पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६८०

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1 इन्दजीत-हाँ कह चुकी हो अच्छा तब? इन्दिरा-इन्हीं दोनों ऐयारों की सूरत बन दुश्मनो ने हम लागों का धोखा दिया ! इन्दजीत-दुश्मन उस मकान के अन्दर गये कैसे ? तुम कह चुकी हौ कि वहाँ का रास्ता बहुत टेढा और गुप्त है? इन्दिरा-ठीक है मगर कम्बख्त दारोगा उस रास्ते का हाल बखूबी जानता था और वही उस कमेटी का मुखिया का ताज्जुब नहीं कि उसी ने उस आदमियों को भेजा हा। इन्द्रजीत-ठीक है नि सन्दह ऐसा ही होगा अच्छा तय क्या हुआ? उन्होंने क्योंकर तुम लोगों को धोखा दिया? इन्दिरा-सध्या का समय था जब मैं अपनी मा के साथ उस छोट से नजरबाग में टहल रही थी जो बगले के बगल ही में था। यकायक मेरे पिता के वे ही दोनों ऐयार वहाँ आ पहुंचे जिन्हें देख मेरी माँ बहुत खुश हुई और देर तक जमानिया का हालचाल पूछती रही। उन ऐयारों ने बयान किया कि इन्द्रदेव ने तुम दोनों को समानिया बुलाया है। हमलोग स्थ लेकर आये है नगर साथ ही इसके उन्होंने यह भी कहा है कि यदि वे खुशी से आना चाहे तो ले आना नहीं तो लौट आना। परी माँ का जमानिया पहुच कर अपनी माँ का देखने की बहुत ही लालसा थी वह कय देर करने लगी थी तुरन्त ही राजी हो गई और घण्टे भर के अन्दर ही सर तैयारी कर ली। ऐयार लोग मातबर समझे ही जाते है अस्तु ज्यादे खोज करने को काई आवश्यकता न समझी केवल दालोडियों को और मुझे साथ लेकर चल पडी कलमदान भी साथ ले लिया। हमारे दूसरे एयारों ने भी कुछ मना न किया क्योंकि वे भी धोखे में पड़ गये थे और उन ऐयारों का सच्या समझ बैठे थे। आखिर हमलोग याह के बाहर निकले और पहाडी के नीचे उतरने की नीयत से थोड़ी ही दूर आगे बढ़े थे कि चारो तरफ से दप्त पन्दर दुश्मनों ने घेर लिया। अब उन ऐयारों ने भी रगत पलटी, मुझे और मेरी माँ को जबर्दस्ती बेहोशी की दवा सुधा दी। हम दोनो तुरन्त ही बेहोश हो गए में नहीं कह सकती कि दोनों लोडियों की क्या दुर्दशा हुई मगर जब मैं होश में आई तो अपने को एक तहखाने में कैद पाया और अपनी माँ को अपने पास देखा जो मरे पहिले ही होश में आ चुकी थी और मेरा सर गाद में लकर रो रही थी। हम लोगों के हाथ पैर खुले हुए थे जिस कोठरी में हम लोग कैद थे वह लम्बी-चौडी थी और सामने की तरफ दर्वाजे की जगह लोह का जगला लगा हुआ था। जगले के बाहर दालान था और उसमे एक तरफ पढ़ने के लिए सीढियाँ बनी हुई थी तथा सीठी के बगल ही में एक आले के ऊपर चिराग जल रहा था । मै पहिले बयान कर चुकी है कि उन दिनों जाड का मौसम था इसलिए हम लोगों को गर्मी की तकलीफ न थी। जब मै होश में आई मेरी माँ ने रोना बन्द किया और मुझे बडी दर तक धीरज और दिलासा देने के बाद बोली 'बेटी अगर काई तुमस उस कलमदान के बारे में कुछ पूछे तो कह दीजियो कि कलमदान खोला जा चुका है मगर मै उसके अन्दर का हाल नहीं जानती हा मरी मा तथा और भी कई आदमी उसका भेद जान चुके हैं। अगर उन आदमियों का नाम पूछ तो कह दीजियो कि मैं नाम नहीं जानती मेरी माँ को मालूम होगा। मै यद्यपि लडकी थी मगर समझ-बूझ बहुत थी और उस बात को मेरी माँ ने कई दफ अच्छी तरह समझा दिया था। मेरी माँ ने कलमदान के विषय में ऐसा कहने के लिए मुझसे क्यों कहा सो मैं नहीं जानती शायद उसमे और दुष्टो स पटिले कुछ बातचीत हो चुकी हो मगर मुझे जो कुछ र्मों ने कहा था उसे मैने अच्छी तरह निवाहा। थोड़ी दर माद पांच आदमी उसी सीढी की राह से धडधडाते हुए नीचे उतर आए और मेरी माँ को जबर्दस्ती ऊपर ले गए। मै जोर-जोर से रोती और चिल्लाती रह गई मगर उन लोगों ने मेरा कुछ भी ख्याल न किया और अपना काम करके चले गए। मै उन लोगों की सूरत शक्ल के बारे में कुछ भी नहीं कह सकती क्योंकि वे लोग नकार से अपने चेहरे छिपाये हुए थे। थोड़ी देर के बाद फिर एक नकाबपोश मेरे पास आया जिसके कपड़े और कद पर ख्याल करके मैं कह सकती कि वह उन लोगों में स नहीं था जो मरी मा को ले गए थे बल्कि कोई दूसरा ही आदमी था। वह नकाबपाश मेरे पास बैठ गया और मुझे धीरज और दिलासा देता हुआ कहन लगा कि मैं तुझे इस कैद से छुडाऊगा। मुझे उसकी बातों पर विश्वास हो गया और इसके बाद वह मुझसे बातचीत करने लगा। नकाबपोश-क्या तुझे उस कलमदान के अन्दर का हाल पूरा-पूरा भालूम है ? मैं-नही? नकाब-क्या तेरे सामने कलमदान खाला नही गया था? मे-योला गया था मगर उसका हाल मुझ नहीं मालूम हा मेरी माँ तथा कई आदमियों को मालूम है जिन्हें मेरे पिता ने दिखाया था। नकाब-उन आदमियों के नाम तू जानती है ? में नहीं। देवकीनन्दन खत्री समग्र ६७४