पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७१४

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अन्ना-बस जहाँ तक हा टालमटोल करती जाइया आजकल के वादे पर दो तीन दिन टाल जाना चाहिये, मुझे आशा है कि इस बीच में हमलाग छू जायेंगे। सुबह की सुफेदी खिडकियां में दिखाई देने लग आर दर्वाजा खोलकर दारोगा कभर क अन्दर आता हुआ दिखाई दिया वह सीच आकर बैठ गया और बाला इन्दिरा तू समझती होगी कि दारोगा साहब ने मर साथ दगाबाजी की आर मुझे गिरफ्तार कर लिया मगर मै धर्म का कमम खाकर करता हू कि वास्तव में यह बात नहीं है, बल्कि सच तो यह है कि स्वय राजा गोपालसिह तेरे दुश्मन हार है। उन्हों। मुझ हुरमा दिया था कि इन्दिरा को गिरफ्तार करके मार डाला और उन्हीं की आज्ञानुसार मैं उसक कमरे में बैठा हुआ तुझे गिरफ्तार करने को तब सोच रहा था कि यकायक तू आ गई और मैंने तुझे गिरफ्तार कर लिय' । में लाचार है कि राजा साहब का हुक्म चल नहीं सकता मगर साथ ही इस जव तय मारने का इशा करता हूँ तो मुझ दया आ जाती ई ओर तरी जान बवान की तीव सचिन लगता है। तुझे इस बात का ताज्जुब भगा कि गोपालसिहरे दुश्मन क्यों हा गये मगर में तेरा यह शक नी मिटाय दता हू। असल बात यह है कि राजा माहब को लक्ष्मीदवी को साथ शादी करना मजूर न था और जिस खूबसूरत औरत के साथ वे शादी विया चाहत थे वह विधवा हो चुकी थी और लोगों की जानकारी में से उसके साथ शादी नहीं कर सक्त थे इसलिय लक्ष्मीदवी को बदले में बट दूसरी औरत उलटफर कर दी गई। उनकी भाशानुसार लक्ष्मीदवा तो मार डाली गई मगर उन लोगों को भी चुपचाप मार झालन की s' राजा साहब ने दे दी जिन्हें य भेद माल्म हो चुका था या जिनकी बदौलत इस भेद के खल जगने का डर था दररे सबय . भी लगनीदेवा का नाद अवश्य खुल जाता इसलिए तू भी उनकी गानुसार कैद कर ली गई। इन्दिरा-जी हा और यह बात उसने ऐसे इगस अफसास के साथ कही कि मुझ और नाग का भी थोड़ी देर क लिय उस्की वगता पर पूरा विश्वास हा गया बल्कि वह उसके बाद भी बहुत देर तक आपकी शिकार करता रहा। गोपाल और मुझे वह बहुत दिना तक नरी बदमाशी का विश्वास दिलाता रहा या ! अन्य मुझे मालूम हुआ कि तू मेरा सामना करने ने क्यों डरती थी। च्छा तब क्या हुना इन्दिरा-दारोगा की बात सुनकर अन्ना न सस कहा कि जन आपका इन्दिरा पर दया आ रही है तो काइ ऐसी तीव निकालिये जिसमे इस मडकी और इसकी मा की जान च जाय। दारोगा- मैं खुद इसा फिक्र में लगा हुआ है। इसकी मा का बदमाशों ? गिरफ्तार कर लिया था मगर ईश्वर की कृपा स वह बच गई मन रसे उन शैतानों कब स बना लिया। अन्ना-मगर वह भी लक्ष्मीदेवी को पहिचाननी है और उसकी बदौलत लानीदेवी का भेद खुल जाना सम्भव है। दारोगा-हा ठीक है मगर इसक लिये भी मैन एक बन्दोवस्त कर लिया है। अन्ना-वह क्या ? दारागा-(एक चाठी दिखाकर दख म स मन यह वीठो लिखवा ली है पहिले इस पढ ले। मैंन और अन्ना ने यह चीठी पड़ी। उसम यह लिया हुआ था--- नेरी प्यारी उमीदवी मुझे इस बात का बड़ा अफसास है कि तरे व्याह के समय में न आ सकी । इसला सहुत बड़ा कारण हे जो मुलाकान हाने पर तुमसे कहूगी मगर अपनी बटी झन्दरा की जुगनी यह सुनकर मुझे बडी खुशी हुई कि वह व्याह क समय तेरे पास थी बल्किा व्याह होने के एक दिन शद तक तेर साथ खलती रही।' जब में चीठी पढ़ चुकी का दारागान कहा कि वस अतू भी एक चौठी लक्ष्मीदयो के गम से लिख दे और उसमें वह लिख कि मुझ इस बात का रज हे कि तरी शादी हान के बाद एक दिन से ज्यादे मै तर पास न रह सदो भार ने तेरी उस छवि को नहीं भूल सस्ती जो व्याह के दूसरे दिन देररी थी । मै ये दा चीठिसा राजा गापालसिह का दूंगा और तुम दोनो को छोड दन के लिए उनसे जिद्द करको उन्हें समझा दूंगा कि अब सर्दू और इन्दिरा को जुबानी लक्ष्मीदेवी का भेद काई नहीं सुन सकत' अगर ये दाना कुछ कहेंगी तो इन चीठियों के मुकाविले में स्वय झूठी बनेंगी। मैने दारागा का बाता का यह जवाब दिया कि 'बात ता आपने बहुत ठीक कही अच्छा मैं आपके कह मुताबिक चीठी कल लिख दूगी। दारोगा-यह काम देर करन का नहीं है इसमें जहा तक जल्दी करोगी तहा तक तुम्हें छुटटी जल्दी मिलेगी। मैं-ठीक है मगर इस समय मेरे सर में बहुत दर्द है नुझसे एक अक्षर भी न लिखा जायगा । दारोगा-अच्छा क्या हर्ज है कल सही। इतना कहकर दारोगा कमरे के बाहर चला गया और फिर मुझसे और अन्ना में बातचीत होने लगी। मैंने अन्ना से कहा क्यों अन्ना तू क्या समझती है ? मुझे ता दारोगा की बात सच जान पड़ती है ? देवकीनन्दन खत्री समग्र ७०६