पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६८५

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ma मगर वहा राजा साहब के बदले दारोगा को बैठे हुए पाया। मेरी सूरत देखते ही एक दफ दारोगा के चहर का रंग उड गया मगर तुरन्त ही उसने अपने को सम्हाल कर मुझसे पूछा क्यों इन्दिरा क्या हाल है ? तू इतने दिनों तक कहा थी ? मुझे उस चाण्डाल की तरफ से कुछ भी शक न था इसलिये में उसी से पूछ बैठी कि लक्ष्मीदेवी क बदले में में किसी दूसरी औरत का देखती हू, इसका क्या सबब है यह सुनते ही दारोगा घबडाटा तूने वास्तवम किसी दूसरे को देखा होगा लक्ष्मीदेवी तो उस बाग वाले कमरे में है। चल मैं तुझे उसके पास पहुचा आऊ | मैने खुश होकर कहा कि चलो पहुंचा दा दारागा झट उठ खडा हुआ और मुझे साथ लेकर भीतर ही भीतर बाग वाले कमर की तरफ बढा। वह रास्ता बिल्कुल एकान्त था। थाडी ही दूर जाकर दारोगा ने एक कपडा मेरे मुह पर डाल दिया। ओह उसमें किसी प्रकार की महक आ रही थी जिसके सबब दो तीन दफे से ज्यादे मैं सास न ले सकी और बहोश हो गई। फिर मुझे कुछ भी खबर न रही कि दुनिया के परदे पर क्या हुआ और क्या हो रहा है । गोपाल-इन्दिरा की कथा के सम्बन्ध मे गदाधरांसह ( भूतनाथ) का हाल छूटा जाता है क्योंकि इन्दिरा उस विषय में कुछ भी नहीं जानती इसलिये बयान नहीं कर सकती मगर बिना उसका हाल जाने किस्से का सिलसिला ठीक न होगा इसलिय में स्वयम गदाधरसिह का हाल बीच ही में बयान कर देना उचित समझता हूँ। इन्द-हा हा जर काहय कलमदान का हाल जाने बिना आनन्द नहीं मिलता। मोपाल-उस गुप्त सना में यकायक पहुच कर कलमदान को लूटने वाला वही गदाधरसिह था। उसने कलमदान को साल डाला और उसक अन्दर जा कुछ कागजात थ उन्हें अच्छी तरह पढा। उसमें एक ता वसीयतनामा था जा दामोदरसिह ने इन्दिरा के नाम लिखा था और उसमें अपनो कुल जायदाद का मालिक इन्दिरा को ही बनाया था। इसके अतिरिक्त और सब कागज उसी गुप्त कुभेटी के और सब सभासदों के नाम लिखे हुए थे साथ ही इसके एक कागज दामोदरसिंह न अपनी तरफ स उस कुमटी के विषय में लिख कर रख दिया था जिराक पढ से मालूम हुआ कि दामोदरसिंह उस सभा क मत्री ये दामोदसिह के खयाल से वह सभा अच्छ कामों के लिए स्थापित हुई थी और उन आदमियों का सजा देना उसका काम था जिन्हें मरे पिता दोष साबित होने पर भी पाणदण्ड न देकर कवल अपने राज्य से निकाल दिया करते थे और एसा करने से रियाआ में नाराजी फैलती जाती थी। कुछ दिनों के बाद उस सभा में बेइमानी शुरु हो गई और उसके सभासद लाग उसक जरिये स रुपया पैदा करन लगे तभी दामोदरसिंह को भी उस सभा से घृणा हो गई परन्तु नियमानुसार वह उस सभा का छोड नहीं सकते थ ओर छोड दने पर उसी सभा द्वारा प्राण जान का डर था। एक दिन दारोगा ने सभा में प्रस्ताव किया कि बडे महाराज को मार डालना चाहिए। इस प्रस्ताव का दामोदरसिह ने अच्छी तरह खण्डन किया मगर दारोगा की बात सबसे भारी समझी जाती थी इसलिए दामादरसिह की किसी ने भी न सुनी और बड़ महाराज को मारना निश्चय हो गया। ऐसा करने से दागगा और रघुवरसिह का फायदा था क्योकि ये दोनों आदमी लक्ष्मीदेवी के बदल म हलासिह की लइकी मुन्दर के गथ भरी शादी कराया चाहते थ और बडे महाराज के रहने यह बात बिल्कुल असम्भव थी। आखिर दामादरसिह ने अपनी जान का कुछ ख्याल न किया ओर सभा सम्बन्धी मुख्य कागज और सभा के सभासदो ( मेम्बरों) का नाम तथा अपना वसीयतनामा लिख कर कलमदान में बन्द किया और कलमदान अपनी लड़की के हवाले कर दिया जैसा कि आप इन्दिरा की जुबानी सुन चुके है। जव गदाधरसिह का राभा का कुलहाल, जितने आदमियों को सभा मार चुकी थी उनके नाम और सभा के मेम्बरों के नाम मालूम हो गये तब उसे लालच ने घेरा ओर उसने सभासदों से रुपये वसूल करन का इरादा किया। कलमदान में जितन कागज थे उसने सभों की नकल ले ली और असल कागज तथा कलमदान कहीं छिपा कर रख आया। इसके बाद गदाधरसिह दारोगा के पास गया और उमसे एकान्त में मुलाकात करके योला कि तुम्हारी गुप्त सना का हाल अब खुला चाहता है और तुम लोग जहन्नुम में पहुचा चाहते हो, वह दामोदरसिह का कलमदान तुम्हारी सभा से लूट ले जाने वाला मै ही हु, और मैने उस कलमदान के अन्दर का बिल्कुल हाल जान लिया। अब वह कलमदान मैं तुम्हारे राजा साहब के हाथ में देने के लिए तैयार हू। अगर तुम्हें विश्वास न हो तो इन कागजों को देखा जो मै अपने हाथ म नकल करके तुम्हें दिखाने के लिए ले आया हूँ। इतना कह कर गदाधरसिह ने कागज दारागा के माभने फेंक दिये। दारोगा क तो होश उड गये और मौत भयानक रूप से उसकी आर्खा के सामने नाचने लगी। उसने चाहा कि किसी तरह गदाधरसिह को खपा (मार) डाले मगर यह बात असम्भव थी क्योंकि गदाधरसिह बहुत ही काइया और हर तरह से होशियार तथा चौकन्ना था अतएव सिवाय उसे चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५ ६७७