पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७२३

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दि इतना हाल कह इन्दिरा क्षणभर के लिए रुक गई और कुअर आनन्दसिह ने चौक-कर पूछा 'क्या नाम बताया, चम्पा ! - इन्दिरा-जी हाँ। आनन्द-(गोर से इन्दिरा की सूरत देखकर ) ओफ अब मैंने तुझे पहिचाना । इन्दिरा-जरूर पहिचाना होगा, क्योंकि एक दफे आप मुझे उस खोह में देख चुके है जहाँ चम्पा ने छ से लटकते हुए आदमी की देह काटी थी आपने उसनें बाधा डाली थी और योगिनी का वेष धरे हाथ में अगीठी लिए ने आकर आपको और देवीसिंह को बेहोश कर दिया था। इन्द्रजीत-(ताज्जुब से अनन्दसिह की तरफ देख-कर ) तुमने वह हाल मुझसे कहा था, जब तुम मेरी खोज में किले थे और मुसलमानिन औरत की कैद से तुम्हें देवीसिह ने छुड़ाया था, उस समय का हाल आनन्द-जी हाँ यह वही लड़की है। - इन्द्र-मगर मैने तो सुना था कि उसका नाम सरला है इन्दिरा जी हाँ उस समय चम्पा ही ने मेरा नाम सरला रख दिया था। इन्दजीत-वाह वाह वर्षों बाद इस बात का पता लगा। गोपाल-जरा उस किस्से को मै भी सुना चाहता हू। आनन्दसिंह ने उस समय का बिल्कुल हाल राजा गोपालसिह से कह सुनाया और इसके बाद इन्दिरा को फिर अपना हाल कहने क लिए कहा। चौथा बयान भूतनाथ और असली बलभद्रसिह तिलिस्मी खंडहर की असली इमारत वाले नम्बर दो के कमरे में उतारे गए। जीतसिह की आज्ञानुसार पन्नालाल ने उनकी बड़ी खातिर की और सब तरह के आराम का बन्दोबस्त उनकी इच्छानुसार कर दिया। पहर रात बीतने पर जब वे लाग हर तरह से निश्चिन्त हो गये तो जीतसिह को छोड़कर बाकी सब ऐयार जा उस खडहर में मौजूद थे, भूतनाथ से गपशप करने के लिए उसके पास आ बैठे और इधर-उधर की यातें होने लगी! पन्नालाल ने किशोरी कामिनी और कमला की मौत का हाल भूतनाथ से बयान किया जिसे सुन कर बलभद्रसिह ने हद्द से ज्यादे अफसोस किया और भूतनाथ भी उदासी के साथ बडी देर तक सोच सागर में गोते खाता रहा। जय लगभग आधी रात के जा चुकी तो सब एयार विदा होकर अपने-अपने ठिकाने चले गये और भूतनाथ तथा बलभद्रसिह भी अपनी-अपनी चारपाई पर जा बैठे। वलभद्रसिंह तो बहुत जल्द निदादेवी के आधीन हो गया मगर भूतनाथ की आँखों में नींद का नाम निशान न था। कमर में एक शमादान जल रहा था और भूतनाथ अन्दर वाले कमरे की ओर निगाह किए हुए बैठा कुछ साच रहा था। जिस कमरे में ये दोनों आराम कर रहे थे, उसमें भीतर सहन की तरफ तीन खिडकियाँ थीं। उन्हीं में से एक खिडकी की तरफ मुह किए हुए भूतनाथ बैठा हुआ था। उसकी निगाह रमन में से होती हुई ठीक उस दालान में पहुँच रही थी जिसमें वह तिलिस्मी चबूतरा था जिस पर पत्थर का आदमी सोया हुआ था। उस दालान में एक कन्दील जल रही थी जिसकी रोशनी में वह चबूतरा तथा पत्थर वाला आदमी साफ दिखाई दे रहा था। भूतनाथ को उस दालान और चबूतरे की तरफ देखते हुए घण्टे भर से ज्यादा बीत गया। यकायक उसने देखा कि उस चबूतरे का बगलवाला पत्थर जो भूतनाथ की तरफ पडता था पूरा का पूरा किवाड़ के पल्ले की तरह खुल कर जमीन के साथ लग गया और उसके अन्दर किसी तरह की रोशनी मालूम पडने लगी जो धीरे धीरे तेज होती जाती थी। भूतनाथ को यह मालूम था कि वह चबूतरा किसी तिलिस्म से सम्बन्ध रखता है और उस तिलिस्म को राजा चीरन्दसिह के दोनों लडके तोडेंगे, अत्तु इस समय उस चबूतरे की एसी अवस्था देख उसका वडा ही ताज्जुब हुआ और वह ऑखें मलमल कर उस तरफ देखने लगा। थोड़ी दर वाद चबूतरे के अन्दर से एक आदमी निकलता हुआ दिखाई पडा मगर यह निश्चय नहीं हो सका कि वह मर्द है या औरत क्योकि वह एक स्याह लबादा सर से पैर तक ओढे हुए था और उसके बदन का कोई भी हिस्सा दिखाई नहीं देता था। उसके बाहर निकलने के साथ ही चबूतरे के अन्दर वाली रोशनी बन्द हो गई मगर वह पत्थर जो हट कर जमीन के साथ लग गया था ज्यों का त्यों खुला ही रहा। वह आदमी बाहर निकल कर इधर उधर देखने लगा और थोडी देर तक कुछ सोचने के बाद बाहर रमने में आ गया। धीरे-धीरे चल- कर उसने एक दफे चारो तरफ का चक्कर लगाया। चक्कर लगाते समय वह कई दफे भूतनाथ की निगाहों की ओट चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १६ ७१५