते हुए देखा। पहिले लिखा जा चुका है कि लीला भेष बदले हुए थी और यह भी दर्शाया गया कि माधवी और कुमेरसिह अपनी असली सूरत में सफर करते थे। लीला को कई सिपाहियों ने देखा और एक ने टोका कि कौन है? लीला-एक मुसाफिर परदेसी औरत । सिपाही यहा क्यों चली आ रही है? लीला-अपनी भलाई की आशा से। सिपाही-क्या चाहती है। लीला-आपके सरदार से मिलना । सिपाही-अपना परिचय दे तो सरदार के पास भेजवा लीला-परिचय देने में कोई हर्ज तो नहीं है मगर डरता हूँ कि आप लोग भी कहीं उन्हीं में से न हों जिन्होंने मुझे लूट लिया है, यद्यपि अब मै बिल्कुल खाली हो रही हू मगर इतने में और भी कई सियाही वहा जुट आये और सभों ने लीला को घेर कर सवाल करना शुरु किया और लीला ने भी गौर करके जान लिया कि ये लोग राजा बीरेन्द्रसिह के दल वाले नहीं है क्योंकि उनके फौजी सिपाही अक्सर जर्द पोशाक काम में लाते है इसी तरह से जमानिया वाले भी नहीं मालूम हुए क्योंकि उनकी बातचीत और चाल-दाल को लीला खूब पहिचानती थी अस्तु कुछ और बातचीत होने पर लीला को विश्वास हो गया कि ये लोग उनमें से नहीं है जिनका मुझे डर है। उन सिपाहियों को भी एक अकेली औरत से डरने की कोई जरूरत न थी इसलिए उन्होंने अपने मालिक का नाम जाहिर कर दिया और लीला को लिये हुए उस जगह जा पहुंचे जहा माधदी और भीमसेन का विस्तर लगा हुआ था और ये दोनों इस समय भी पैठे बातचीत कर रहे थे। लालटेन जलाया गया और लीला की सूरत अच्छी तरह देखी गयी, लीला ने भी उसी रोशनी में माधवी को पहिचान लिया और खुश होकर बोली "अहा आप तो गया रानी माधवीदेवी है !! भाधवी और तू कौन है? लीला-मैं प्रसिद्ध मायारानी की ऐयारा हू और उन्हीं के साथ यहा तक आई भी हू। यह दुनिया का कायदा है कि एक से दूसरे को मदद पहुँचती है अस्तु जिस तरह आपको मायारानी से मदद पहुच सकती है उसी तरह आप मायारानी की भी मदद कर सकती है। वाह वाह यह समागम तो बहुत ही अच्छा हुआ ! अगर आजकल मायारानी मुसीबत के दिन काट रही है तो क्या हुआ? मगर फिरभी वह तिलिस्म की रानी रह चुकी है और जो कुछ वह करसकती है किसी दूसरे से नहीं हो सकता आपलोगों का मिल कर एक हो जाना बहुत ही मुनासिव होगा और तब आप लोग जो चाहेंगी कर सकेंगी। माधवी-( खुश होकर ) मायारानी कहा है ? उन्हें तो राजा बीरेन्द्रसिह कैद करके चुनार ले गये थे। लीला-जी हा मगर मै अभी कह चुकी हू कि मायारानी आखिर तिलिस्म की रानी है इसलिए जो कुछ वह कर सकती है किसी दूसरे के किए नहीं हो सकता। राजा वीरेन्द्रसिह ने उन्हें कैद किया तो क्या हुआ उनका छूटना कोई मुश्किल न था माधवी-वेशक बेशक, अच्छा बताओ वह कहा है ? लीला-यहा से थोड़ी दूर पर खडी है किसी सरदार को भेजिये उनका इस्तकबाल करके यहा ले आवे, दो तीन सौ कदम से ज्यादे न चलना पडेगा। माधवी-मै खुद उन्हें लेने के लिए चलूगी ! लीला-इसस बढ़ कर और क्या हो सकता है? अगर आप उनकी इज्जत करेंगी तो वह भी आपके लिए जान तक चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७ ७५१