पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७५८

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ce पर सवार होकर तू दीवान साहब के पास जायगी ! लीला-जाऊँगी और जरूर जाऊंगी, नहीं तो इस अगूठी और चीठी के मिलने का फायदा ही क्या हुआ बस तुम्हें किसी अच्छे ठिकाने पर रख देने भर की देर है। माया-मगर मै एक बात और कहा चाहती हूँ। लीला-वह क्या? माया-मैं इस समय बिल्कुल कगाल हो रही हू और ऐसे मौके पर रूपये की बड़ी जरुरत है। इसलिए मै चाहती हूं कि दीवान साहब के पास तुझे न भेजकर खुद ही जाऊँ और किसी तरह तिलिस्मी बाग में घुसकर कुछ जवाहिरात और सोना जहाँ तक ला सकू ले आऊ क्योंकि मुझे वहा के खजाने का हाल मालूम है और यह काम तेरे किये नहीं हो सकता। जब मुझे रूपये की मदद मिल जायेगी सब कुछ सिपाहियों का भी वन्दोवस्त कर सकूगी और लीला-यह सब कुछ ठीक है मगर में तुम्हें दीवान साहब के पास कदापि न जानंदूंगी। कौन ठिकाना कहीं तुम गिरफ्ता रहो जाओ तो फिर मेरे किए कुछ भी न हो सकगा। बाकी रही रूपै पैसे वाली बात सो इसके लिए तरद करना वृथा है क्या यह नहीं हो सकता कि जब मै दीवान साहब के पास जाऊं और सवारी इत्यादि तथा खाने पीने की चीजें लू तो एक रथरथोडी सी अशर्फिया और कुछ जवाहिरात भी रख देने के लिए कह क्या वह इसअगूठी के प्रताप से मेरी बात न मानगा? और अगर अशर्फिया और जवाहिरात का बन्दोबस्त कर देगा तो क्या मैं उन्हें रास्ते में से गुम नहीं कर सकती? इस भी जाने दो, अगर तुम पता-ठिकाना ठीक-ठीक बताओ तो क्या मैं तिलिस्मी बाग में जाकर जवाहिरात और अशफिया को नहीं निकाल ला सकती? माया-निकाल ला सकती है और दीवान साहब से भी जो कुछ मागेगी,सम्भव है कि बिना कुछ विचारे दे दें, मगर इसमें मुझे दो चातों की कठिनाई मालूम पडती है ।। लीला-वह क्या? माया-एक तो दीवान साहब के पास अन्दाज से ज्यादे रुपये अशर्फियों की तहदील नही रहती और जवाहिरत तो बिल्कुल ही उसके पास नहीं रहता शायद आज कल गोपालसिह के हुक्म से रहता हो मगर मुझे उम्मीद नहीं है. अस्तु जो चीज तू उससे मागेगी वह अगर उसके पास न हुई तो उसे तुझ पर शक करने की जगह मिलेगी और ताज्जुब नहीं कि काम में विघ्न पड़ जाय। लीला-अगर ऐसा है तो जरूर खुटके की बात है अच्छा दूसरी बात क्या है ? माया-दूसरे यह कि तिलिस्मी बाग के खजाने में घुसकर वहा से कुछ निकाल लाना नये आदमी का काम नहीं है। खैर मैं तुझे रास्ता बता दूंगी फिर जो कुछ करते बने कर लीजियो । लीला-खैर जैसा होगा देखा जायगा मगर मै यह राय कमी नहीं दे सकती कि तुम दीवान साहब के सामने या खास बाग में जाओ ज्यादे नहीं तो थोड़ा-बहुत मै ले ही आऊगी। माया-अच्छा यह यता कि मुझे कहा छोड़ जायेगी और तेरे जाने के बाद मैं क्या करूगी? लीला-इतनी जल्दी में कोई अच्छी जगह तो मिलती नहीं किसी पहाड़ की कन्दरा में दो दिन गुजारा करो और चुपचाप बैठी रहो इसी बीच में मै अपना काम करके लौट आऊँगी। मुझे जमानिया जाने में अगर देर हो जायगी तो काम चौपट हो जायगा। ताज्जुब नहीं कि देर हो जाने के कारण गोपालसिह किसी दूसरे को भेज दें और अगूठी का भेद खुल जाय। इत्तिफाक अजब चीज है। उसने यहाँ भी एक वेढ्य सामान खड़ाकर दिया। इत्तिफाक से लीला और मायारानी भी उसी जगल में पहुची जिसमें माधवी और भीमसेन का मिलाप हुआ था और वे लोग अभी तक वहा टिके हुए थे। पांचवां बयान आधी रात का समय था जब लीला और मायारानी उस जगल में पहुची जिसमें माधवी और भीमसेन टिके हुए थे। जब ये दोनों उसके पास पहुची और लीला को वहा टिके हुए बहुत से आदनियों की आहट मिली तो वह मायारानी को एक ठिकाने खडा करके पता लगाने के लिए उनकी तरफ गई। देवकीनन्दन खत्री समग्र ७५०