पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७५०

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दि चन्द्रकान्ता सन्तति सत्रहवां भाग पहिला बयान हमारे पाठक 'लीला को भूले न होंगे। तिलिस्मी दरोगा वाले बगले की मादी के पहिले तक इसका नाम आया है जिसके बाद फिर इसका जिक्र नहीं आया । लीला को जमामिया की खबरदारी पर मुकर्रर करके मायारानी काशी वाले नागर के मकान में चली गई थी और वहाँदारोगा के आ जाने पर उसके साथ इन्द्रदेव के यहाँ चली गई। जब इन्द्रदेव के यहाँ से भी वह माग गई और दारोगा तभा शरअलीखों की मदद से रोहतासगढ़ के अन्दर घुसने का प्रबन्ध किया गया जैसा कि सन्तति के यारहवें भाग के (रहवें बयान में लिखा गया हैउसी समयलीला भी मायारानी के साथ थी मगर मोहतासगढ में जाने के पहिले मायारानी ने उसे अपनी हिफाजत का जरिया बना कर पहाड़ के नीचे ही छोड़ दिया था।मायारानी मे अपना तिलिस्मी तमचा जिससे बहोशी के बारूद की गोली चलाई जाती थी लीला को देकर कह दिया था कि मैं शेरअलीखों की मदद से और उन्हीं के भरोसे पर रोहतासगढ़ के अन्दर जाती डू मगर ऐयारों के हाथ मेरा गिरफ्तार हो जाना कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि वीरेन्द्रसिह के ऐयार बडे ही चालाक है। यद्यपि उनसे बचे रहने की पूरी-पूरी तर्कीब की गई है मगर फिर भी में मेफिक्र नहीं रह सकती अस्तु यह तिलिस्मी तमचा तू अपने पास रख और इस पहाड के नीचे ही रह कर हम लोगों के बारे में टोह लती रह. अगर हम लोग अपना काम करके राजी खुशी के साथ लौट आये तर तो कोई बात नहीं, ईश्वर न करे कहीं में गिरफ्तार हो गई तो तू मुझे छुड़ाने का बन्दोबस्त कीजियो और इस तमचे से काम निकालियो । इसमें चलाने वाली गालिया और वह ताम्रपत्र भी मैं तुझे दिये जाती टू जिसमें गोली बनाने की तीब लिखी हुई है। जब दारोगा और शेरअलीखॉ सहित मायारानी गिरफ्तार हुई और वह खबर शेरअलीखाँ के लश्कर में पहुची जो पहा के नीचे था तो लीला ने भी सब हाल सुना और वह उसी समय वहा से टल कर कहीं छिप रही फिर भी जब तक राजा वीरेन्द्रसिह वहाँ से चुनारगढ की तरफ रवाना हुए वह भी उस इलाके के बाहर न गई और इसी से शिवदत्त और कल्याणसिह ( जो बहुत से आदमियों को लेकर रोहतासगढ के तहखाने में घुसे थे ) वाला मामला मी उसे बखूबी मालूम हो गया था। भाधवी मनोरमा और शिवदत्त ने जब ऐयारों की मदद से कल्याणसिह को छुडाया था तो भी भीमसेन भी उसी के साथ ही छुडाया गया मगर भीमसेन कुछ बीमार था इसलिए शिवदत्त के साथ मिलजुल कर रोहतासगढ के तहखाने में न जा सका था शिवदत्त ने अपने ऐयारों की हिफाजत में उसे शिवदत्तगढ़ भेज दिया था। सव बखेडों से छुट्टी पाकर जय राजा बीरेन्द्रसिह कैदियों को लिए हुए चुनारगढ़ की तरफ रवाना हुए तो मायारानी को पौद से छुड़ाने की फिक्र में लीला भी भेष बदले हुए उन्हीं के लश्करे के साथ रवाना हुई। लश्कर में नकली किशोरी कामिनी और कमला के मारे जाने वाला मामला उसके सामने ही हुआ और सब तक उसे अपनी कार्रवाई करने का कोई मौका न मिला मगर जब नकली किशोरी कामिनी और कमला की दाहक्रिया करके राजा साहबआगे बढे और दुश्मनों की तरफ से कुछ बेफिक्र हुए तब लीला को भी अपनी कार्रवाई का मौका मिला और वह उस खेमे के चारों तरफ ज्यादे फेरे लगाने लगी जिसमे मायारानी कैद थी और चालीस आदमी नगी तलवार लिये बारी-बारी से उसके चारों तरफ पहरा दिया रते पर एक दिन इत्तिफाक से आधी-पानी का जोर हो गया और इसी से उस कम्बख्त को अपने काम का अच्छा मौका "देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति नौवा भाग, आठवा चयान । देवकीनन्दन खत्री समग्र ७४२