पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७२८

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६ गोलाम्बर घूमता हुआ जमीन के अन्दर धसने लगा और सर में चक्कर आने के कारण दोनों भाई वेहोश हो गए। जव वे होश में आये तो आँखें खोलकर चारो तरफ दखने लगे मगर अन्धकार के सिवाय और कुछ भी दिखाई न दिया उस समय इन्दजीतसिह ने अपने तिलिस्मी खजर के जरिये से रोशनी की और इधर-उधर देखने लगे। अपने छोटे भाई को पास ही में बैठे पाया और उस पुतली को भी टुकड़े-टुकडे भई उसी जगह दखा जिसके टुकडे कुछ गालाम्बर के ऊपर और कुछ जमीन पर छितराये हुए थे। इस समय भी दोनों भाइयों न अपने को उसी गोलाम्बर पर पाया और इसस समझें कि यह गोलाम्बर ही धसता हुआ इस नीचे वाली जमीन के साथ आ लगा है मगर जब छत की तरफ निगाह की तो किसी तरह का निशान या छेद न देखकर छत को बराबर और बिल्कुल साफ पाया। अब जहा पर दोनों भाई थे वह कोठरी बनिस्वत ऊपर वो (या पहिले) कमरे के बहुत छोटी थी। चारो तरफ तरह-तरह के कल पुर्जे दिखाई दे रहे थे जिनमें से निकल कर फैले हुए लोह के तार और लाहे की जजीरें जाल की तरह विल्कुल कोठरी को घेरे हुए थीं। बहुत सी जजीरें ऐसी थी जो छत में बहुत सी दीवार में और बहुत सी जमीन के अन्दर घुसी हुई थीं। इन्द्रजीतसिंह के सामने की तरफ एक छोटा सा दर्वाजप या जिसके अन्दर दोनों कुमारों को जाना पडता अस्तु दोनों कुमार गोलावर के नीचे उतरे और तारों तथा जजीरों से बचते हुए उस दजेि के अन्दर गये। यह रास्ता एक सुरग की तरह था जिसकी छत जमीन और दोनों तरफ की दीवारें मजबूत पत्थर की बनी हुई थीं। दोनों कुमार थोडी दूर तक उसमें वराबर चलते गये और इसके बाद एक एसी जगह पहुच जहाँ ऊपर की तरफ निगाह करने से आसमान दिखाई देता था। गौर करन से दोनों कुमारों को मालूम हुआ कि यह स्थान वास्तव में कूएँ की तरह है। इसकी जमीन ( किसी कारण से) बहुत ही नरम और गुदगुदी थी। बीच में एक पतला लोह का खभा था और खमे के नीचे जजीर के सहारे एक खटाली बंधी हुई थी जिस पर दो तीन आदमी बैठ सकते थे। खटोली से अढाई तीन हाथ ऊँचे (खभे में ) एक चर्सी लगी हुई थी और चर्स के साथ एक ताम्रपत्र धा हुआ था। इन्द्रजीतसिह न तान पत्र को पढा बारीकन्यारीक हरफों में यह लिखा था यहाँ से बाहर निकल जान वाले को खटोली के ऊपर बैठ कर यह चीं सीधी घूमानी चाहिए। ची सीधी तरफ घूमन स यह खमा खटाली को लिए हुए ऊपर जायेगा और उल्टी तरफ घूमाने से वह नीचे उतरेगा। पीछे हटने वाले को अब वह रास्ता खुला नहीं मिलेगा जिधर से वह आया होगा। पत्र पढकर इन्द्रजीतसिह ने आनन्दसिह से कहा यहाँ स बाहर निकल चलने के लिए यह बहुत अच्छी तर्कीव है अब हम दोनों का भी इसी तरह बाहर हो जाना चाहिए। लो तुम भी इसे पढ लो। आनन्द-(पत्र पढ़ कर ) आइये इस खटोली में चैठ जाइये । दानों कुमार उस खटाली में बैठ गये और इन्द्रजीतसिह ची घूमाने लगा जैसे जैसे ची घुमाते थे वैसे-वैसे वह खभा खटोली का लिए हुए ऊपर की तरफ उठता जाता था। जब खभा कूएँ के बाहर निकल आया तब अपने चारों तरफ की जमीन आर इमा का देखकर दोनों कुमार चौके और इन्दजीतसिह की तरफ देखकर आनन्दसिंह ने कहा आनन्द-यह तो तिलिस्मी बाग का वही चौथा दर्जा है जिसमें हम लोग कई दिन तक रह चुके है -- इन्द्रजीत-वशक वही है मगर यह खमा हम लोगों को ( हाथ का इशारा करके ) उस तिलिस्मी इमारत तक पहुचावेगा। पाठक हम सन्तति के नौवें भाग के पहिल वयान में इस बाग के चौथे भाग का हाल जो कुछ लिख चुके हैं शायद आपका याद होगा यदि भूल गये हो तो उसे पुन पढ जाइए। उस बयान में यह भी लिखा जा चुका है कि इस बाग के पूरब तरफ वाले मकान के चारों तरफ पीतल की दीवार थी इसलिये उस मकान का केवल ऊपर वाला हिस्सा दिखाई देता था और कुछ मालूम नहीं होता था कि उसके अन्दर क्या है, हा छत के ऊपर लोहे का एक पतला महराबदार खभा था जिसका दूसरा सिरा उसक पास वाले कूए के अन्दर गया था। उस मकान के चारो तरफ पीतल की जो दीवार थी उसमे एक बन्द दर्वाजा भी दिखाई देता था और उसके दोनों तरफ पीतल के दो आदमी हाथ में नगी तलवार लिए खड़े स इत्यादि। यह उसी मकान के साथ वाला कूआ था जिसमें से इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह निकले थे। धीरे-धीरे ऊचे कर दानों भाई उस मकान की छत पर जा पहुचे जिसके चारो तरफ पीतल की दीवार थी। खटोली को मकान की छत पर पहुचा कर वह खम्भा अड गया और दोनों कुमारों को उस पर से उतर जाना पड़ा। पहिले जब दोनों कुमार इस बाग देवकीनन्दन खत्री समग्र ७२०