पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७२२

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ori दारोगा ने ज्यों ही झॉक कर कूए के अन्दर देखा उस औरत ने पीछे से धक्का दिया और वह कम्बख्त धाम से कूए के अन्दर जा रहा। यह कैफियत उसके दोनों साथी दूर से देख रहे थे और में भी दख रही थी। जव दारा के दानों साथियों ने देखा कि उस औरत ने जान-बूझ कर हमारे मालिक को ए में ढकल दिया है तो दोनों आदमी तलवार पेच कर उस औरत की तरफ दोडे। जब पास पहुध तो वह औरत जार से हसी और एक तरफ का भाग चली। उन दानों ने उसका पीछा किया मगर वह ओरत दोडने में इतनी तेज थी कि वे दोनों उसे पान सफत था उसी धागौर्च के अन्दर वह औरत चक्कर देने लगी और उन दानों के हाथ न आई। वह समय उन दाना के लिए बड़ा ही कठिन था. वे दोनों इस चात को जरुर सोचते होंगे कि अगर अपने मालिक को बचाने की नीयत से कूए पर जाते है तो वह औरत भाग जायणी या ताज्जुब नहीं कि उन्हे भी उसी कूए में ढकेल दे। आखिर जब उस औरत ने उन दानों को खूब दौडाया ला उन दोनों न आपस में कुछ बात की और एक आदमी तो उस कए की तरफ चला गया तथा दूसरे न उस औरत का पीछा किया। जब उस औरत ने देखा कि अब दो में से एक ही रह गया तो वह खडी हो गई और जमीन पर से ईट का टुकड़ा उठा कर उस आदमी की तरफ जोर से फेंका। उस ओरत का निशाना बहुत सच्चा था जिससे वह आदमी बच न सका और ईंट का टुकडा इस जोर से उसके सर में लगा कि सर फट गया और वह दोनों हाथों से सर का पकडकर जमीन पर बैठ गया उस औरत ने पुन दूसरी ईट मारी तीसरी मारी और चौथी ईट खाकर ता वह जमीन पर लट गया। उसी समय उसने खञ्जर निकाल लिया जो उसकी कमर में छिपा हुआ था और दोडती हुई उसके पास जाकर यज्जर स उसका सर काट डाला में यह तमाशा दूर से देख रही थी। जब वह एक आदमी को समाप्त कर चुकी तो उस दूसरे के पास आई जो नए पर खडा अपने मालिक को निकालने की फिक्र कर रहा था। एक ईट का टुकड़ा उसकी तरफ जार से फेंका जो गरदन में लगा। वह आदमी हाथ में नगी तलवार लिये उस औरत पर झपटा मगर उसे पान सका। उस औरत ने फिर उस आदमी को दौडाना शुरू किया और बीच-बीच में ईंट और पत्थरों से उसकी भी खबर लेती जाती थी। वह आदमी भी इंट और पत्थर के टुकर्ड उस ओरत पर फेंकता था भगर औरत इतनी तेज और फुर्तीली थी कि उसके सब वार बराबर बचाती चली गई मगर उसका वार एक भी खाली न जाता था। आखिर उस आदमी ने भी इतनी मार खाई कि खडा होना मुश्किल हो गया और वह हताश होकर जमीन पर बैठ गया। इस जमीन पर बैठने की देर थी कि उस औरत ने धडा- धड पत्थर मारना शुरू किया, यहा तक कि वह अधमूआ होकर जमीन पर लट गया। उस औरत ने उसके पास पहुचकर उसका सर भी धड से अलग कर दिया, इसके बाद दौडती हुई मेरे पास आई और बोली बेटी, तूने देखा कि मैंने तेरे दुश्मनों की कैसी खबर ली? मैं तो उस कम्बख्त (दारोगा) को भी पत्थर मार मारकर मार डालती मगर डरती है कि विलम्ब हो जाने से उसके और भी सी-साथी न आ पहुचे अगर ऐसा हुआ तो बड़ी मुश्किल होगी अस्तु उसे जान दे और मेरे साथ चल मैं तुझे हिफाजत से तेरे घर जहा कहेगी पहुचा दूगी। यद्यपि चायुक की मार खाने से मेरी बुरी हालत हो गई थी मगर अपने दुश्मनों की ऐसी दशा देख मै खुश हो गई और उस औरत को साक्षात् माता समझकर उसके पैरों पर गिर पड़ी। उसने मुझे बड़े प्यार से उठाकर गले से लगा लिया और मेरा हाथ पकडे हुए बाग के पिछले तरफ ले चली। याग के पीछे की तरफ बाहर निकल जान के लिये एक खिडकी थी और उसके पास सरपत का एक साधारण जगल था । वह औरत मुझे लिये हुए उसी सरपत के जगल में घुस गई। उस जगल में उस औरत का घोडा बंधा हुआ था। उसने घाडा खोला चारजामा इत्यादि ठीक करके उस पर मुझे बैठाया और पीछे आप भी सवार हो गई घाडा तेजी के साथ रवाना हुआ और तय में समझी कि मेरी जान बच गई। यह औरत पहर भर तक बरावर घाडा फेंकें चली गई और जब एक घने जगल में पहुची तो घोडे की चाल धीमी कर देर तक धीर-धीरे चलकर एक कुटी के पास पहुची जिसके दर्वाजे पर दो तीन आदमी बैठे आपुस में कुछ बातें कर रहे थे। उस औरत को देखते ही वे लोग उठ खडे हुए और अदब के साथ सलाम करके घोड़े के पास चले आए। औरत ने घोडे के नीचे उतर मुझ भी उतार दिया । उन आदमियों में से एक ने घोडे की लगाम थाम ली और उसे टहलाने ले गया दूसर आदमी न कुछ इशारा पाकर कुटी से एक कम्बल ला जमीन पर बिछा दिया और एक आदमी हाथ में घडा लोटा और रस्सी लेकर जल भरने के लिए चला गया। औरत ने मुझे कम्बल पर बैठने का इशारा किया और आप भी कमर हलकी करने के बाद उसी कम्बल पर बैठ गई तब उसन मुझसे कहा कि अब तू अपना सच्चा हाल बता कि तू कौन है ओर इस मुसीबत में क्योंकर फसी तथा वह बुड्ढा शैतान कौन था जब तके मेरा आदमी पानी लाता है और खाने-पीने का बन्दाबस्त करता है। उस औरत ने दया करके मरी जान बचाई थी और जहाँ मै चाहती थी वहाँ पहुँचा देने के लिए तैयार थी और मेरे दिल ने भी उसे माता के समान मान लिया था इसलिए मैने उससे कोई बात नहीं छिपाई और अपना सच्चा हाल शुरू से आखीर तक कह सुनाया। उस मेरी अवस्था पर बहुत तरस आई और वह बहुत देर तक तसल्ली और दिलासा देती रही। जब मैने उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम चम्पा बताया। देवकीनन्दन खत्री समग्र ७१४ 1