पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६९६

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मूल होगई। मैं लाल हो गई मगर कर क्या सकती थी क्योंकि बाल सच थी आखिर चुपचाप उठ कर अपन घर पली आई। मै यह मगडी कभी न पहिगी। हनुमान-अच्छा यह हरी साडी पहिरो। श्यामा-हाँ इसे पहिरुगी और यह चोली। हनुमान-लाओ चाली मै पहिरा दूं। श्यामा--(हनुमान के गाल मे चपत लगा कर ) चल दूर हो । हनुमान-(चोक कर ) अर हाँ देखा ता सही कैसी श्यामा-(ताज्जुब से) सा क्या? हनुमान-तुम्हे तो मर्दाना कपडा पहिर के चलना चाहिए। श्यामा-हाँ है तो ऐसा ही मगर वहाँ क्या करुंगी? हनुमान-यह साडी मे बगल में दवा कर लिए चलता है. वहाँ पहिर लना। श्यामा-अच्छा यही सही। थाडी दर बाद मर्दान कपड पहिर और सर पर मुडासा यार हुए श्यामा सडक पर दिखाई दने लगी : उसका प्यारा नोकर हनुमान बगल में कपड़े की गठरी दबाए हुए जा रहा था। इस जगह से वह मकान बहुत दूर न था जिसमे तारासिह न डरा डाला था इसलिए थाडी ही देर में व दोनो उस मकान के पिछले दरवाजे पर जा पहुचे। दरवाजा खुला हुआ था और तारासिंह का नौकर पहिल ही से दरवाजे पर बैठा हुआ था। उसन दोनों का मकान के अन्दर करके दवाजा बन्द कर लिया। तागरिरह एक कोठरी क अदर फश पर बेटा हुआ तरह तरह की रातो पर विचार कर रहा था जब उसके नौकर न पहुंच कर श्यामा के आने की इतिला की और कहा कि यह मर्दानी पाशाक पहिर कर आ गई है और अब पूरय वाले कमरे म कपड़े बदल रही है। भाग-आग तारासिह का नाकर (चेला ) तो इतना कह कर चला गया मगर तारासिह पडे फर में पड़ गया। वह सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिये ? उसकी चाल-चलन का पता तो पूरा-पूरा लग गया मगर अब उसे यहॉ स क्यों कर टालना चाहिए। उसक साथ अधर्म करना तो उचित न हागा हम ऐसा कदापि नही कर सकते मगर अफसोस ! वाह रे निर्लज्ज नावक क्या तुझे इन बातों की खबर न होगी? जरूर होगी तू इन सब बातों को जरूर जानता होगा मगर आमदनी का रास्ता खुला देख बेहयाई की नकाब डाले बैठा है। परन्तु भूतनाथ को इन बातों की खबर नहीं वह हयादार आदमी है अपनी थाडी सी भूल द लिए कैसे-कैसे उद्योग कर रहा है और तरी यह दशा ! लानत है तेरी औकात पर और तुफ है तेरी शोकीनी पर तारासिह इन बातों को सोच ही रहा था कि श्यामारानी मटकती हुई उसके पास जा पहुची। तारासिंह ने बड़ी खातिर से उस अपने पास बैठाया और उसके रुप-गुण की प्रशसा करने लगा। श्यागारानी को बेट अभी कुछ भी देर व हुइ थी कि कोठरी के बाहर से चिल्लाने की आवाज आई। यह आवाज नानक के प्यारे नगैकर हनुमान की थी और माय ही उसके किसी औरत के पालने की आवाज आ रही थी। I - पांचवां बयान किशारी,कामिनी, कमला इत्यादि त्या ओर बहुन र अदमियों को लिए हुए राजा वीरेन्दसिह चुनार की तरफ रवाना हुए। किशोरी और कामिनी की खिदमत के लिए साथ मे एक सौ पन्द्रह लांडियाँ थी जिामें से बीस लौडियाँ तो उनमे से थी जो राजा दिग्विजयसिह की रानी क साथ राहतासगढ म रहा करतोयी और रोहतासगट क फतह हो जान के बाद राजा वीरेन्द्रसिह को तार्थदारी स्वीकार कर चुकी थीं वाकी लोडिया नई रक्सो गई थीं। इसके अतिरिक्त रोहतासगढ से बहुत सी चीजें भी राजा वीरेन्द्रसिह न साथ ले ली थीं जिन्हें उन्होंने वंशकीमत या नायाब समझा था। रवाना होने के समय राजा साहब ने उन एयारों को भी अपने चुनारगढ जाने की इत्तिला दिलवा दी थी जो राजगृह तथा गयाजी का इन्तजाम करने के लिए मुकर्रर किये गये थे। जिस समय राजा बीरन्द्रसिह चुनारगढ़ की तरफ रवाना हुए गत घण्टे भर सकुछ ज्यादे बाकी थी और पाच हजार फौज के अतिरिक्त चार हजार दूसरे काम काज के आदमी भी माथ में थे। इसी भीड में मिली,जुली साधारण लौंडी का देवकीनन्दन खत्री समग्न