पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६९०

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- आग तलवारें फेंक दी थी मगर कृष्णाजिन्न और तेजसिह ने उन लोगों को रोकना या मारना उचित न जाना और चुपचाप खड रह कर भागने वालों का तमाशा देखते रहे। थोडी देर में उनके सामने की जमीन दुश्मनों से खाली हो गई और सामने स आती हुई मनोरमा दिखाई पड़ी। मनोरमा को देखते ही कमलिनी तिलिस्मी खजर उठाकर उसकी तरफ झपटी और उस पर वार किया ही चाहती थी कि मनोरमा ने कुछ पीछे हट कर कहा "ह है श्यामा जरा देख समझ के। मनोरमा की बात और श्यामा *का शब्द सुनकर कमलिनी रूक गई और बडे गौर से मनोरमा का मुह देखने के बाद बाली तू कौन है? मनोरमा-बीरसिह । कमलिनी निशान? मनोरमा-चन्द्रकला। कमलिनी-तुम अकेले ही या और भी कोई है ? वीरु-शिक्दत्त के सिपाही धन्नूसिह की सूरत बने हुए मेरे गुरु सर्पूसिंह भी आये है। उन्होंने दुश्मनों को बाहर निकलने का रास्ता बताया है। इस तहखाने में जितने दाजे कल्याणसिह ने बन्द किये थे वे सब भी गुरुजी ने खोल दिये क्योकि उनके सामन ही कल्याणसिंह ने सब दर्वाजे बन्द किये थे और उन्होंन उसकी तीव देख ली थी। कृष्णा-शावाश ! ( कमलिनी स ) अच्छा इन लोगों का किस्सा दूसरे समय सुनना इस समय तुम किशोरी को लेकर राजा वीरेन्द्रसिह के पास चली जाओ जिसे हमने शिवदत्त के पजे से छुडाया है और जो (हाथ का इशारा करके) उस तरफ जमीन पर बदहवास पडी है बस अब इस काम में देर मत करो। मैं यहा स पुकार कर कह देता जिस राह स तुम आई हो उस कोटरी का दर्वाजा इन्द्रदव खोल देंगे तेजसिह और बीरुसिह को मैं थोडी दर के लिए अपने साथ लिए जाता है ये लाग किले में तुम लोगों के पास आ जायेंगे। कमलिनी-क्या आप राजा बीरेन्द्रसिह के पास न चलेंग? कृष्णा-नहीं। कमलिनी-क्यों? कृष्णा-हमारी खुशी। राजा वीरेन्द्रसिह से कह दीजियो कि सभों को लिए हुए इसी समय तहखाने के बाहर चले जाया इतना कह कर कृष्णाजिन्न उस जगह कमलिनी को ले गया जहा बचारी किशोरी बदहवास पड़ी हुई थी। दुश्मन लोग सामन स बिल्कुल भाग गये थे सिवाय जख्मियों और मुर्दा के वहा पर कोई भी मुकाबला करने वाला न था और दुश्मनों के हाथों से गिरी हुई मशालें इधर-उधर पड़ी हुई कुछ अल रही थी और कुछ ठडी हा गई थीं। बेचारी किशोरी विल्कुल बदहवास पड़ी हुई थी मगर तेजसिह की तीब से वह बहुत जल्द होश में आ गई और कमलिनी उसे अपने साथ लकर राजा वीरेन्द्रसिंह के पास चली गई। कृष्णाजिन्न ने उसी सुराख में से इन्द्रदेव का दर्वाजा खोलने के लिए आवाज दे दी और तेजसिह तथा वीरूसिह को लिए दूसरी तरफ का रास्ता लिया। किशोरी को साथ लिए हुए थोडी ही देर में कमलिनी राजा बीरेन्द्रसिह के पास जा पहुची और जो कुछ उसने देखा सुना था सव कहा। वहा से भी बचेयचाये दुश्मन लोग भाग गये थे और मुकाबला करने वाला कोई मौजूद नहीं था। इन्द्रदेव-(राजा वीरेन्द्रसिह से) कृष्णाजिन्न ने जो कुछ कहला भेजा है उसे मै पसन्द करता है, समों को लेकर इस समय तहखाने क बाहर ही हो जाना चाहिए। वीरेन्द्र-मेरी भी यही राय है ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि आज की ग्रहदशा सहज में कट गई। नि सन्देह आपक दोनों एयारों ने दुश्मनों के साथ यहा आकर कोई अनूठा काम किया होगा और कृष्णाजिन्न ने मानों पूरी सहायता ही की और किशोरी की जान बचाई। इन्ददेव-नि सन्दह ईश्वर ने बड़ी कृपा की मगर इस बात का अफसोस है कि कृष्णाजिन्न यहा न आकर ऊपर ही ऊपर चले गये और मैं उन्हें दख न सका तथा इस तहखाने की सैर भी इस समय आपको न करा सका। वीरेन्द्र-काई चिन्ता नहीं फिर देखा जायेगा इस समय तो यहा से चल ही देना चाहिये।

  • श्यामा कमलिनी का असली नाम था मगर लोगों में वह कमलिनी के नाम से ही प्रसिद्ध हो गई और हमारा बनावटी

नाम मा एक प्रकार से ठीक निकला। देवकीनन्दन खत्री समग्र ६५२