पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७४२

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सुन्दर और दिलचस्प था। ऊची-ऊची चार पहाडियों के बीच में धीस-बाईस विगहे के लगभग जमीन थी जिसमे तरह तरह के कुदरती गुलयूटे लगे हुए थे जो केवल जमीन ही की तरावट से सरसब्ज बने रहते थे। पूरब की तरफ वाली पहाड़ी के ऊपर स साफ और मीठे जल का झरना गिरता था जो उस जमीन म चक्कर देता हुआ पश्चिम की पहाड़ी के नीचे नाकर लोप हो जाता था और इस सवव से वहा की जमीन हमेशा तर बनी रहती थी। बीच एक गाटा लादो मजिल का मकान बना हुआ था और उत्तर तरफ वाली पहाडी पर सो सवा सो हाथ ऊच जाकर एक घाटा सा बगला और भी था। शायद बनाने वाले ने इसे जाडे के मौसिम के लिए आवश्यक समझा हो क्योंकि नीचे पाले मकान में तरी ज्यादा रहती थी। किशोरी,कामिनी और कमला इसी बगले में रहती थीं और उनकी हिफाजत के लिए जो दो चार सिपाही और लौडिया थीं उन सभों का डेरा नीचे वाले मकान में था, खाने-पोने का सामान तथा बन्दाबस्त भी उसी मे था ! उन तीनों की हिफाजत के लिए जो सिपाही और लांडिया वहा थी उन सभों की सूरत भी ऐयारी ढगग बदली हुई थी और यह बात किशोरी कामिनी नथा कमला से कह दी गई थी जिसमें इन तीनों को किसी नरा' का खुटमा न रहे। ये तीनों जानती थी कि ये सिपाही और लोडिया हमारी नहीं है फिर भी समग की अवस्था पर धान इन सभों पर भरोसा करना पड़ता था। इस मकान में आने के कारण इन तीनों की तबीयत बहुत ही उदात यो रोहतासगट स रवाना होते समय इन तीनों को निश्चय हो गया था कि हम लोग बहुत जल्द चुनारनढ़ पायान याले है ता किसी दुश्मन का डर रहेगा और न किसी तरह की तकलीफ ही रहेगी इसस भी बदतर बात यह होगी कि उस युनारगढ़ हम लोगों की मुराद पूरी होगी। मगर निराशा ने रास्ते ही में पल्ला पकड लिया और दुश्मन के डर से द इमलिचित्र स्थान में आकर म्हना पड़ा जहा सिवाय गैर के अपना काई भी दिखाई नहीं पड़ता था। जिस दिन ये तीनों बहा आई थी उस दिन कृष्णाजिन्न भी यहा मौजूद था। ये तीनों कृष्णाजिन्न को बखूबी जानती भी और यह जानती थी कि कृष्णाजिन्न हमारा सच्चा पक्षपाती तथा सहायक हे तिस पर जसिह ने भी उन तीनों को अच्छी तरह समझाकर कह दिया था कि यद्यपि तुम लागों को यह नहीं मालूम कि वास्तव में कृष्णाजिन्न को है और कहा रहता है तथापि तुमलोगो को उस पर उतना ही भरोसा रखा बाहिये जितना हम घर सातो हा और उसमे आडा भी उतनी ही इज्जत के साथ माननी चाहिए जिपनो इज्जत के साथ हमारो आज्ञा मानने को इच्छा रखती हो। किशोरी, कामिनी और कम्ला ने यह बात पडी प्रसन्नता से स्वीकार की भो। जिस समय ये तीनों इस मकान में आई थी उसक दो ही घण्ट बाद सब सामान दीक करक कृष्णाजिन्न और तेजसिह चल गये थे आर जाते समय इन तीनो को कृष्णाजिन्न कहता गा तुम लेग अकेले रहने के कारण घबराना नहीं मैं बहुत जल्द लक्ष्मीदेवी, कमलिन और लाडिली जो तुम तागो पास मेजबाऊ और जब तुम लोग बडी प्रसन्नता के साथ यहा रह सकोगी। मैं भी चाहा तक जल्द हा सकेगा तुम लोगों को लेन के लिए आऊँगा। तीसरे ही दिन भैरासिह भी उस विचित्र स्थान में आ पहुचे जिन्हें देख किशारी, कागेसी और कमला रहुत खुश हुई। हमारे प्रेमी पाठक जानते ही है कि कमला आर भैरोसिह का दिल गुलमिल कर एक हा रहा था अस्तु इस समय यह स्थान उन्ही दाना के लिए नुधारक हुआ और उन्हीं को यहा आने की विशेष प्रसन्नता हुई मगर उन दोनों को अपने से ज्यादा अपने मालिका का ख्याल था उनकी प्रसन्नता के बिन्न अपनी प्रसन्नता वे नहीं चाहते हैं और उनके मालिक भी इस बात को अझ तरह जानते थे। उस स्थान म पहुचकर पैरासिह ने वहा के रास्ते की बड़ी तारीप की और कहा कि इन्द्रदेव के मकान म जाने का रास्ता जेसा गुप्त और टेढा है वैमा ही गहा का भी है जानजान आदमी यहा कदापि आ हो सकता। इसके सद भैरोसिह ने राजा बीरेन्द्रसिह के लश्कर का हाल बयान किया। भैरोमिह को जुवाती लश्कर का हाल और मनोरमा के हाथ से भष यदली हुई तीनों लोडिया के मारे जाने की खबर सुनकर किशोरी आर कामिनी के रोंगटे खड़े हो गए। किशारी ने कहा : सन्देह कृष्णाजिन्न दपता है। उनकी अदभुत शक्ति उनकी बुद्धि और उनके विचार की जहा तक तारीफ की जाय उचित है ! उन्होंने जो कुछ सोचा ठीक ही निकला। भैरो-इसमें काई शक नहीं। तुम लोगा को यहा बुलाकर उन्होंने बज ही काम किया। मनोरमा तो गिरफ्तार हो ही गई और भाग जगने लायक भी न रही और उसके मददगार भी अगर लश्कर के साय होंगतो अब गिरफ्तार हुए बिना नहीं रह सकते इसके अतिरिक्त कमला-हम लोगो को मरा जानकर कोई पीछा भी न करगा और जब दोना कमार तिलिस्म गोडकर चुनारगढ़ में देवकीनन्दन खत्री समग्र