पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७१८

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और तुम्हारे दोस्तों के साथ कभी किसी तरह की बुराई न करूंगा मगर फिर भी आप चालबाजी करने से याज न आये। दारोगा-यह सब कुछ ठीक है मगर मैं जब एक दर्फ कह चुका कि सर्दू और इन्दिरा का हाल मुझे कुछ भी मालूम नहीं है तब तुम्हें अपनी बात पर ज्यादे खींच न करना चाहिय हा अगर तुम इस बात को साबित कर सको ता जो कुछ कहो मै जुर्माना देने के लिए तैयार हू, यों अगर बेफायदे का तकरार बढाकर लडने का इरादा हो तो बात ही दूसरी है। इसके अतिरिक्त अब तुम्हें जो कुछ कहना हो इसको खूब सोच-समझ कर कहा कि तुम किसके मकान में और कितन आदमियों कोसाथ लकर आये हौ। इतना कहकर इन्दिरा रुक गई और एक लम्बी सास लेकर उसने राजा गोपालसिह और दानों कुमारों से कहा- इन्दिरा-गदाधरसिह और दारोगा में इस ढग की बातें हो रही थीं और हम दोनों खिडकी में से सुन रहे थ। मुझे यह जानकर बडी खुशी हुई कि गदाधरसिह हम दानों मा-बेटियों को छुडाने की फिक्र में लगा हुआ है। मैन अन्ना के कान में मुह लगा के कहा कि देख अन्ना दारोगा हम लोगों के बारमें कितना झूठ बोल रहा है नीचे उतर जाने के लिए रास्ता मौजूद ही है चलो हम दानों आदमी नीचे पहुच कर गदाधरसिह के सामन खड हा जाय । अन्ना ने जवाब दिया कि मैं नी यही साच रही हू, मगर इस बात का खयाल है कि अकेला गदाधरसिंह हम लोगों को किस तरह छुडा सका कहीं ऐसा न हा कि हम लोगों को अपने सामने देखकर दारोगा गदाधरसिंह को भी गिरफ्तार करल फिर हमाराछुडाने वाला कोई भी न रहेगा ! अन्ना नीचे उतरने से हिचकती थी मगर मैने उसकी बात न मानी, आखिर लाचार होकर मेरा साथ पकड़े हुए वह नीचे उतरी और गदाधरसिंह के पास खडी होकर बोली · दरोगा झूठा है इस तडकी को इसी ने कैद कर रक्खा है और इसकी माँ को भी न मालूम कहाँ छुपाए हुए है। मेरी सूरत देखते ही दारोगा का चहरा पीला पड़ गया और गदाधरसिह की आखें मारे क्रोध के लाल हो गई। गदाधरसिह ने दरोगा से कहा क्यों बे हरामजादे के बच्चे क्या अब भी तू अपनी कसमों पर भरोसा करने के लिए मुझसे कहेगा 11 गदाधरसिह की बातों का जवाब दारोगा ने कुछ भी न दिया और इधर-उधर झाकने लगा। इत्तिफाक से वह कलमदान भी उसी जगह पड़ा हुआ था जिसके ऊपर मेरी तस्वीर थी और जो गदाधरसिंह ने रिश्वत लेकर दारोगा को दे दिया था। दारोगा असल में यह देख रहा था कि गदाधरसिह की निगाह उस कलमदान पर ता नहीं पड़ी मगर वह कलमदान गदाधरसिह की नजरों से दूर न था अस्तु उसने दारोगा की अवस्था देखकर फुर्ती के साथ वह कलमदान उठा लिया और दूसरे हाथ से तलवार खींच कर सामने खडा हा गया। उस समय दारोगा को विश्वास हो गया कि अब उसकी जान किसी तरह नहीं बच सकती। यद्यपि रघुवरसिह उसके पास बैठा हुआ था मगर वह इस बात को खूब जानता था कि हमारे ऐसे दस आदमी भी गदाधरसिह को काबू में नहीं कर सकते इसलिए उसने मुकाबला करने की हिम्मत न की और अपनी जगह से उठकर भागने लगा परन्तु जा.न सका गदाधरसिह ने उसे एक लात ऐसी जमाई कि वह धम्म से जमीन पर गिर पड़ा और बोला मुझे क्या मारते ही मैंने क्या बिगाडा है ? मै तो खुद यहा से चले जाते को तैयार हू गदाधरसिह ने कलमदान कमरबन्द में खोसकर कहा मैं तेरे भागने को खूब समझता हू तू अपनी जान बचाने की नीयत से नहीं भागता बल्कि बाहर पहरेवाले सिपाहियों को होशियार करने के लिए भागता है। खबरदार अपनी जगह से हिलेगा तो अभी भुट्टे की तरह सर उडा दूगा । ( दारोगा से ) बस अब तुम भी अगर अपनी जान बचाया चाहते हो तो चुपचाप बैठ रहो। गदाधरसिह की डपट से दोनों हरामखोर जहा के तहा रह गये, अपनी जगह से हिलने या मुकाबला करने की हिम्मत न पड़ी। हम दोनों को साथ लिये हुए गदाधरसिह उस मकान के बाहर निकल आया। दरवाजे पर कई पहरेदार सिपाही मौजूद थे मगर किसी ने रोकटोक न की और हम लोग तजी के साथ कदम बढ़ाते हुए उस गली के बाहर निकल गय । उस समय मालूम हुआ कि हम लोग जमानिया के बाहर नहीं है। गलीके बाहर निकल कर जब हम लोग सड़क पर पहुचे तो दो घोडों का एक रथ और दो सवार दिखाई पड़े। गदाधरसिह ने मुझको और अन्ना को रथ पर सवार कराया और आप ही उसी रथ पर बैठ गया। 'हू करने के साथ ही रथ तेजी के साथ रवाना हुआ और पीछे-पीछे दोनों सवार भी घोडा फेकते हुए जाने लगे। उस समय मेरे दिल में दो बातें पैदा हुई एक ता यह कि गदाधरसिह ने दारोगा को जीता क्यों छोड़ दिया दूसरे,यह कि हम लोगों को राजा गोपालसिहक पास न लेजाकर कहीं और क्यों लिये जाता है मगर मुझे इस विषय में कुछ पूछने की आवश्यकता न पड़ी क्योंकि शहर को बाहर निकल जाने पर गदाधरसिह ने स्वय मुझसे कहा "वटी इन्दिरा नि सन्देह कम्बख्त दारोगा ने तुझे बडा ही कष्ट देवकीनन्दन खत्री समग्र