पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६९९

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तेज-यात तो ठीक है और वह इमारत भी देखने योग्य है मै तुम्हें वहाँ ले जा सकता हू और महाराज से आज्ञा भी ले आया हू मगर तुम अपने साथ किसी लौडी को वहाँ न ले जा सकोगी। किशोरी-कामिनी बहिन और कमला का चलना तो आवश्यक है और ये दोनों न जायेंगी तो मुझे उसके देखने का आनन्द ही क्या मिलेगा? तेज-इन दानों के लिए मैं मना नहीं करता मैं रथ जोतने के लिए हुक्म दे आया हूँ अभी आता होगा तुम तीना उस रथ पर सवार हो जाओ घोडे की रास मैं लूगा और तुम लोगों को वहाँ ले चलूगा सिवाय हम चार आदमियों के और कोई भी न जायेगा। किशोरी-जव स्वय आप हम लोगों के साथ है तो हमें और किसी की जरूरत क्या है? का-अदि इस समय हम लाग रथ पर सवार होकर रवाना होंगे तो घण्टे भर के अन्दर ही वहीं जा पहुचेगे छ सात घन्टे में उम इमारत को अच्छी तरह से देख लेंगे इसके बाद यहॉ लौटने की कोई जरूरत नहीं है अगले पडाव की तरफ चले जायेगे जब तक हमारा लश्कर यहाँ से कूच करके अगल पड़ाव पर पहुचेगा तब तक हम लोग भी वहाँ पहुच जायेंगे। किशोरी-जैसी मर्जी। थोड़ी ही देर बाद इत्तिला मिली कि दो घोड़ों का रथ हाजिर है। तेजसिह उठ खडे हुए पर्दे का इन्तजाम किया गया किशोरी कामिनी और कमला उस पर सवार कराई गई तेजसिह ने घोड़ों की रास सम्हाली और रथ तेजी के साथ वहाँ से रवाना हुआ। छठवां बयान रात बीत गई पहर भर दिन चढने बाद वीरेन्द्रसिह का लश्कर अगले पडाव पर जा पहुचा और उसके घण्टे भर बाद तेजसिह भी रथ लिये हुए आ पहुचे। रथ जनाने डेरे के आगे लगाया गया, पर्दा करके जनानी सवारी ( किशोरी, कामिनी और कमला ) उतारी गईं और रथ नौकरों के हवाले करके तेजसिह राजा साहब के पास चले गये। आज के पड़ाव पर हमारे बहुत दिनों के बिछुड़े हुए ऐयार लोग अर्थात पन्नालाल,रामनारायण,चुनीलाल और पण्डित बद्रीनाथ भी आ मिले क्योंकि इन लोगों को राजा साहब के चुनारगद जाने की इत्तिला पहिले ही से दे दी गई थी। ये लोग उसी समय उस खेमे में चले गये जहॉ कि राजा वीरेन्द्रसिह और तेजसिह एकान्त में बैठे बातें कर रहे थे। इन चारों ऐयारों को आशा थी कि राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ ही साथ चुनारगढ जायेंगे मगर ऐसा न हुआ इसी समय कई काम उन लोगों के सुपुर्द हुए और राजा साहब की आज्ञानुसार वे चारों ऐयार वहाँ से रवाना होकर पूरब की तरफ चले गये। राजा बीरेन्द्रसिह और तेजसिह को इस बात की आहट ला गई थी कि मनोरमा भेष बदले हुए हमारे लश्कर के साथ चल रही है और धीरे धीरे उसके मददगार लोग भी रूप बदले हुए लश्कर में चले आ रहे है मगर तेजसिह को उसके गिरफ्तार करने का मौका नहीं मिलता था। उन्हें इस बात का पूरा-पूरा विश्वास था कि मनोरमा नि सन्देह किसी लौडी की सूरत में होगी मगर बहुत सी लौडियों में से मनोरमा को जो बडी धूर्त और ऐयार थी छाट कर निकाल लेना कठिन काम था: मनोरमा के न यकडे जाने का एक सबब और भी था, तेजसिह इस बात को तो सुन ही चुके थे कि मनोरमा ने बेवकूफ नानक से तिलिस्मी खजर ले लिया है अस्तु तेजसिह का यही ख्याल था कि मनोरमा तिलिस्मी खजर अपने पास अवश्य रखती होगी। यद्यपि राजा साहब की बहुत सी लौडिया खजर रखती थीं मगर तिलिस्मी खजर रखने वालों को पहिचान लेना तेजसिंह मामूली काम समझते थे और उनकी निगाह इस लिए बास्वार तमाम लौडियों की उगलियों पर पड़ती थी कि तिलिस्मी खजर के जोड की अगूठी किसी न किसी की उँगली में जरूर दिखाई देगी उसे ही मनोरमा समझ के तुरन्त गिरफ्तार कर लेंगे। यह सब कुछ था मगर मनोरमा भी कुछ कम चागली न थी और उसकी होशियारी और चालाकी ने तेजसिह को पूरा धोखा दिया। इस बात को मनोरमा भी पहले ही से विचार चुकी थी कि मेरे हाथ में तिलिस्नी खजर के जोड की अंगूठी अगर तेजसिह देखेंगे तो मेरा भेद खुल जायगा, अतएव उसने बडी मुस्तैदी और हिम्मत का काम किया अर्थात् इस लश्कर में आ मिलने के पहले ही उसने इस बात को आजमाया कि तिलिस्मी खजर के जोड की अंगूठी केवल उपली ही में पहिरने से काम देती है या बदन के किसी भी हिस्से के साथ लगे रहने से उसका फायदा पहुचता है। परीक्षा करने पर जब उसे मालूम हुआ कि वह तिलिस्मी अंगूठी केवल उँगली ही में पहिरने के लिए नहीं है बल्कि बदन के किसी भी हिस्से के साथ लगे रहने ही से अपना काम कर सकती है तब उसने अपनी जघा चीर के तिलिस्मी खजर के जोड की अंगूठी उसमें भर दी और ऊपर से सी-कर तथा मरहम-पट्टी लगाकर आराम कर लिया। इसी सवब से आज तिलिस्मी खजर चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५ ६९१